14 अगस्त की दोपहर करीब 12 से 1 बजे के बीच अचानक चशोती गांव में तेज बारिश और मलबा बहने की वजह से बाढ़ जैसी स्थिति बन गई। उस समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु वहां माचइल माता यात्रा के लिए 'लंगर' में भोजन कर रहे थे। अचानक आया मलबा, कीचड़ और तेज बहाव ने दुकानों, सुरक्षा चौकी और लोगों को तहस-नहस कर दिया।
इतने कम समय में संकट तबाही में बदल गया—कम से कम 56 लोग मलबे और बाढ़ में दब कर जान गंवा बैठे, उनमें दो CISF जवान भी शामिल थे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 300 से अधिक लोग बचाए गए, कई की हालत गंभीर बनी हुई है, जबकि 250 से ज़्यादा लोग अभी भी लापता हैं। राहत कार्य में NDRF, SDRF, पुलिस, सेना, वॉलिंटियर्स सक्रिय हैं, लेकिन दुर्गम इलाका और टूटे संपर्क ने बचाव कार्य को मुश्किल बना दिया।
प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने संवेदनाएं व्यक्त कीं और "हर संभव सहायता" का आश्वासन दिया। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने स्वतंत्रता दिवस के सांस्कृतिक कार्यक्रमों और पारंपरिक ‘चाय पार्टी’ को रद्द कर दिया; लेकिन भाषण और परेड जैसी आधिकारिक रस्में जारी रहीं। ये त्रासदी न केवल प्राकृतिक विनाश की कहानी है, बल्कि एक चेतावनी है—पहाड़ी इलाकों में अस्थिर मौसम और तीव्र बारिश कितनी खतरनाक हो सकती है।
