कारगिल से पहलगाम तक: पाकिस्तान की सेना में इतिहास दोहराने की तैयारी?

Jitendra Kumar Sinha
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पाकिस्तान की राजनीति और सेना के बीच के रिश्ते हमेशा से जटिल रहे हैं। 1999 में कारगिल युद्ध के बाद जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने सत्ता पर कब्जा कर लिया था। अब, 2025 में, जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया है, जो पाकिस्तान के इतिहास में केवल दूसरी बार हुआ है। पहली बार यह पदोन्नति जनरल अयूब खान को मिली थी, जिन्होंने बाद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति का पद संभाला था। 


जनरल मुनीर की पदोन्नति ऐसे समय में हुई है जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है। हाल ही में हुए पहलगाम हमले, जिसमें 26 निर्दोष नागरिक मारे गए, के पीछे पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों का हाथ बताया जा रहा है। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस हमले के लिए सीधे तौर पर जनरल मुनीर की कट्टर धार्मिक सोच को जिम्मेदार ठहराया है। 


इसके जवाब में, भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और पंजाब प्रांत में आतंकवादी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक की। इन हमलों के बाद, अमेरिका की मध्यस्थता से दोनों देशों के बीच 10 मई 2025 को युद्धविराम समझौता हुआ। 


जनरल मुनीर की पदोन्नति को पाकिस्तान में राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने और सेना की प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, आलोचकों का मानना है कि यह कदम पाकिस्तान की नाजुक लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा बन सकता है, जैसा कि अतीत में देखा गया है।


जनरल मुनीर की तुलना जनरल मुशर्रफ से की जा रही है, जिन्होंने कारगिल युद्ध के बाद सत्ता पर कब्जा कर लिया था। अब सवाल उठता है कि क्या इतिहास खुद को दोहराने जा रहा है? क्या जनरल मुनीर भी वही रास्ता अपनाएंगे? या पाकिस्तान एक बार फिर सैन्य शासन की ओर बढ़ रहा है?

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