बिहार चुनाव से पहले इंडिया गठबंधन में मचा घमासान: सीट बंटवारे पर आरजेडी-कांग्रेस आमने-सामने

Jitendra Kumar Sinha
0

 



बिहार विधानसभा चुनाव से पहले इंडिया गठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर चल रही रस्साकशी अब खुलकर सामने आ गई है। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), कांग्रेस और वाम दलों के बीच तालमेल की कमी साफ दिखाई दे रही है। महागठबंधन के नेताओं ने दावा तो किया था कि वे एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगे, लेकिन अब गठबंधन की दरारें गहराती जा रही हैं। दिल्ली से पटना तक लगातार बैठकों के बावजूद सीटों का फॉर्मूला तय नहीं हो पाया, और नतीजतन कई सीटों पर सहयोगी दलों ने एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं। यह स्थिति न सिर्फ गठबंधन की एकता पर सवाल उठाती है, बल्कि जनता के बीच भ्रम भी पैदा कर रही है।


जानकारी के मुताबिक, आरजेडी अधिक सीटों पर दावा कर रही है, जबकि कांग्रेस और वाम दल इसे असंतुलित मान रहे हैं। आरजेडी का कहना है कि उसकी जनाधार और संगठनात्मक ताकत को देखते हुए उसे कम से कम 140 सीटों पर लड़ना चाहिए। दूसरी ओर, कांग्रेस पिछले चुनावों के प्रदर्शन के आधार पर अपने हिस्से की सीटें बढ़ाना चाहती है, जबकि वाम दलों—सीपीआई, सीपीएम और सीपीआई-एमएल—का आरोप है कि उन्हें हाशिए पर रखा जा रहा है। नतीजतन, कई क्षेत्रों में ‘फ्रेंडली फाइट’ की नौबत आ गई है, जहाँ गठबंधन के उम्मीदवार एक-दूसरे के सामने हैं।


वैशाली, कहलगांव और लालगंज जैसी सीटों पर यह मतभेद खुलकर दिखाई दे रहा है। यहां कांग्रेस और वाम दलों ने आरजेडी के उम्मीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारे हैं। इस तरह की अंदरूनी टक्कर विपक्षी गठबंधन की एकजुटता पर गंभीर चोट करती है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह सब उस समय हो रहा है जब एनडीए पहले से ही मजबूत संगठन और रणनीति के साथ मैदान में उतर चुका है। ऐसे में विपक्ष के भीतर यह अंतर्कलह चुनावी नुकसान में तब्दील हो सकती है।


पिछले साल की तरह इस बार भी सीट बंटवारे पर चर्चा बहुत देर तक खिंचती रही। कई बार की बैठकों के बावजूद कोई ठोस समझौता नहीं हो सका। जब नामांकन की आखिरी तारीख नजदीक आई, तब जाकर दलों ने अपने-अपने उम्मीदवारों की घोषणा करनी शुरू की, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि सीट साझा करने का कोई ठोस फॉर्मूला नहीं बन पाया। कांग्रेस ने जहां अपने 20 से अधिक उम्मीदवारों की सूची जारी की, वहीं आरजेडी ने करीब 140 सीटों पर दावे के साथ लिस्ट जारी कर दी। छोटे दलों, जैसे वीआईपी और वाम दलों, ने भी आरजेडी पर दबाव बढ़ाने के लिए अपनी-अपनी लिस्टें जारी कर दीं।


इस पूरे घटनाक्रम से विपक्षी एकता की पोल खुल गई है। आरजेडी और कांग्रेस के बीच सीटों पर तनातनी ने इस गठबंधन की “एकजुटता की कहानी” को कमजोर कर दिया है। वहीं बीजेपी और एनडीए इस स्थिति का खुलकर फायदा उठाने में लगे हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि जिस तरह महागठबंधन ने बिना स्पष्ट रणनीति और समन्वय के सीट बंटवारा किया है, उससे मतदाताओं में यह संदेश जा रहा है कि यह गठबंधन अंदर से बिखरा हुआ है।


गठबंधन के भीतर के सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस हाईकमान राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के बीच बातचीत कई दौर में हुई, लेकिन कोई अंतिम सहमति नहीं बन सकी। वहीं वाम दलों ने चेतावनी दी है कि अगर उन्हें उनकी क्षमता के अनुरूप सीटें नहीं मिलीं, तो वे स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने से पीछे नहीं हटेंगे। इस बीच बीजेपी ने इस अराजक स्थिति पर तंज कसते हुए कहा कि “इंडिया गठबंधन सीट नहीं बाँट पा रहा, बिहार कैसे संभालेगा?”


दरअसल, यह पूरी स्थिति दर्शाती है कि जब गठबंधन के भीतर संवाद की कमी और समय पर निर्णय न हो, तो राजनीतिक तालमेल कैसे बिखर जाता है। जिस एकता के दम पर विपक्ष ने 2024 के लोकसभा चुनाव में उम्मीदें जगाई थीं, वह अब बिहार विधानसभा चुनाव के मुहाने पर कमजोर पड़ती दिख रही है। कांग्रेस और आरजेडी के बीच जो समन्वय कभी लालू-नीतीश युग की राजनीति में देखने को मिलता था, वह अब खो चुका है।


इस पूरे प्रकरण से एक बात साफ है—अगर इंडिया गठबंधन को वाकई मजबूत विकल्प बनना है, तो उसे सीट बंटवारे की राजनीति से ऊपर उठकर नेतृत्व, संगठन और रणनीति में तालमेल बैठाना होगा। वरना, जैसा कि पुराने राजनीतिक जानकार कहते हैं, “जिस गठबंधन की बुनियाद समझौते पर टिकती है, वह असहमति की आंधी में ज्यादा देर टिक नहीं पाती।”

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top