बिहार की पारंपरिक लोककलाओं को रोजगार से जोड़ने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया है। शुक्रवार को पटना के मैनपुरा, राजापुर पुल स्थित पोखर भवन के निकट बिहार कौशल विकास मिशन के तहत "मिथिला पेंटिंग प्रशिक्षण केंद्र" का शुभारंभ किया गया। इस केंद्र के माध्यम से खासकर महिलाओं और युवाओं को पारंपरिक मिथिला पेंटिंग का प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार और स्वरोजगार के योग्य बनाया जाएगा।
यह पहल श्रम संसाधन विभाग और लवली क्रिएशन के संयुक्त प्रयास से शुरू की गई है। कार्यक्रम के उद्घाटन अवसर पर मिशन निदेशक ने बताया कि इस प्रशिक्षण शिविर का उद्देश्य न केवल कला को संरक्षित करना है, बल्कि इसे आजीविका का साधन बनाना भी है।
मिथिला पेंटिंग बिहार की सबसे प्राचीन और समृद्ध लोककलाओं में से एक है, जिसकी जड़ें मिथिला क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर में गहराई से जुड़ी हैं। लेकिन समय के साथ यह कला सीमित दायरे में सिमटती जा रही थी। ऐसे में इस प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम मिथिला चित्रकला को पुनः जीवंत करने और नई पीढ़ी से जोड़ने में अहम भूमिका निभा सकता है।
इस पहल की सबसे खास बात यह है कि इसमें महिलाओं की भागीदारी को प्राथमिकता दी जा रही है। उन्हें निःशुल्क प्रशिक्षण, आवश्यक सामग्री, और तकनीकी सहयोग प्रदान किया जाएगा, जिससे वे या तो स्वयं का व्यवसाय आरंभ कर सकें या फिर विभिन्न सरकारी और निजी योजनाओं में रोजगार पा सकें।
प्रशिक्षण पाने वाले युवाओं के लिए यह अवसर सिर्फ कौशल सीखने तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनने का मार्ग भी दिखाएगा। प्रशिक्षण के उपरांत उन्हें स्वयं सहायता समूह, शिल्प मेलों, और ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों से जोड़ा जाएगा, जहां वे अपने उत्पाद बेचकर नियमित आमदनी कमा सकेंगे।
इस योजना का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने में भी सहायक होगी। मिथिला पेंटिंग को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहचान दिलाने के लिए अब सरकार गंभीर प्रयास कर रही है।
बिहार कौशल विकास मिशन के अधिकारियों ने बताया कि आने वाले समय में इसी तर्ज पर अन्य पारंपरिक कलाओं जैसे सिक्की कला, लकड़ी नक्काशी, सुजनी कढ़ाई आदि के लिए भी प्रशिक्षण केंद्र खोले जाएंगे। इससे राज्य के युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे और बिहार की लोककलाएं वैश्विक पहचान हासिल करेगी।
