रहस्य, रोमांच और भावनाओं से बुना सिनेमाई जाल है - फिल्म “लोका चैप्टर 1: चंद्रा”

Jitendra Kumar Sinha
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“लोका चैप्टर 1: चंद्रा” एक मलयालम फिल्म है, जो थिएटर से उतरकर अब ओटीटी पर आ चुकी है और हिंदी में भी उपलब्ध है। फिल्म की नायिका चंद्रा (कल्याणी प्रियदर्शन) स्वीडन से बेंगलुरु आती है। वह दिखने में एक साधारण लड़की है, शांत, सौम्य और अपनी दुनिया में खोई हुई। पर उसकी आंखों में ऐसा दर्द है जो किसी गहरी कहानी की ओर इशारा करता है। वह अपनी पहचान छिपाते हुए एक कैफे में नौकरी करने लगती है, मानो खुद को दुनिया से बचाना चाहती हो।

लेकिन जब किस्मत को खेल खेलना होता है, दरवाजे अपने आप खुलते हैं। चंद्रा की टक्कर पड़ती है मुर्गेसन (सैंडी) से, जो शहर में अंग तस्करी के काले धंधे का सरगना है। उसका संसार हिंसा, धोखे और खून से सना है। चंद्रा उससे भिड़ती है और यहीं से शुरू होता है संघर्ष, जो उसके अतीत की परतें भी उधेड़ देता है। फिल्म का सौंदर्य इस बात में है कि यह हर मोड़ पर एक नया रहस्य खोलती है। चंद्रा कौन है? वह स्वीडन से क्यों आई? और क्या वह मुर्गेसन जैसे शैतानी नेटवर्क को चुनौती देकर खुद को बचा पाएगी? इन सवालों के जवाब कहानी के साथ धीरे-धीरे खिलते हैं।

कल्याणी प्रियदर्शन ने चंद्रा के किरदार में ऐसी नाजुकता और ताकत दिखाई है कि दर्शक उससे जुड़ जाते हैं। उनकी आंखें कई बार शब्दों से अधिक बोलती हैं। सैंडी ने एक डरावने और चालाक विलन के रूप में अपनी पकड़ मजबूत दिखाई है। अन्ना बेन, अरुण कुरियन और बाकी कलाकारों ने भी कहानी के ताने-बाने को मजबूती दी है।

निर्देशक डी. अरुण का निर्देशन शांत पानी पर तैरती नाव जैसा है, जिसके नीचे धाराएँ खतरनाक हैं। कैमरा वर्क शहर की रफ्तार और चंद्रा के भीतर की उथल-पुथल दोनों को महसूस कराता है। बैकग्राउंड संगीत तनाव और रहस्य को जीवित रखता है।

“लोका चैप्टर 1: चंद्रा” सिर्फ क्राइम और थ्रिलर नहीं है। यह मानव संवेदनाओं और छिपे घावों की कहानी है। यह दिखाती है कि हर शांत चेहरा भीतर एक जंग लड़ रहा हो सकता है।

जो दर्शक रहस्य, सस्पेंस, स्टाइलिश नरेशन और मजबूत महिला किरदारों को पसंद करते हैं, उनके लिए यह फिल्म एक बेहतरीन अनुभव है। साथ ही इसका टाइटल यह भी संकेत देता है कि कहानी आगे बढ़ेगी। यानि यह सिर्फ शुरुआत है। यह फिल्म एक धीमी आग की तरह है, जो अंत तक आते-आते ज्वाला बन जाती है।



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