दक्षिण-पूर्व एशिया के हृदय में स्थित इंडोनेशिया का जावा द्वीप केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए ही नहीं, बल्कि वहां मौजूद भारतीय संस्कृति के अद्भुत चिह्नों के लिए भी जाना जाता है। ऐसा ही एक भव्य और ऐतिहासिक उदाहरण है “प्रम्यनन मंदिर परिसर”, जो न केवल एक वास्तुकला चमत्कार है, बल्कि हिन्दू धर्म और रामायण की सांस्कृतिक गूंज को संजोए हुए है।
“प्रम्यनन मंदिर परिसर” का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ था, जब जावा में मातरम साम्राज्य की सत्ता थी। यह साम्राज्य भारतीय सभ्यता से गहराई से प्रभावित था और उस काल में हिंदू धर्म अपनी पूर्ण गरिमा के साथ दक्षिण-पूर्व एशिया में फैला हुआ था। प्रम्यनन उसी धार्मिक और सांस्कृतिक विस्तार का भव्य प्रतीक है।
यह मंदिर परिसर भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा को समर्पित है। इनमें से सबसे ऊंचा और प्रमुख मंदिर भगवान शिव का है, जिसकी ऊंचाई लगभग 47 मीटर है। यह मंदिर भारतीय नागर शैली की झलक देता है, जिसकी विशेषताएं जैसे ऊँचे शिखर, गूढ़ नक्काशी और मंदिर के चारों ओर की परिक्रमा व्यवस्था यहां साफ देखी जा सकती हैं।
पूरे परिसर में मुख्य और उपमंदिरों की संख्या मिलाकर लगभग 240 मंदिर हैं। लेकिन यदि पूरे खंडहर क्षेत्र को शामिल करें, तो 500 से अधिक स्थापत्य संरचनाएं इस परिसर का हिस्सा मानी जाती हैं। यह मंदिर परिसर एक जीवित संग्रहालय के समान है, जो हर पत्थर और स्तंभ के माध्यम से धार्मिक आस्था, कला और स्थापत्य की गौरवगाथा सुनाता है।
“प्रम्यनन मंदिर” की दीवारों पर बनी बास-रिलीफ नक्काशी मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता मानी जाती है। इन नक्काशियों में रामायण की कहानियां इस तरह से चित्रित की गई हैं कि पत्थर में जान सी आ जाती है। सीता हरण, हनुमान का लंका दहन, राम-रावण युद्ध जैसी घटनाएं इन दीवारों पर इतनी खूबसूरती से उकेरी गई हैं कि देखने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है।
इन चित्रों में देवता, राक्षस, मानव पात्र, पशु-पक्षी सभी इतने जीवंत और भावपूर्ण हैं कि लगता है मानो पत्थर बोल उठे हो। यह इस बात का प्रमाण है कि रामायण केवल भारत की नहीं, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया की भी सांस्कृतिक आत्मा का हिस्सा रही है।
“प्रम्यनन मंदिर” केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारतीय संस्कृति और वास्तुकला ने सीमाओं को पार कर, अन्य देशों में अपनी शाश्वत छाप छोड़ी है। इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम बहुल देश में भी यह मंदिर श्रद्धा और ऐतिहासिक विरासत के रूप में सम्मान और संरक्षण पा रहा है।
“प्रम्यनन मंदिर परिसर” केवल पत्थरों का ढांचा नहीं है, बल्कि एक जीवंत इतिहास, एक जीवंत परंपरा और सांस्कृतिक संवाद का प्रतीक है। यह बताता है कि धर्म और कला की शक्ति भाषा, भूगोल और राजनीति की सीमाओं से परे होती है और यही इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है।
