मानव सभ्यता के विकास में सबसे बड़ा योगदान विज्ञान और प्रौद्योगिकी का रहा है। आकाश, तारों और ग्रहों को देखने की जिज्ञासा इंसान के भीतर प्राचीन काल से रही है। पहले लोग ग्रह-नक्षत्रों को देवता मानकर उनकी पूजा करते थे, परंतु आज विज्ञान ने इस रहस्यमयी ब्रह्मांड के अनेक परदा उठाया है। फिर भी, ग्रहों और तारों के जन्म की गुत्थी आज तक पूरी तरह नहीं सुलझ पाई है।
हाल ही में आयरलैंड के गॉलवे विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक ऐतिहासिक खोज की है। उन्होंने पहली बार किसी विशाल ग्रह के जन्म की प्रक्रिया को कैमरे में कैद किया है। यह उपलब्धि सिर्फ विज्ञान की विजय नहीं है, बल्कि मानव की उस अथक जिज्ञासा का प्रमाण है जो ब्रह्मांड के और गहरे रहस्यों की ओर ले जा रही है। जिस ग्रह को देखा गया है उसका नाम रखा गया है ‘विस्पिट 2बी’ (Vesperit 2b)। यह एक गैस दानव (Gas Giant) ग्रह है, जो सौरमंडल के बृहस्पति (Jupiter) से मिलता-जुलता है।
भारत हो या यूनान, मिस्र हो या माया सभ्यता, हर जगह ग्रहों और तारों के बारे में मिथक और कहानियाँ मिलती हैं। किसी ने ग्रहों को देवता कहा, किसी ने उन्हें भाग्य नियंत्रक माना। पुराणों में ग्रहों को नवग्रह कहा गया है, जो मनुष्य के जीवन पर प्रभाव डालता है।
17वीं शताब्दी में गैलीलियो गैलिली ने दूरबीन से ग्रहों का निरीक्षण किया। इसके बाद जोहानेस केपलर और आइजैक न्यूटन ने ग्रहों की गति के नियम स्थापित किए। धीरे-धीरे यह समझ बनी कि ग्रह किसी चमत्कार से नहीं, बल्कि भौतिक प्रक्रियाओं से बनते हैं।
18वीं शताब्दी में वैज्ञानिकों ने प्रस्तावित किया कि ग्रहों का जन्म गैस और धूल के विशाल बादलों (Nebula) से होता है। जब कोई तारा जन्म लेता है, तो उसके चारों ओर बची गैस और धूल की परत से समय के साथ ग्रह बनते हैं। इसे ही ‘नेब्युलर हाइपोथीसिस’ कहा गया।
यह खोज चिली में स्थित मैगलन टेलीस्कोप की मदद से की गई। इस टेलीस्कोप पर लगे MagAO-X (Magellan Adaptive Optics Extreme) उपकरण ने इतनी उच्च-गुणवत्ता की तस्वीरें लीं कि वैज्ञानिकों को ग्रह निर्माण की प्रक्रिया प्रत्यक्ष रूप से दिखाई दी। ‘विस्पिट 2बी’ पृथ्वी से लगभग 430 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है। इसका अर्थ है कि आज जो दृश्य दिख रहा है, वह वास्तव में 430 वर्ष पुराना है। अर्थात् यह ग्रह तब बन रहा था जब धरती पर अकबर का शासन चल रहा था। यह ग्रह बृहस्पति की तरह है, यानि गैस से भरा विशाल ग्रह। इसका आकार इतना बड़ा है कि यह पृथ्वी से कई सौ गुना भारी है।
जब कोई तारा जन्म लेता है, तो उसके चारों ओर गैस और धूल का विशाल चक्र (Protoplanetary Disk) बनता है। यही ग्रहों की जन्मस्थली है। डिस्क में मौजूद सूक्ष्म धूल कण आपस में टकराकर चिपकते जाते हैं। धीरे-धीरे यह चट्टान और फिर ग्रहाकार पिंड का रूप ले लेता है। गैस दानव ग्रहों के मामले में, उनका केंद्र बनने के बाद वे आसपास की गैस को आकर्षित कर लेता है। ग्रह निर्माण कोई त्वरित प्रक्रिया नहीं है। इसे पूरा होने में दसियों लाख से लेकर करोड़ों वर्ष लग सकता है।
अब तक ग्रह निर्माण के बारे में केवल सिद्धांत था। लेकिन पहली बार वैज्ञानिकों ने इस प्रक्रिया को कैमरे में कैद किया है। अब खगोलविद अपने पुराने मॉडल और परिकल्पनाओं की तुलना वास्तविक तस्वीरों से कर सकेंगे। इससे यह समझना आसान होगा कि ग्रह कितनी तेजी से बनते हैं, और किन परिस्थितियों में गैस दानव ग्रह या चट्टानी ग्रह जन्म लेता है। सौरमंडल भी कभी इसी तरह बना होगा। अतः यह खोज पृथ्वी और बृहस्पति जैसे ग्रहों के जन्म की कहानी को समझने का अवसर देती है।
चिली दुनिया का वह स्थान है, जहाँ आकाश सबसे साफ दिखाई देता है। यहां के पहाड़ों पर दुनिया की सबसे शक्तिशाली दूरबीनें लगाई गई हैं। यह एडैप्टिव ऑप्टिक्स सिस्टम है, जो वायुमंडल की अशांति को सुधारता है। इससे तारों और ग्रहों की अत्यंत स्पष्ट तस्वीर मिलती है। इतना सूक्ष्म कि 430 प्रकाश वर्ष दूर किसी ग्रह के जन्म को पकड़ सके।
सौरमंडल में बृहस्पति और शनि दो विशाल गैस दानव ग्रह हैं। इनमें ठोस सतह नहीं होती, बल्कि ये गैस की मोटी परतों से बने होते हैं। ये अपने तारे के चारों ओर बनने वाले छोटे-छोटे चंद्रमाओं की जन्मस्थली होते हैं। इनका गुरुत्वाकर्षण सौरमंडल की स्थिरता में अहम भूमिका निभाता है। यदि बृहस्पति न होता, तो धरती बार-बार धूमकेतुओं और उल्काओं की चपेट में आती।
यह खोज भविष्य में अंतरिक्ष अन्वेषण और ग्रह विज्ञान के लिए नए प्रश्न और नई संभावनाएँ खोलती है। ग्रह कैसे और किन परिस्थितियों में बनते हैं, तो यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि ब्रह्मांड में कितने ग्रह जीवन को सहन कर सकता हैं। क्या पृथ्वी जैसी अनगिनत दुनियाएँ ब्रह्मांड में मौजूद हैं? यदि हाँ, तो क्या वहाँ भी सभ्यताएँ होंगी? यह खोज इन प्रश्नों को और गहराई देती है।
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) पहले से ही कई ग्रहों और आकाशगंगाओं की तस्वीरें भेज रहा है। भविष्य में और भी शक्तिशाली वेधशालाएँ बनाई जाएँगी, जो ब्रह्मांड की और गहराई तक झाँकने का मौका देगी। भले ही ‘विस्पिट 2बी’ तक पहुँचना असंभव है, परंतु तकनीक इंसानों को धीरे-धीरे गहरे अंतरिक्ष की यात्रा के लिए तैयार कर रही है।
भारत भी खगोल विज्ञान के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। आदित्य-एल1 मिशन सूर्य के अध्ययन में जुटा है। चंद्रयान-3 ने चंद्रमा पर लैंडिंग करके नई उपलब्धि हासिल की। भविष्य में भारत भी अंतरिक्ष दूरबीन और ग्रह खोज परियोजनाओं में अहम भूमिका निभा सकता है।
