30 मार्च से होगी चैत नवरात्र - आदिशक्ति माँ काली का अवतार है योगिनियां

Jitendra Kumar Sinha
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हिन्दू पंचांग के अनुसार, चैत माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत नवरात्र शुरू होता है। इस वर्ष चैत नवरात्र 30 मार्च रविवार को उदया तिथि से शुरू होगा। चैत माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा की तिथि की शुरुआत 29 मार्च को शाम 4 बजकर 27 मिनट से शुरू होकर 30 मार्च को दोपहर 12 बजकर 49 मिनट तक रहेगी। कलश स्थापना सदैव पूजा घर के ईशान कोण में करना चाहिए।


इस बार नवरात्र 8 दिन का है। 30 मार्च रविवार को प्रतिपदा तिथि और रेवती नक्षत्र है, इसलिए कलश स्थापना और मां शैलपुत्री की उपासना होगी। 31 मार्च सोमवार को दूसरी तिथि और अश्विन नक्षत्र है, इसलिए मां ब्रह्मचारिणी की उपासना, 01 अप्रैल मंगलवार को तीसरी तिथि और भरणी नक्षत्र है, इसलिए मां चंद्रघंटा की उपासना, 02 अप्रैल बुधवार को चौथी एव पांचवी तिथि और कृतिका नक्षत्र है, इसलिए मां कूष्मांडा और मां स्कंदमाता की उपासना, 03 अप्रैल गुरुवार को षष्ठी तिथि और रोहणी नक्षत्र है, इसलिए मां कात्यायनी की उपासना, 04 अप्रैल शुक्रवार को सप्तमी तिथि और मृगशिरा नक्षत्र है, इसलिए मां कालरात्रि की उपासना, 05 अप्रैल शनिवार को अष्टमी तिथि और आद्रा नक्षत्र है, इसलिए मां महागौरी की उपासना और 06 अप्रैल रविवार को नवमी तिथि और पुनर्वसु नक्षत्र है, इसलिए मां सिद्धिदात्री की उपासना होगी।


नवरात्र के पहले दिन ही मीन राशि में सूर्य देव के साथ चंद्रमा, शनि, बुध, शुक्र, राहु एक साथ विद्यमान रहेंगे। जिससे छहग्रही योग का निर्माण होता है, साथ ही इस दिन बुधादित्य और मालव्य राजयोग भी बन रहा हैं। आठ दिन के नवरात्र के महापर्व के दौरान चार दिन रवि योग तथा तीन दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग रहेगा।


मान्यता है कि नवरात्र की शुरुआत और समाप्ति के दिन के अनुसार माता का वाहन तय होता है। इस बार नवरात्र रविवार से शुरू हो रही है और रविवार को ही समाप्त होगी, इसलिए माता हाथी पर आएंगी और हाथी पर ही वापस जाएंगी। माता के हाथी पर सवार होकर आना बहुत ही शुभ माना जा रहा है क्योंकि हाथी को सुख-समृद्धि और शांति का प्रतीक माना जाता है।


नवरात्र में योगिनियों की पूजा करने का भी विधान है। पुराणों के अनुसार, चौसठ योगिनियाँ होती है। सभी योगिनियों को आदिशक्ति माँ काली का अवतार माना गया है। किदंवती है कि घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते समय योगिनियों का अवतार हुआ था और यह सभी माता पार्वती की सखियां हैं।


चौंसठ योगिनियों में (1) बहुरूप, (2) तारा, (3) नर्मदा, (4) यमुना, (5) शांति, (6) वारुणी (7) क्षेमंकरी, (8) ऐन्द्री, (9) वाराही, (10) रणवीरा, (11) वानर-मुखी, (12) वैष्णवी, (13) कालरात्रि, (14) वैद्यरूपा, (15) चर्चिका, (16) बेतली, (17) छिन्नमस्तिका, (18) वृषवाहन, (19) ज्वाला कामिनी,  (20) घटवार, (21) कराकाली, (22) सरस्वती, (23) बिरूपा, (24) कौवेरी, (25) भलुका, (26) नारसिंही, (27) बिरजा, (28) विकतांना, (29) महालक्ष्मी, (30) कौमारी, (31) महामाया, (32) रति, (33) करकरी, (34) सर्पश्या, (35) यक्षिणी, (36) विनायकी, (37) विंध्यवासिनी, (38) वीर कुमारी, (39) माहेश्वरी, (40) अम्बिका, (41) कामिनी, (42) घटाबरी, ( 43) स्तुती, (44) काली, (45) उमा, (46) नारायणी, (47) समुद्र, (48) ब्रह्मिनी, (49) ज्वाला मुखी, (50) आग्नेयी, (51) अदिति, (52) चन्द्रकान्ति, (53) वायुवेगा, (54) चामुण्डा, (55) मूरति, (56) गंगा, (57) धूमावती, (58) गांधार, (59) सर्व मंगला, (60) अजिता, (61) सूर्यपुत्री (62) वायु वीणा, (63) अघोर और (64) भद्रकाली योगिनियाँ है।


नवरात्र में पाठ का प्रारम्भ प्रार्थना से करना चाहिए। उसके बाद दुर्गा सप्तशती किताब से सप्तश्लोकी दुर्गा, उसके बाद श्री दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम, दुर्गा द्वात्रि शतनाम माला, देव्याः कवचम्, अर्गला स्तोत्रम, किलकम, अथ तंत्रोक्त रात्रिसूक्तम, श्री देव्यर्थ शीर्षम का पाठ  करने के बाद नवार्ण मंत्र का 108 बार यानि एक माला जप करने के उपरांत ही दुर्गा सप्तशती का एक-एक सम्पूर्ण पाठ करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति से एक साथ सम्पूर्ण पाठ करना सम्भव नही तो, निम्न प्रकार भी पाठ कर सकते है।


जो व्यक्ति एक दिन में सम्पूर्ण पाठ करने में सक्षम नही तो, वे नवरात्र में पाठ का प्रारम्भ करने से पहले प्रार्थना और उसके बाद दुर्गा सप्तशती किताब से सप्तश्लोकी दुर्गा, उसके बाद श्री दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम, दुर्गा द्वात्रि शतनाम माला, देव्याः कवचम्, अर्गला स्तोत्रम, किलकम, अथ तंत्रोक्त रात्रिसूक्तम, श्री देव्यर्थ शीर्षम पढ़ने के बाद नवार्ण मंत्र का 108 बार यानि एक माला जप करने के उपरांत-


पहला दिन - प्रथम अध्याय 


दूसरा दिन - दूसरा, तीसरा और चौथा अध्याय

 

तीसरा दिन - पाँचवाँ अध्याय


चौथा दिन - छठा और सातवां अध्याय 


पाँचवा दिन - आठवां और नौवां अध्याय 


छठा दिन -  दसवां और ग्यारहवां अध्याय 


सातवाँ दिन - बारहवाँ अध्याय 


आठवां दिन - तेरहवां अध्याय 


नौवाँ दिन - प्रधानिक रहस्य, वैकृतिक रहस्य एवं मूर्ति रहस्य, करना चाहिए।


नवरात्र में भोजन के रूप में केवल गंगा जल और दूध का सेवन करना अति उत्तम माना गया है, कागजी नींबू का भी इस्तेमाल भी किया जा सकता है। फलाहार पर रहना भी उत्तम माना गया है। यदि फलाहार पर रहने में कठिनाई हो तो, एक शाम अरवा भोजन में अरवा चावल, सेंधा नमक, चने की दाल, और घी से बनी सब्जी का उपयोग किया जाता है।


नवरात्र में पहला दिन प्रथम मां शैलपुत्री,  दूसरे दिन द्वितीया मां ब्रह्मचारिणी, तीसरा दिन तृतीया मां चंद्रघंटा, चौथा दिन चतुर्थी मां कुष्मांडा, पांचवा दिन पंचमी मां स्कंदमाता, छठा दिन षष्ठी मां कात्यायनी, सातवां दिन सप्तमी मां कालरात्रि, आठवां दिन अष्टमी दुर्गा महा अष्टमी, नौवां दिन दुर्गा महानवमी मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है।

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