न्यूजीलैंड का फैसला - 'मैजिक मशरूम' से होगा - डिप्रेशन का इलाज

Jitendra Kumar Sinha
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न्यूजीलैंड ने मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सा के क्षेत्र में एक साहसिक कदम उठाते हुए ‘मैजिक मशरूम’ में पाए जाने वाले साइकेडेलिक तत्व सिलोसाइबिन के सीमित चिकित्सीय उपयोग को मंजूरी दे दी है। यह फैसला विशेष रूप से उन मरीजों के लिए राहत लेकर आया है जो ट्रीटमेंट-रेसिस्टेंट डिप्रेशन यानि सामान्य इलाजों के प्रति प्रतिरोधक हो चुके अवसाद से जूझ रहे हैं।

सिलोसाइबिन एक प्राकृतिक साइकेडेलिक यौगिक है, जो कुछ विशेष प्रकार के मशरूम में पाया जाता है। इसे 'मैजिक मशरूम' कहा जाता है क्योंकि इसके सेवन से व्यक्ति को मानसिक रूप से गहन अनुभव हो सकता हैं, जैसे कि दृष्टिभ्रम या आंतरिक भावनाओं में तीव्रता। लंबे समय से यह यौगिक विवादास्पद रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में इसके सकारात्मक चिकित्सीय प्रभावों पर ध्यान दिया जाने लगा है।

न्यूजीलैंड के डिप्टी प्रधानमंत्री डेविड सीमोर के अनुसार, यह दवा अब भी सरकार द्वारा अनुमोदित (approved) नहीं है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में अनुभवी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों को इसके इस्तेमाल की अनुमति दी गई है। केवल वही डॉक्टर इसे प्रयोग कर सकेंगे जो सिलोसाइबिन पर हुए चिकित्सीय परीक्षणों (ट्रायल्स) का हिस्सा रह चुके हैं। साथ ही, उन्हें हर मरीज पर इसके इस्तेमाल का सुव्यवस्थित रिकॉर्ड भी रखना होगा।

ऑस्ट्रेलिया ने इस साइकेडेलिक चिकित्सा को वर्ष 2023 में ही स्वीकृति दे दी थी। अब न्यूजीलैंड के इस कदम से साइकेडेलिक दवाओं के प्रयोग की दिशा में वैश्विक बहस को नया आयाम मिला है। यह एक संकेत हो सकता है कि भविष्य में अन्य देश भी इस दिशा में विचार कर सकता हैं।

मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि डिप्रेशन की पारंपरिक दवाएं और थेरेपी कई बार विफल हो जाता हैं। ऐसे में सिलोसाइबिन आधारित उपचार विकल्प आशा की एक नई किरण साबित हो सकता हैं। यह भी जरूरी है कि इसका उपयोग अत्यंत सावधानी से, चिकित्सकीय निगरानी में और केवल गंभीर मामलों में ही किया जाए।

न्यूजीलैंड का यह फैसला मानसिक स्वास्थ्य की दुनिया में एक नई क्रांति का संकेत है। यदि यह प्रयोग सफल रहता है, तो दुनिया भर में डिप्रेशन से जूझ रहे करोड़ों लोगों को इससे राहत मिल सकता है। परंतु, इसके दुरुपयोग की आशंका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, इसलिए कड़ी निगरानी और कठोर नियमों के साथ ही इस नई चिकित्सा पद्धति को आगे बढ़ाया जाना चाहिए।



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