'ऑपरेशन सिंदूर' की सफलता ने भारत की सैन्य क्षमताओं का नया परचम लहराया है। इस सैन्य अभियान में ब्रह्मोस मिसाइलों की सटीक मारक क्षमता ने दुश्मन के ठिकानों को चकनाचूर तो कर ही दिया है। सूत्रों के अनुसार, अब तीनों सेनाओं थलसेना, नौसेना और वायुसेना ने ब्रह्मोस मिसाइल की नई खेप की मांग तेज कर दी है। रक्षा मंत्रालय ने भी ब्रह्मोस उत्पादन को गति देने का निर्णय लिया है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में शुरू हुई ब्रह्मोस यूनिट अब भारत की मिसाइल उत्पादन शक्ति का केंद्र बनेगा। भारत और रूस के संयुक्त प्रयास से संचालित इस यूनिट में प्रत्येक वर्ष 100 ब्रह्मोस मिसाइलें तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। यह यूनिट सिर्फ उत्पादन ही नहीं, बल्कि परीक्षण, गुणवत्ता नियंत्रण और भविष्य की अपग्रेड तकनीकों का भी हब बनेगा।
ब्रह्मोस एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है जो समुद्र, जमीन और हवा से छोडा जा सकता है। इसकी रेंज 300 किमी से 800 किमी तक है और यह 2.8 मैक की गति से दुश्मन पर वार करता है। थलसेना के लिए यह सीमाओं पर फिक्स और मोबाइल प्लेटफॉर्म से दागा जा सकता है। नौसेना इसे युद्धपोतों और पनडुब्बियों से लॉन्च करती है जबकि वायुसेना इसे सुखोई-30 जैसे लड़ाकू विमानों से दागती है।
ब्रह्मोस मिसाइल भारत और रूस की तकनीकी साझेदारी का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। ‘ब्रह्मोस एयरोस्पेस’ कंपनी द्वारा विकसित यह मिसाइल ‘ब्रह्मपुत्र’ और ‘मॉस्कवा’ नदियों के नाम पर आधारित है। अब जब भारत आत्मनिर्भर रक्षा उत्पादन की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है, ऐसे में रूस के साथ यह सहयोग दोनों देशों की सामरिक साझेदारी को भी और मजबूत करेगा।