विश्वभर में अनेक पुल अपनी विशालता, तकनीकी चमत्कार या वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध हैं, लेकिन कुछ पुल ऐसे होते हैं जो न केवल देशों को, बल्कि संस्कृतियों और तकनीकी सीमाओं को भी जोड़ते हैं। ऐसा ही एक अद्भुत उदाहरण है “ओरेसंड ब्रिज (Øresund Bridge)” एक सेतु, जो डेनमार्क और स्वीडन के बीच फैला हुआ है, और जो सड़क-रेल मार्ग का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।
“ओरेसंड ब्रिज” डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन और स्वीडन के माल्मो शहर को जोड़ता है। इसकी कुल लंबाई लगभग 8 किलोमीटर है। यह एक केबल-स्टे ब्रिज (Cable-stayed Bridge) है, जिसका आधा हिस्सा पानी के ऊपर पुल के रूप में और बाकी हिस्सा सुरंग (Tunnel) के रूप में बना है। यह पुल यूरोप के सबसे लंबे रोड-रेलब्रिज में से एक है, जिसमें सड़क और रेलवे एक ही ढांचे में एक-दूसरे के समानांतर चलता है।
“ओरेसंड ब्रिज” की अनूठी डिजाइन इसे विश्व में विशिष्ट बनाता है। इसमें दो स्तर हैं, ऊपर की ओर चार लेन की सड़क है, और नीचे की ओर दोहरी रेल लाइन। यह दोहरे उपयोग वाला पुल न केवल यात्रियों के लिए बल्कि मालवाहनों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका निर्माण 1995 में शुरू हुआ और 1 जुलाई 2000 को इसे जनता के लिए खोल दिया गया।
इस ब्रिज की एक खास विशेषता यह है कि इसका एक हिस्सा पानी के ऊपर पुल है और दूसरा हिस्सा 'ड्रॉगर सुरंग' (Drogden Tunnel) के रूप में समुद्र के नीचे से गुजरता है। यह सुरंग 4 किलोमीटर लंबी है और कृत्रिम द्वीप 'पेबरहोल्म' (Peberholm) से शुरू होती है। यह द्वीप विशेष रूप से इस परियोजना के लिए निर्मित किया गया था ताकि रेल और सड़क को सुरंग में ले जाया जा सके।
समुद्र के ऊपर पुल बनाना कोई आसान कार्य नहीं था। तकनीकी टीमों ने समुद्र की गहराई, जलवायु, समुद्री यातायात और पर्यावरणीय प्रभाव जैसे अनेक पहलुओं का गहन अध्ययन किया। इंजीनियरों ने इसे इस तरह डिजाइन किया कि यह भूकंप, समुद्री तूफानों और भारी यातायात दबाव को भी सह सके।
“ओरेसंड ब्रिज” ने डेनमार्क और स्वीडन के बीच न केवल यात्रा को आसान बनाया, बल्कि व्यापार, पर्यटन और रोजगार के नए अवसर भी खोले। हर दिन हजारों लोग इस पुल से यात्रा करते हैं, कुछ काम के सिलसिले में, कुछ पर्यटन के लिए। इसके चलते दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी संपर्क और सहयोग भी बढ़ा है।
“ओरेसंड ब्रिज” केवल एक पुल नहीं है, बल्कि यह आधुनिक इंजीनियरिंग, राजनीतिक सहयोग और क्षेत्रीय एकता का प्रतीक है। यह दिखाता है कि कैसे मानव प्रयास और विज्ञान मिलकर प्राकृतिक बाधाओं को पार कर सकता है। यह पुल यह भी सिखाता है कि जब दो देशों के बीच विश्वास की नींव होती है, तो उन्हें जोड़ने वाले सेतु अपने आप बन जाते हैं, कभी लोहे और सीमेंट के, तो कभी रिश्तों और सहयोग के।
