बाल से भी महीन - नैनोटेक्नोलॉजी से जन्मा - दुनिया का सबसे छोटा - “वायलिन”

Jitendra Kumar Sinha
0



कल्पना कीजिए एक ऐसा वायलिन, जो आंखों से नहीं, केवल शक्तिशाली माइक्रोस्कोप से देखा जा सके! यह कोई कल्पना नहीं है, बल्कि इंग्लैंड के लफबरो विश्वविद्यालय की भौतिकी प्रयोगशाला में हकीकत बन चुका है। वैज्ञानिकों ने नैनोटेक्नोलॉजी का उपयोग करते हुए मानव बाल से भी महीन, महज 35 माइक्रोन लंबा और 13 माइक्रोन चौड़ा वायलिन का निर्माण किया है। यह वायलिन कला, तकनीक और विज्ञान के समागम का अद्वितीय उदाहरण है।

नैनोटेक्नोलॉजी उस विज्ञान का नाम है, जिसमें पदार्थों को अति-सूक्ष्म (1 से 100 नैनोमीटर) पैमाने पर नियंत्रित और निर्मित किया जाता है। इस तकनीक के माध्यम से मेडिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा और अब कला के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी बदलाव लाया जा रहा हैं। लफबरो विश्वविद्यालय का यह अनूठा वायलिन न केवल वैज्ञानिक कौशल का परिचायक है, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे सूक्ष्मतम आकार में भी संरचनाओं का निर्माण और ध्वनि सृजन संभव है।

इंग्लैंड का लफबरो विश्वविद्यालय (Loughborough University) अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी संस्थानों में गिना जाता है। भौतिकी और सामग्री विज्ञान के क्षेत्र में विश्वविद्यालय का शोध कार्य वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त है। यहां का नैनोटेक्नोलॉजी प्रयोगशाला, खासकर “नैनोफैब्रिकेशन लैब”, अत्याधुनिक यंत्रों और नवाचारों के लिए प्रसिद्ध है।

इस वायलिन के निर्माण में हाइडलबर्ग इंस्ट्रूमेंट्स द्वारा निर्मित "नैनोफ्रेजर" नामक मशीन का प्रयोग किया गया है। यह मशीन अत्यंत सूक्ष्म स्तर पर कार्य करने में सक्षम है, और एक साफ चिप (clean silicon chip) पर पॉलिमर की पतली परत लगाकर उस पर बारीक नक्काशी (nano-sculpting) करता है। “नैनोलिथोग्राफी” एक ऐसी तकनीक है, जो इलेक्ट्रॉन बीम, एक्स-रे या अन्य सूक्ष्म किरणों का उपयोग कर अत्यंत बारीक संरचनाएं तैयार करती है। इस तकनीक से बने वायलिन की सतह और संरचना इतनी महीन है कि यह वास्तविक ध्वनि उत्पन्न कर सकता है, भले ही वह मानव कान से न सुनाई दे। इसका आकार किसी इंसानी बाल की मोटाई से भी छोटा है, जो औसतन 70 माइक्रोन होता है। यानि यह वायलिन एक बाल की आधी मोटाई में समा सकता है।

यह सवाल स्वाभाविक है कि क्या इतना छोटा वायलिन वास्तव में संगीत उत्पन्न कर सकता है? इसका उत्तर है तकनीकी रूप से हां, पर व्यावहारिक रूप से नहीं। यह वायलिन ध्वनि कंपन उत्पन्न करने में सक्षम है, लेकिन इन कंपन को मानव कान नहीं सुन सकता है। यह प्रयोग कला के बजाय सामर्थ्य प्रदर्शन (proof of concept) के रूप में किया गया है कि अत्यंत सूक्ष्म स्तर पर कार्य करना अब संभव है।

यह सूक्ष्म वायलिन विज्ञान और कला का एक सुंदर संगम है। यह सिर्फ तकनीकी उपलब्धि नहीं है, बल्कि एक विचार है कि कला और विज्ञान मिलकर कैसी अद्भुत रचनाएं कर सकता हैं। कलाकारों को यह उदाहरण प्रेरणा देता है कि सीमाएं केवल कल्पना की होती हैं। वैज्ञानिकों को यह प्रूव करता है कि सूक्ष्म से सूक्ष्मतर स्तर पर नियंत्रण संभव है। इंजीनियरों के लिए यह एक नैनोस्केल निर्माण की क्षमता का प्रमाण है।

इस अनोखे वायलिन ने वैश्विक स्तर पर शोध संस्थानों, वैज्ञानिक पत्रिकाओं और तकनीकी समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। कई अंतरराष्ट्रीय तकनीकी मंचों पर इस वायलिन को “नैनो आर्ट का चमत्कार” कहा गया है। IEEE Spectrum ने इसे “कला की अदृश्य प्रतिमा” कहा है। 

यद्यपि यह वायलिन नग्न आंखों से नहीं देखा जा सकता है, लेकिन शक्तिशाली इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से ली गई उसकी तस्वीरें यह साबित करता हैं कि उसमें वायलिन के हर घटक  बॉडी, नेक, स्ट्रिंग और बाउ की बारीक संरचना मौजूद है।

प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. मार्क टेलर, जो इस परियोजना के मुख्य शोधकर्ता हैं, का कहना हैं कि “हमने सिर्फ एक वायलिन नहीं बनाया, बल्कि यह दिखाया है कि नैनोस्केल पर निर्माण की संभावनाएं असीमित हैं। यह एक वैज्ञानिक प्रयोग है, लेकिन इसका प्रभाव व्यापक होगा।”

भारत में नैनोटेक्नोलॉजी तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र है। CSIR, DRDO और IIT जैसे संस्थान इस दिशा में कार्य कर रहा है। लफबरो का यह प्रयोग भारत को यह प्रेरणा देता है कि हमें भी नैनो प्रयोगशालाओं में निवेश करना चाहिए, रचनात्मक अनुसंधान को बढ़ावा देना चाहिए, और वैज्ञानिक-कला के समन्वय से नवाचार को नई ऊंचाई देनी चाहिए।

यह वायलिन हमें यह सिखाता है कि बड़े बदलाव सूक्ष्म स्तर से शुरू होते हैं। बाल से भी महीन आकार में कला और विज्ञान को समेट लेना मानव बुद्धि का श्रेष्ठ उदाहरण है। यह नवाचार न केवल विज्ञान की क्षमताओं को दर्शाता है, बल्कि यह हमारी कल्पनाओं की उड़ान को भी नई दिशा देता है।



एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top