पांडवों की तपोभूमि - ऐसराना पर्वतमाला का - “कटकेश्वर महादेव मंदिर”

Jitendra Kumar Sinha
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राजस्थान के सियाणा क्षेत्र से मात्र 15 किलोमीटर दूर, ऐसराना पर्वतमाला की मनोरम वादियों में बसा है “कटकेश्वर महादेव मंदिर”। यह स्थान न केवल धार्मिक महत्त्व रखता है, बल्कि इसमें भारत की सांस्कृतिक धरोहर और पौराणिक कथाओं का अद्भुत संगम भी दिखाई देता है। हरियाली से ढंकी पहाड़ियों के बीच बसा यह मंदिर भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है तो इतिहासप्रेमियों के लिए यह पांडवों की तपोभूमि है।

लोक मान्यता के अनुसार, महाभारत काल में जब पांडव अज्ञातवास के लिए वनवास पर निकले थे, तब उन्होंने कुछ समय इस पर्वत श्रृंखला में बिताया था। कहते हैं, उन्होंने यहीं पर शिवभक्ति में लीन होकर तपस्या की थी। भीम ने यहां 'बेरी' (कुंआ) खोदकर जल की व्यवस्था की थी। आज भी यह जलस्रोत 'पांडव बेरी' के नाम से प्रसिद्ध है और लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।

इस जल का विशेष महत्त्व है। कहा जाता है कि यह बेरी कभी सूखती नहीं, चाहे कितना भी अकाल पड़ जाए। स्थानीय ग्रामीण इसे देवजल मानते हैं और रोग निवारण, पूजा-पाठ, या तीर्थ जैसी मान्यता के साथ प्रयोग करते हैं।

“कटकेश्वर महादेव” मंदिर को 'तपोभूमि जमनागिरी' भी कहा जाता है। यह स्थान भूतल से लगभग 400 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और वहाँ तक पहुँचने के लिए श्रद्धालुओं को पर्वतीय पगडंडियों से होकर गुजरना पड़ता है। हर दिशा में फैली हरियाली, चहचहाते पक्षी और प्राकृतिक शांति, सब मिलकर इस स्थान को अध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है।

ऐसा भी माना जाता है कि जमनागिरी नामक एक तपस्विनी ने यहाँ कठोर तप किया था और शिव से वर प्राप्त किया था। इसी कथा के आधार पर यह स्थान "जमनागिरी की तपोभूमि" के नाम से जाना जाने लगा।

मंदिर परिसर में स्थित एक प्राचीन गुफा भी रहस्य और आकर्षण का विषय है। जनश्रुति के अनुसार, यह गुफा सीधे “जागनाथ महादेव मंदिर” तक जाती है, जो इस क्षेत्र में ही स्थित है। गुफा में अंधकार और गहराई के कारण आज इसका द्वार बंद कर दिया गया है, परंतु आज भी गुफा का नाम सुनते ही श्रद्धालुओं में रोमांच उत्पन्न हो जाता है।

गुफा के भीतर एक प्राचीन जलकुंड है, जिसे 'गंगा वाव' कहा जाता है। यह जल भी पवित्र माना जाता है और गुफा के भीतर शिव के तप का प्रतीक माना जाता है।

चार सौ वर्ष पुराना इस मंदिर को कई बार जीर्णोद्धार किया गया है। इसके वर्तमान स्वरूप का निर्माण कार्य मठाधीश कुलदीप भारती महाराज के नेतृत्व में तीव्र गति से चल रहा है। मंदिर की छत, प्रवेश द्वार, विश्राम स्थल, और शिखर सहित पूरे परिसर को दूधिया संगमरमर, आकर्षक शिलालेख, और आधुनिक वास्तुशिल्प के माध्यम से संवारा जा रहा है।

मंदिर के नवनिर्माण में परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यहाँ पहुंचने वाले श्रद्धालु न केवल आध्यात्मिक शांति पाते हैं, बल्कि एक सुंदर सांस्कृतिक और स्थापत्यिक अनुभव भी प्राप्त करते हैं।

सावन माह और महाशिवरात्रि के अवसर पर इस मंदिर में भव्य मेला का आयोजन किया जाता है। इन मेलों में क्षेत्रीय और दूरदराज से आए भक्त भाग लेते हैं। मंदिर परिसर में धार्मिक कार्यक्रमों की ध्वनि, भजन-कीर्तन, और शिव तांडव के गीतों से वातावरण भक्तिमय बन जाता है।

विशेष रूप से सावन सोमवार को यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु शिवलिंग पर जलाभिषेक करने आते हैं। कुछ भक्त 15 किलोमीटर की दूरी नंगे पांव तय करके इस पवित्र स्थल तक पहुंचते हैं।

इतिहास में दर्ज जानकारी के अनुसार, मंदिर की वर्तमान पूजा-पद्धति की शुरुआत संवत् 1660 ई. में संत सागरभारती द्वारा की गई थी। उन्होंने ही मंदिर में पूजा-अर्चना को व्यवस्थित किया। उनके तप और भक्ति के कारण ही यह स्थल शिवभक्तों के लिए तीर्थ बन गया।

सागरभारती ने बाद में समाधि ली, और उनके बाद कई अन्य महात्माओं ने यहां तपस्या की। उनकी समाधियाँ आज भी मंदिर परिसर में विद्यमान हैं, जो न केवल उनकी तप-परंपरा को दर्शाता है, बल्कि मंदिर की महत्ता को भी स्थापित करता है।

“कटकेश्वर महादेव” मंदिर के पास स्थित “पांडव बेरी” आज भी चमत्कार का विषय है। वैज्ञानिकों ने कई बार इसके जल स्तर की जांच की, लेकिन यह बेरी कभी सूखी नहीं पाई गई। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह जल शिव का आशीर्वाद है।

गर्मियों में जब आस-पास के जलस्रोत सूख जाता है, तब भी “पांडव बेरी” लोगों को जीवनदायिनी जल प्रदान करता है। यह एक जीवंत उदाहरण है प्रकृति, आस्था और परंपरा के अद्भुत संगम का।

“कटकेश्वर महादेव” मंदिर धार्मिक दृष्टिकोण से तो महत्वपूर्ण है ही, साथ ही यह स्थान प्राकृतिक पर्यटन और ट्रेकिंग के लिए भी आदर्श है। पर्वतमाला की कठिन चढ़ाई, घुमावदार रास्ते, और हरियाली से आच्छादित वादियाँ ट्रेकिंग प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं हैं।

“कटकेश्वर महादेव” मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह स्थानीय जनजीवन और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा भी है। मंदिर से जुड़ी दंतकथाएँ, सावन के गीत, शिवरात्रि की तैयारियाँ, और ग्रामीणों की पूजा-पद्धति इस क्षेत्र की सांस्कृतिक गहराई को दर्शाता है।

यहाँ का हर पत्थर, हर पेड़, और हर जलकुंड लोककथाओं और पौराणिक परंपराओं से जुड़ा हुआ है। मंदिर के पुजारी, मठाधीश, और ग्रामीण इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं और आने वाली पीढ़ियों तक इसे पहुँचाने का कार्य कर रहे हैं।

“कटकेश्वर महादेव”  मंदिर न केवल एक शिवालय है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक तीर्थ, एक पौराणिक कथा स्थल, और एक प्राकृतिक पर्यटन केंद्र भी है। यहाँ की हरियाली, जलस्रोत, गुफाएँ और लोककथाएँ इस स्थान को अद्वितीय बनाता है।

अज्ञातवास की छाया, सागरभारती की समाधि, जमनागिरी की तपोभूमि, और श्रद्धालुओं की भावनाएँ – सब मिलकर “कटकेश्वर महादेव”  मंदिर को एक ऐसा स्थल बनाता है जहाँ आकर हर व्यक्ति भक्ति, प्रकृति और इतिहास से एकात्म अनुभव करता है।



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