“नर्मदा (शोणाक्षी) शक्तिपीठ” (देवी सती का दायाँ नितंब गिरा था)

Jitendra Kumar Sinha
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आभा सिन्हा, पटना 

भारत की आध्यात्मिक परंपरा में ऐसे अनेक तीर्थ हैं जो सदियों से साधकों, ऋषियों, तपस्वियों और श्रद्धालुओं के लिए शक्ति एवं ज्ञान का स्रोत रहा है। परंतु जिन स्थानों को ‘शक्तिपीठ’ कहा जाता है, उसका महत्त्व सामान्य तीर्थों से कहीं अधिक है। यह वह स्थल है जहाँ देवी सती के अंग, आभूषण या रक्त की बूंदें गिरी थी। ऐसी ही अद्भुत और गहन पवित्रता से भरा एक शक्तिपीठ है “नर्मदा (शोणाक्षी) शक्तिपीठ”, जो मध्यप्रदेश के अमरकंटक में स्थित है। यह वही स्थल है जहाँ माता सती का दायाँ नितंब गिरा था। यही कारण है कि यहाँ देवी को नर्मदा तथा भैरव को भद्रसेन कहा जाता है।

नर्मदा शोणाक्षी शक्तिपीठ केवल एक तीर्थ नहीं है, बल्कि सनातन संस्कृति का जीवन-स्रोत, आध्यात्मिक ऊर्जाओं का केंद्र, और नर्मदा की उद्गमस्थली होने के कारण भारतीय चित्त की ‘माँ’ की तरह पूजनीय है।

अमरकंटक भारत के मध्य में स्थित एक दुर्लभ भू-वैज्ञानिक क्षेत्र है, जहाँ विंध्य, सतपुड़ा और मैकल पर्वत श्रृंखलाएँ एक संगम बनाती हैं। इसे ‘तीन नदियों की जननी’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ से नर्मदा, सोन, जोहिला, इन तीन महानदियों का पवित्र उद्गम होता है। अमरकंटक को लेकर स्कंद पुराण में कहा गया है कि “त्रिषु नद्योः मूलभूतं अमरकण्टकं पवित्रम्।” यह भूमि इतनी आध्यात्मिक ऊर्जा से भरी है कि यहाँ किए गए जप-तप का फल कई गुना अधिक माना जाता है।

भारतीय संस्कृति में नर्मदा को नदी नहीं, ‘जीवित देवी’ माना जाता है। नर्मदा परिक्रमा इसका प्रमाण है, जिसमें लोग 3500 किलोमीटर का कठिन यात्रा-वृत करते हैं। यह यात्रा किसी नदी के किनारे नहीं, बल्कि माँ के स्वरूप में पूर्ण विश्वास के कारण होती है। शास्त्रों में कहा गया है कि “गंगे च यमुने चैव, गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिंधु कावेरी, जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु॥” इस मंत्र में नर्मदा का विशेष स्थान है, क्योंकि यहाँ स्नान करने से पाप कटता नहीं है, बल्कि समूल नष्ट हो जाता है।

“नर्मदा (शोणाक्षी) शक्तिपीठ” का विश्वास है कि नर्मदा का उद्गम केवल जल का उद्भव नहीं, बल्कि शक्ति का उदय है। यही कारण है कि इस स्थल पर नर्मदा जल को “साक्षात् माँ की कृपा-धारा” कहा जाता है।

दक्ष यज्ञ का प्रसंग हर भारतीय को ज्ञात है। जब भगवान शंकर के अपमान से सती ने अग्नि में देह त्याग दी, तब शिव ने उनके शरीर को कंधे पर उठाकर पूरे सृष्टि-पथ पर तांडव किया। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित किया। इन्हीं भागों में से माता का दायाँ नितंब जहाँ गिरा, वही स्थान आज “नर्मदा (शोणाक्षी) शक्तिपीठ” है। इसे शोणदेश इसलिए कहा गया है क्योंकि नर्मदा का उद्गम ‘शोणा’ (लाल व मिट्टीयुक्त) पर्वत क्षेत्र में है। दायाँ नितंब गिरने के कारण यहाँ शोण-ऊर्जा (लाल शक्ति) का संचार है। इस भूमि का रंग भी कहीं-कहीं लालिमा लिए हुए है। इसी कारण से इस शक्तिपीठ की शक्ति को नर्मदा तथा भैरव को भद्रसेन कहा गया है।

‘शोण’ का अर्थ है, लाल, उर्जा, तेज, शौर्य और मातृत्व। माता शोणाक्षी में इन पंचगुणों का संगम है। इस शक्तिपीठ में देवी का स्वरूप उग्र नहीं, मातृभाव से भरा है, तामसी नहीं, रजसिक और तेजस्वी है, करुणा से परिपूर्ण और संतुलित ऊर्जा का केंद्र है।

हर शक्तिपीठ में भैरव की उपस्थिति अनिवार्य है। यहाँ के भैरव भद्रसेन कहलाते हैं। ऐसा माना जाता है कि शोणदेश की रक्षा का दायित्व भद्रसेन को सौंपा गया है। नर्मदा जल की शुद्धता भी भैरव के तप से सुरक्षित है। अमरकंटक की दैवी ऊर्जा उन्हीं के कारण संतुलित रहती है। यहाँ भैरव पूजा विशेष रूप से की जाती है।



अमरकंटक को ऋषियों का निवास स्थान कहा गया है। यहाँ पर कपिल मुनि, कर्दम ऋषि, ऋषि अगस्त्य, मैकल राजा और दुर्बासा ऋषि ने तप किया था। नर्मदा उद्गम क्षेत्र में अनेक आश्रमों और गुफाओं के अवशेष आज भी मिलते हैं।

उद्गम स्थल से थोड़ा आगे बहती कपिल धारा वह स्थान है जहाँ कपिल मुनि ने कठोर तप किया था। नर्मदा का जल गिरता है जैसे स्वयं माँ अपनी ऊर्जाओं को पृथ्वी पर बरसा रही हो।

नर्मदा परिक्रमा किसी सामान्य यात्रा का नाम नहीं है। यह 3500 किलोमीटर लंबी और महीनों चलने वाली साधना है। यह परिक्रमा पूर्णतः पवित्र, अत्यंत कठिन और जीवन-परिवर्तनकारी माना जाता है। परिक्रमावासी कहते हैं कि “गंगा स्नान करती है, पर नर्मदा दर्शन देती है।” यानि नर्मदा की कृपा किसी पात्रता पर नहीं, कृपा दृष्टि पर आधारित है।

विश्व के वैज्ञानिक भी मानते हैं कि नर्मदा के जल में अन्य नदियों की तुलना में अधिक सकारात्मक आयन पाए जाते हैं, जो मन और शरीर दोनों को शुद्ध करते हैं। श्रद्धालुओं का अनुभव है कि यहाँ आते ही मन हल्का हो जाता है। दिमाग की बेचैनी समाप्त होती है और नकारात्मक विचार दूर हो जाते हैं। कई साधक इसे “Psychic Cleanliness Zone” कहते हैं। नर्मदा से स्वाभाविक रूप से बनने वाले शिवलिंग को बाणलिंग कहते हैं। यह शक्तिपीठ इन्हीं बाणलिंगों का मूलस्थान माना जाता है।

शोणदेश शक्तिपीठ आधुनिक नहीं, बल्कि प्राकृतिक शक्ति केंद्र है।  यहाँ मंदिर साधारण, शांत, प्राकृतिक वातावरण से घिरा और गहन आध्यात्मिक स्पंदन से युक्त है। यहाँ वातावरण में घने जंगलों की सुगंध, पक्षियों की मधुर ध्वनि, नर्मदा जल का कलकल और पहाड़ियों की शांति, सब मिलकर एक दिव्य अनुभूति कराता है।

नर्मदा को तिल, अक्षत, दूर्वा, पुष्प और दीप अर्पित किया जाता है। यह माँ के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। नवरात्र में यहाँ अखंड ज्योति, दुर्गा सप्तशती पाठ, कन्या पूजन और नर्मदा महाआरती विशेष रूप से होते हैं। हर अमावस्या को भैरव तंत्र का विशेष विधान किया जाता है।

ऋग्वेद में नर्मदा को “देव नदी” कहा गया है। राम अपने वनवास काल में नर्मदा के तट से गुजरे थे। उन्होंने कहा था कि “नर्मदा का जल परम पवित्र है।” अर्जुन ने नर्मदा तट पर तप कर पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति की थी। स्कंद पुराण में नर्मदा को “पाप नाशिनी, मोक्षदायिनी और सिद्धि प्रदायिनी” कहा गया है।

नर्मदा पश्चिम की ओर बहने वाली दुर्लभ नदियों में से एक है। यह इसे विशिष्ट बनाती है। नर्मदा दुनिया की सबसे प्राचीन नदियों में से है यह हिमालय से भी पुरानी मानी जाती है। मान्यता है कि “नर्मदा जल में डूबे शव को मुकुति मिलती है।” 

बहुत से भक्त बताते हैं कि अचानक जीवन की समस्याएँ हल होने लगीं, मन में क्रोध, भय, अवसाद समाप्त हो गया, नर्मदा जल से अद्भुत उपचार हुआ, माता के समक्ष बैठते ही आँसू बहने लगे, ध्यान में अद्भुत प्रकाश दिखाई दिया। कई विदेशी साधक यहाँ महीनों ध्यान करते हैं।

अमरकंटक के प्रमुख स्थल नर्मदा उद्गम, कपिल धारा, दुग्ध धारा, माई की बगिया, श्री जैन मंदिर, सरस्वती मंदिर, सोन उद्गम स्थल है। यहाँ की जनजातियाँ बैगा, गोंड और कोरकू है। नर्मदा को धरती की माता मानकर पूजा करती हैं। नर्मदा का स्वरूप शरीर को शुद्ध, मन को शांत और आत्मा को पवित्र कर देता है। भारतीय दार्शनिक परंपरा में नर्मदा ध्यान योग, कर्मयोग, साधना और तप, सबकी प्रेरणा है।

नर्मदा (शोणाक्षी) शक्तिपीठ  ऊर्जा केंद्र है जहाँ मन स्वतः स्थिर हो जाता है। यहाँ किया गया जप-तप तुरंत फलदायी माना जाता है। केवल दर्शन से भी मनुष्य के जन्म-जन्मांतरों का भार उतर जाता है। देवी शोणाक्षी मातृभाव से हर भक्त को स्वीकार करती हैं।

नर्मदा (शोणाक्षी) शक्तिपीठ कोई साधारण शक्ति स्थल नहीं है। यह नर्मदा की जन्मभूमि, देवी सती का विरल अंगपात स्थल, भैरव भद्रसेन का दिव्य केंद्र, ऋषियों का तपस्थल और संपूर्ण भारतीय संस्कृति का जीवन-स्रोत है। वास्तव में यह वह स्थान है जहाँ “शक्ति, शांति और शिव का अद्भुत संगम” एक ही क्षण में अनुभव किया जा सकता है। अमरकंटक का यह शक्तिपीठ श्रद्धा, तप, प्रकृति, पुराण और दर्शन, इन पाँचों का मिलन स्थल है। यहाँ आने वाला हर भक्त अपने भीतर एक नई ऊर्जा, नया विश्वास और नया जीवन लेकर लौटता है।



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