अफगानिस्तान के कंधार प्रांत से एक ऐसा आदेश सामने आया है, जिसने देशभर में शिक्षा और तकनीक के बीच संतुलन को लेकर बहस छेड़ दी है। तालिबान प्रशासन ने बुधवार से सभी स्कूलों और मदरसों में छात्रों, शिक्षकों और स्टाफ के लिए स्मार्टफोन के इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध लागू कर दिया है। यह फैसला 'अनुशासन और शरिया कानून' के पालन के नाम पर लिया गया है।
इस प्रतिबंध के बाद कई तालिबान अधिकारी खुद भी स्मार्टफोन का त्याग कर 'ब्रिक फोन' यानि पुरानी कीपैड वाला फोन का इस्तेमाल करने लगे हैं। उनका कहना है कि स्मार्टफोन ने नई पीढ़ी को बिगाड़ दिया है, और यह उन्हें "शरिया" के रास्ते से भटका रहा है। सोशल मीडिया, गेम्स और अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को "भटकाव का माध्यम" करार दिया गया है।
जहां प्रशासन इसे नैतिक अनुशासन की दिशा में उठाया गया कदम बता रहा है, वहीं छात्रों के बीच इससे शिक्षा को लेकर चिंता बढ़ी है। एक छात्र ने कहा है कि "मैं बोर्ड की तस्वीर खींचकर बाद में घर पर नोट्स बनाता था, अब ऐसा नहीं कर पाऊंगा।" तकनीक की मदद से पढ़ाई करने वाले कई छात्र अब खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। खासकर उन क्षेत्रों में जहां किताबें और अन्य शैक्षणिक संसाधन सीमित हैं, वहां स्मार्टफोन एकमात्र सहारा बन चुका था।
यह आदेश सिर्फ आधुनिक स्कूलों तक ही सीमित नहीं है। मदरसों में भी यह नियम पूरी तरह लागू कर दिया गया है। धार्मिक शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों को भी अब स्मार्टफोन नहीं रखने दिया जाएगा। ऐसा पहली बार है जब तालिबान प्रशासन ने इतने बड़े स्तर पर शिक्षा क्षेत्र में तकनीक पर नियंत्रण लागू किया है।
तालिबान शासन ने इस कदम को 'संस्कृति और नैतिकता की रक्षा' के लिए जरूरी बताया है, लेकिन कई शिक्षाविद इसे शैक्षिक प्रगति के रास्ते में रुकावट मानते हैं। अफगानिस्तान जैसे देश में, जहां पहले से ही शिक्षा संसाधनों की भारी कमी है, वहां स्मार्टफोन छात्रों के लिए जानकारी तक पहुंच का सशक्त जरिया था।
स्मार्टफोन के दुरुपयोग की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन उसके सकारात्मक उपयोग को पूरी तरह नकारना भी तर्कसंगत नहीं है। ऐसे में अफगानिस्तान में तकनीक और शिक्षा के बीच संतुलन बनाना सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा है। प्रश्न यह नहीं है कि स्मार्टफोन बैन होना चाहिए या नहीं, बल्कि यह है कि क्या अफगानिस्तान के छात्र उस 'ज्ञान के युग' से दूर हो जाएंगे, जिसकी उन्हें सबसे ज्यादा जरूरत है?