जटायु की मृत्यु स्थल पर विवाद: लिपाक्षी बनाम कोच्चि

Jitendra Kumar Sinha
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भारतीय पौराणिक कथाओं में वर्णित जटायु रामायण का एक प्रमुख पात्र है। यह वह विशाल पक्षी था जिसने सीता माता की रावण से रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। लेकिन यह प्रश्न आज भी अनसुलझा है कि जटायु ने अंतिम सांस कहाँ ली — आंध्र प्रदेश का लिपाक्षी या केरल का कोच्चि?




लिपाक्षी का दावा: पौराणिक, भाषाई और स्थापत्य प्रमाण





आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में स्थित लिपाक्षी अपने मंदिरों, कलाकृतियों और पौराणिक मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां का वीरभद्र मंदिर 16वीं सदी में बनाया गया और इसकी दीवारों पर रामायण की घटनाओं को खूबसूरती से उकेरा गया है।

स्थानीय मान्यता के अनुसार, जब रावण सीता माता का हरण कर लंका की ओर जा रहा था, तब जटायु ने लिपाक्षी के पास रावण से संघर्ष किया। रावण ने जटायु के पंख काट दिए और वह ज़मीन पर गिर गया। इसी जगह पर भगवान राम आए और घायल जटायु से वार्तालाप किया। जटायु ने अंतिम साँस ली और भगवान राम ने कहा: "ले पाक्षि" (तेलुगू में — उठो, हे पक्षि)। यहीं से इस स्थान का नाम लिपाक्षी पड़ा।




कोच्चि का दावा: आधुनिक प्रतीक और पर्यटन का तड़का





दूसरी ओर, केरल के कोल्लम जिले में जटायु अर्थ सेंटर स्थित है, जहाँ दुनिया की सबसे बड़ी पक्षी मूर्ति — जटायु की विशाल प्रतिमा — बनाई गई है। यह स्थल भी दावा करता है कि यहीं पर जटायु रावण से युद्ध करते हुए गिरा और मृत्यु को प्राप्त हुआ।

हालाँकि यह स्थान पौराणिक मान्यताओं से उतना जुड़ा नहीं है जितना लिपाक्षी, लेकिन आधुनिक दृष्टिकोण से यह एक भव्य पर्यटक स्थल बन चुका है। यहां रोपवे, म्यूजियम, 6D थिएटर, और जटायु की कथा से जुड़ी डिजिटल झांकियाँ लोगों को आकर्षित करती हैं।




इतिहास बनाम पर्यटन: असली सवाल क्या है?

  • लिपाक्षी का दावा ऐतिहासिक, धार्मिक और भाषाई संदर्भों पर आधारित है। मंदिर की शिल्पकला, कथा-प्रसंग, और स्थानीय भाषा में "ले पाक्षि" से जुड़े प्रमाण इसे ज्यादा वजन देते हैं।

  • कोच्चि का स्थल नया है, लेकिन जटायु पृथ्वी केंद्र ने इसे पर्यटक स्थल के रूप में स्थापित कर दिया है, जिससे कई लोग यह मानने लगे हैं कि यही असली जगह है।




तो क्या लिपाक्षी ही असली स्थल है?

अगर हम पारंपरिक रामायण स्रोतों, मंदिर स्थापत्य और भाषाई मूल को देखें, तो लिपाक्षी अधिक प्रामाणिक नजर आता है। वहीं, कोच्चि का स्थल पर्यटन और प्रतीकात्मकता पर अधिक केंद्रित है।

लेकिन जब बात विश्वास और श्रद्धा की हो, तो भारत जैसे देश में एक ही कथा के अनेक स्थल और विविध व्याख्याएँ होना कोई नई बात नहीं।




इतिहास को जानिए, पर्यटन का आनंद लीजिए

लिपाक्षी और कोच्चि — दोनों ही स्थान भारत की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं।

  • लिपाक्षी आपको इतिहास और पौराणिकता में डुबोता है।

  • कोच्चि आपको आधुनिक तकनीक और मनोरंजन के साथ जोड़ता है।

दोनों को देखने जाएँ, लेकिन सच्चाई को जानने के लिए परंपराओं, ग्रंथों और स्थानीय कहानियों को समझना जरूरी है।

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