आभा सिन्हा, पटना
भारत की सनातन परंपरा में 51 शक्तिपीठों का विशेष महत्व है। यह वह पावन स्थल हैं, जहां भगवती सती के अंग गिरे थे और प्रत्येक स्थान पर देवी ने एक विशेष रूप में अवतार लिया। इन स्थलों की शक्ति और भैरव की महिमा अपार माना जाता है। इन्हीं में एक है “हिंगलाज शक्तिपीठ”, जो कि आज के पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है। यह वह स्थल है जहां माता सती का ब्रह्मरंध्र (सिर) गिरा था। इसे सबसे महत्वपूर्ण और गूढ़ शक्तिपीठों में एक माना जाता है।
“हिंगलाज शक्तिपीठ” पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के हिंगोल नेशनल पार्क क्षेत्र में, कराची से लगभग 125 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। यह स्थान हिंगोल नदी के तट पर, उबड़-खाबड़ रेगिस्तानी इलाकों और चट्टानी पहाड़ियों के बीच बसा है।
मान्यता है कि जब भगवान शिव सती के मृत शरीर को लेकर क्रोधित होकर तीनों लोकों में घूमने लगे, तब ब्रह्मांड की स्थिरता बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड किया। उसी क्रम में माता सती का सिर इस स्थान पर गिरा और यह शक्तिपीठ कहलाया।
यहां देवी को “कोटरी या कोट्टवीशा” नाम से पूजा जाता है। यह नाम अत्यंत रहस्यमयी और तांत्रिक महत्ता वाला माना जाता है। कोटरी अर्थात घोर रूप धारण करने वाली, युद्ध व संहार की देवी।
यहां भैरव का नाम है “भीमलोचन” अर्थात विशाल नेत्रों वाला, जो संपूर्ण ब्रह्मांड पर दृष्टि रखने में सक्षम है।
“हिंगलाज शक्तिपीठ” की एक अनूठी विशेषता यह है कि यद्यपि यह पाकिस्तान में स्थित है और वहां पर हिंदुओं की संख्या बहुत कम है, फिर भी यह स्थल हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लिए श्रद्धा का केंद्र है। मुस्लिम समुदाय के लोग इसे "नानी का मंदर" कहते हैं और यहां विशेष प्रकार की दुआ करते हैं। यह धार्मिक समन्वय और सहिष्णुता का जीवंत उदाहरण है।
“हिंगलाज शक्तिपीठ” की यात्रा को 'हिंगलाज यात्रा' कहा जाता है। यह यात्रा अत्यंत कठिन और तपस्वी होती है। भारत से जो श्रद्धालु इस यात्रा पर जाते हैं, उन्हें पाकिस्तान सरकार से विशेष अनुमति लेनी होती है और बलूचिस्तान के दुर्गम क्षेत्रों में से होकर गुजरना पड़ता है। यात्रा के रास्ते में भयंकर मरुस्थल, चट्टानें, बंजर भूमि और कई बार दुर्गम पहाड़ी मार्ग आता है।
हिंगलाज देवी की कोई मूर्ति नहीं है। यहां एक प्राकृतिक चट्टान के रूप में देवी की पिंडी है, जिसे सिंदूर से सजाया जाता है। माना जाता है कि हिंगोल नदी स्वयं देवी की ऊर्जा से संचालित है और इसमें स्नान करने से पापों का नाश होता है। बहुत से तांत्रिक साधक यहां सिद्धियां प्राप्त करने हेतु गुप्त साधनाएं करते हैं। यहां की स्थानीय बलोच जनजातियां भी इस स्थान को अत्यंत पवित्र मानता है और इसके संरक्षण में सहयोग करता है।
कुछ ग्रंथों में उल्लेख है कि सम्राट विक्रमादित्य ने भी इस स्थान की यात्रा की थी और देवी से अजेयता का वरदान प्राप्त किया था।
“हिंगलाज शक्तिपीठ” को नाथ योगियों का एक विशेष साधनास्थल माना जाता है। गुरु गोरखनाथ और उनके शिष्यों ने यहां दीर्घकाल तक तप किया था।
यह स्थल अघोरपंथियों के लिए भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा है। उनके अनुसार, यहां की ऊर्जा अत्यंत घनीभूत और रहस्यमयी है।
रामकुंड- एक प्राकृतिक जलकुंड जहां तीर्थयात्री स्नान करते हैं। चरणपादुका- वह स्थल जहां माता सती के चरणों के निशान माना जाता है। महालक्ष्मी की गुफा- एक छोटी गुफा जिसमें देवी का रहस्यमयी रूप अनुभव होता है। भैरव गुफा- यहां साधक भैरव को तांत्रिक विधियों से प्रसन्न करते हैं।
“हिंगलाज शक्तिपीठ” पाकिस्तान में उन कुछ गिने-चुने स्थलों में से है, जो आज भी हिंदू धर्म और उसकी संस्कृति की गूंज बनाए हुए है। यद्यपि वहां धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति चिंताजनक रहती है, फिर भी हिंगलाज माता का यह धाम आज भी हर साल हजारों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।
यह स्थल भारत के बाहर है, लेकिन यह हिंदुओं की आस्था, संस्कृति और तांत्रिक परंपरा का अभिन्न अंग है। भारत के कोने-कोने से साधक और श्रद्धालु यहां की यात्रा की कामना करते हैं। राजस्थान और गुजरात के क्षेत्रों में हिंगलाज माता के नाम से कई मंदिर भी स्थापित किए गए हैं, जो इस शक्तिपीठ की महिमा को जीवित रखता है।
राजस्थानी, सिंधी और गुजराती लोकगीतों में हिंगलाज माता का गुणगान होता है। कई भजन और कवित्तों में देवी की शक्ति, उनकी कृपा और यात्रा की कठिनाइयों का वर्णन मिलता है। हिंगलाज यात्रा को जीवन की सबसे कठिन लेकिन पुण्यतम यात्राओं में गिना जाता है।
“हिंगलाज शक्तिपीठ” को भारत के चार प्रमुख तांत्रिक शक्तिपीठों में गिना जाता है। चार प्रमुख तांत्रिक शक्तिपीठ है कामाख्या (असम), तारा पीठ (बंगाल), हिंगलाज (पाकिस्तान) और विंध्याचल (उत्तर प्रदेश)। यह स्थल विशेषकर महाकाली और भैरवी उपासकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
रेगिस्तान में जलधारा- कई यात्रियों ने अनुभव किया कि रेगिस्तान में भटकने के बाद जब उन्होंने देवी से प्रार्थना की, तो उन्हें अचानक जल का स्रोत दिखाई दिया।
मृत्यु से बचाव- एक मुस्लिम सैनिक को जब यहां तैनात किया गया और उसने नानी का मंदर कह कर प्रार्थना की, तो वह दुश्मनों के हमले से चमत्कारिक रूप से बच गया।
बांझ महिलाओं की मनोकामना पूर्ण- माना जाता है कि जो महिलाएं संतान सुख की कामना से यहां आती हैं, उन्हें माता की कृपा से संतान प्राप्त होती है।
धार्मिक कट्टरता का खतरा- पाकिस्तान में बढ़ती कट्टरता के बीच हिन्दू तीर्थस्थलों की सुरक्षा चिंता का विषय है।
संरक्षण प्रयास- पाकिस्तान सरकार द्वारा इसे "हेरिटेज साइट" घोषित किया गया है, और सीमित स्तर पर तीर्थयात्रियों को सुरक्षा दी जाती है।
भारत सरकार की पहल- भारत सरकार की ओर से यह प्रयास किया जा रहा है कि पाकिस्तान में स्थित शक्तिपीठों की यात्रा के लिए विशेष धार्मिक वीजा योजना चलाई जाए।
“हिंगलाज शक्तिपीठ” केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि हिन्दू आस्था, शक्ति उपासना, तांत्रिक साधना और सांस्कृतिक परंपरा का शाश्वत प्रतीक है। यह वह स्थान है, जहां रेगिस्तान की तपती रेत में भी आस्था की नमी है, जहां सीमाओं के पार भी देवी का वरदहस्त फैला हुआ है। यह शक्तिपीठ यह सिखाता है कि भले ही राजनीति, भूगोल और समय बदल जाएं, लेकिन धर्म, श्रद्धा और संस्कृति की जड़ें अडिग और अटल रहती हैं।
