समुद्र की अथाह गहराइयों में ऐसे कई रहस्यमय जीव पाए जाते हैं, जो पृथ्वी की सतह से बिल्कुल भिन्न वातावरण में भी आसानी से जीवित रहते हैं। इन्हीं में से एक है “स्केली-फुट स्नेल (Scaly-foot Snail)”, जिसे "समुद्री पेंगोलिन" भी कहा जाता है। यह जीव अपने आप में प्रकृति का एक चमत्कार है, जो वैज्ञानिकों को हैरत में डाल देता है।
“स्केली-फुट स्नेल” हिंद महासागर की गहराइयों में, लगभग 2400 से 2900 मीटर नीचे हाइड्रोथर्मल वेंट्स के पास पाया जाता है। यह क्षेत्र अत्यधिक गर्म, विषैला और अंधकारमय होता है, जहां सामान्य जीवों का टिकना लगभग असंभव है। इसके बावजूद, यह स्नेल न केवल वहां जीवित रहता है, बल्कि पूरी मजबूती के साथ अपना जीवन यापन करता है।
इस स्नेल की सबसे बड़ी खासियत है इसका कवच और पैर, जो आयरन सल्फाइड (Iron Sulfide) जैसी धात्विक परतों से बने होते हैं। यह अपने आप में एकमात्र ऐसा ज्ञात जीव है जो धातु से बना कवच पहनता है। इस कवच की तीन परतें होती हैं। बाहरी परत लोहे के सल्फाइड से बनी होती है जो इसे शिकारियों से बचाती है। मध्य परत जैविक कंपोजिट से बनी होती है, जो धक्कों को अवशोषित करती है। भीतरी परत कैल्शियम से बनी होती है, जो कवच को मजबूती देती है। इसका पैर भी खास होता है, जिस पर सैकड़ों छोटे-छोटे स्क्लेराइट्स (कठोर प्लेट्स) होते हैं, जो इसे और अधिक सुरक्षा प्रदान करता है।
जहां अन्य प्राणी इस कठोर वातावरण में जीवित नहीं रह पाता है, वहीं स्केली-फुट स्नेल का विशाल हृदय, जो उसके शरीर का लगभग 4% होता है, इसे वहां जीवित रखने में सहायक होता है। यह हृदय कम ऑक्सीजन वाली परिस्थितियों में भी पूरे शरीर में पर्याप्त ऑक्सीजन पहुंचाने में सक्षम होता है। इसके अलावा, इसका पाचन तंत्र बहुत छोटा होता है, और यह संभवतः वेंट्स के आसपास पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों और रासायनिक यौगिकों पर निर्भर रहता है।
वैज्ञानिकों के लिए यह स्नेल एक प्राकृतिक चमत्कार है। इसके कवच की बनावट पर रक्षा तकनीकें विकसित करने के लिए अध्ययन किया जा रहा है। इसकी संरचना बुलेटप्रूफ जैकेट और आर्मर डिजाइन करने में भी उपयोगी हो सकता है।
प्राकृतिक दुनिया में जीवों का अनुकूलन और संघर्ष अद्भुत होता है, और स्केली-फुट स्नेल इसका एक बेहतरीन उदाहरण है। यह जीव न केवल गहराइयों में जीवित रहता है, बल्कि अपने चारों ओर की विपरीत परिस्थितियों को भी मात देता है।
