मुस्लिम समुदाय की चिंताएँ और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई

Jitendra Kumar Sinha
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भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 देशभर में एक नई बहस और विवाद का कारण बन गया है। मुस्लिम समुदाय के कई संगठनों और धार्मिक नेताओं ने इस विधेयक को लेकर गहरी चिंता जताई है। उनका मानना है कि यह विधेयक धार्मिक स्वतंत्रता और वक्फ संपत्तियों की स्वायत्तता पर हमला करता है।


विधेयक के प्रमुख बिंदु:

  • गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति
    अब वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम व्यक्तियों को भी सदस्य बनाया जा सकेगा। यह प्रावधान पहले मौजूद नहीं था और इसी वजह से मुस्लिम संगठनों में असंतोष है।

  • ‘वक्फ बाय यूजर’ का प्रावधान खत्म
    जिन संपत्तियों को केवल धार्मिक उपयोग के आधार पर वक्फ माना गया था, उन्हें अब वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा। इससे कई ऐतिहासिक मस्जिदें, कब्रिस्तान, दरगाहें व अन्य धार्मिक स्थल प्रभावित हो सकते हैं।

  • स्वामित्व का पुनः सत्यापन
    वक्फ बोर्डों को अपनी संपत्तियों के अधिकार साबित करने के लिए जिला प्रशासन से प्रमाणित कराना होगा। यह प्रक्रिया पहले की तुलना में अधिक जटिल मानी जा रही है।


मुस्लिम संगठनों की प्रतिक्रिया

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) सहित कई संगठनों ने इस विधेयक का विरोध करते हुए इसे समुदाय पर "सीधा हमला" कहा है। उनका तर्क है कि यह सरकार की ओर से वक्फ संस्थाओं को नियंत्रित करने की कोशिश है। AIMPLB के महासचिव फज़लुर रहीम मुझद्दिदी ने इस विधेयक को मुसलमानों की धार्मिक पहचान पर हमला करार दिया है और देशव्यापी विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है।


सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई

इस विधेयक को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएँ दायर की गई हैं। सुनवाई के दौरान अदालत ने केंद्र से पूछा है कि अगर वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं, तो क्या हिंदू ट्रस्टों में भी मुस्लिमों को सदस्य बनाया जाएगा? कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या यह कदम धार्मिक संस्थानों की स्वायत्तता में हस्तक्षेप नहीं है?


वक्फ संशोधन विधेयक 2025 न केवल एक कानूनी बदलाव है, बल्कि यह देश की सांप्रदायिक संरचना, धार्मिक स्वतंत्रता और संस्थागत स्वायत्तता से जुड़ा गंभीर विषय बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में जो निर्णय आएगा, वह इस विधेयक के भविष्य और उसके प्रभाव को तय करेगा।

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