मृत्यु के बाद होता है आत्मा का पुनर्जन्म

Jitendra Kumar Sinha
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"जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु: ध्रुवं जन्म मृतस्य च" अर्थात् जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है और जिसकी मृत्यु हुई है उसका पुनर्जन्म भी निश्चित है। यह श्लोक जीवन और मृत्यु के चक्र का शाश्वत सत्य बताता है। भारतीय दर्शन, वेद, पुराण और उपनिषदों में मृत्यु और पुनर्जन्म का रहस्य विस्तार से बताया गया है।

भारतीय शास्त्रों में आत्मा को "अजर-अमर" बताया गया है। शरीर का नाश निश्चित है, लेकिन आत्मा कभी नष्ट नहीं होता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि  "न जायते म्रियते वा कदाचित् | नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।।" अर्थात् आत्मा न जन्म लेती है और न ही कभी मरती है। आत्मा शाश्वत है और शरीर केवल उसका अस्थायी आवास है। मृत्यु केवल एक शरीर से दूसरे शरीर में आत्मा का परिवर्तन है, जिसे पुनर्जन्म कहते हैं।

शतपथ ब्राह्मण में आत्मा के पुनर्जन्म का उल्लेख मिलता है। इसमें बताया गया है कि आत्मा मृत्यु के बाद अपनी कर्म-लीला के अनुसार, नए शरीर की खोज करती है। उपनिषदों में कहा गया है कि आत्मा एक क्षण से भी कम समय में या अधिकतम 30 सेकंड के भीतर एक शरीर से निकलकर दूसरे शरीर में प्रवेश कर सकती है। यह आत्मा की गति और उसकी सूक्ष्मता को दर्शाता है।गरुड़ पुराण में आत्मा की मृत्यु के बाद की यात्रा का बहुत विस्तृत विवरण मिलता है। इसमें बताया गया है कि आत्मा कभी तुरंत नया शरीर प्राप्त करता है, तो कभी उसे 3 दिन, 13 दिन, 6 महीना या यहां तक कि एक साल तक इंतजार करना पड़ता है। यदि आत्मा को नया शरीर नहीं मिलता है, तो वह पितृलोक, यमलोक या स्वर्गलोक की यात्रा करता है। वहीं कुछ आत्माएं अधूरी इच्छाओं के कारण भटकती रहती हैं।

कई बार किसी व्यक्ति के जीवन में बहुत अन्याय होता है। यदि उस अन्याय के कारण उसकी मृत्यु हो जाती है, तो आत्मा शांति प्राप्त नहीं कर पाता है। वह प्रतिशोध या बदला लेने के लिए पुनर्जन्म लेता है। ऐसी आत्माएं अपने पिछले जन्म के कष्टों का हिसाब चुकाने के लिए धरती पर लौट आती हैं। दुर्घटना, हादसा, या प्राकृतिक आपदा से यदि किसी की अकाल मृत्यु होता है, तो उसकी कई इच्छाएं अधूरा रह जाता है। ऐसी ही इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए आत्मा को पुनर्जन्म लेना पड़ता है। वह व्यक्ति जो अपने जीवन में अन्याय, अत्याचार और पाप कर्म करता है, उसकी आत्मा मृत्यु के बाद भी शांति प्राप्त नहीं कर पाता है। ऐसे व्यक्ति को पुनर्जन्म लेना पड़ता है ताकि वह अपने पापों का फल भोग सके। यह जन्म आत्मा के लिए प्रायश्चित्त का साधन बन जाता है। यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक पुण्य करता है, तो उसकी आत्मा भी पुनर्जन्म लेता है। लेकिन ऐसे लोग अगले जन्म में सुख-समृद्धि और सम्मान से परिपूर्ण जीवन जीता है। कई लोग अपने जीवन में साधना और तपस्या के मार्ग पर होते हैं, लेकिन अचानक मृत्यु के कारण उनकी साधना अधूरी रह जाती है। ऐसी आत्माएं पुनर्जन्म लेती हैं ताकि वे अपनी अधूरी साधना को पूरा कर सकें और मोक्ष की ओर अग्रसर हों।

जब शरीर काम करना बंद कर देता है, आत्मा शरीर को त्याग देता  है।  आत्मा अपने सूक्ष्म शरीर के साथ मृत्यु लोक से निकलती है। गरुड़ पुराण के अनुसार, यमराज के दूत आत्मा को उसके कर्मों के आधार पर आगे की दिशा तय कराते हैं। आत्मा अपने संचित कर्मों और इच्छाओं के अनुसार नया शरीर प्राप्त करता है। आत्मा एक नए जीवन के रूप में पुनः जन्म लेता है।

भारतीय दर्शन में पुनर्जन्म का सिद्धांत कर्म के नियम से जुड़ा हुआ है। सत्कर्म करने वाले व्यक्ति का अगला जन्म सुखमय होता है। पापकर्म करने वाले व्यक्ति के आत्मा को दुख भरे जीवन में पुनर्जन्म लेना पड़ता है। मिश्रित कर्म वाले अधिकांश लोगों का जन्म अच्छे और बुरे कर्मों के मिश्रण से होता है, जिससे उनका जीवन सुख-दुख से भरा होता है।

शांतनु और देवव्रत (भीष्म पितामह) पिछले जन्म के कर्मों के कारण उन्हें गंगा पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ा। सावित्री-सत्यवान की कथा के अनुसार, सत्यवान को अपने पूर्व जन्म के कर्मों के कारण अल्पायु मिला था। बालक ध्रुव को उनकी तपस्या और भक्ति के कारण अगले जन्म में दिव्य लोक प्राप्त हुआ था। कई संतों और ऋषियों ने अपने शिष्यों को पिछले जन्म की बातें बताई हैं। दक्षिण भारत के संत श्री रामकृष्ण परमहंस और श्री रमण महर्षि ने भी पुनर्जन्म की वास्तविकता को स्वीकार किया है।

आज विज्ञान भी पुनर्जन्म के रहस्यों को सुलझाने का प्रयास कर रहा है। कई बच्चों ने अपने पिछले जन्म की बातें बताई हैं, जिन्हें सत्यापित भी किया गया है। पैरासाइकोलॉजी क्षेत्र के वैज्ञानिक पुनर्जन्म और आत्मा की यात्रा पर शोध कर रहे हैं। डॉ. इयान स्टीवेंसन प्रसिद्ध वैज्ञानिक ने हजारों बच्चों के पिछले जन्म की घटनाओं को दर्ज किया है और पुनर्जन्म को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास किया है ।

भारतीय दर्शन के अनुसार, आत्मा का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है। पुनर्जन्म का चक्र तब तक चलता है, जब तक आत्मा सभी इच्छाओं, पाप और पुण्य के बंधनों से मुक्त नहीं हो जाता। मोक्ष की प्राप्ति के लिए आवश्यक है सत्कर्म और धर्म पालन, भक्ति और साधना, ज्ञान और वैराग्य, ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण।

मृत्यु और पुनर्जन्म जीवन का अभिन्न सत्य है। आत्मा कभी नष्ट नहीं होती, केवल शरीर बदलता है। अधूरी इच्छाएं, कर्मों का बंधन, साधना और पुण्य-पाप आत्मा को पुनः जन्म लेने के लिए विवश करता है। पुनर्जन्म केवल दंड नहीं है, बल्कि आत्मा को अपनी यात्रा को पूरा करने का अवसर भी है। इसलिए चाहिए कि अपने वर्तमान जीवन को सत्कर्म, भक्ति और साधना से सजाएं, ताकि आत्मा पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष की ओर अग्रसर हो सके।



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