हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 142 के उपयोग पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने इसे 'परमाणु मिसाइल' की संज्ञा दी, जो लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए खतरा बन सकती है। यह टिप्पणी तब आई जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजे गए विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित की थी।
क्या है अनुच्छेद 142?
अनुच्छेद 142 भारतीय संविधान का एक विशेष प्रावधान है, जो सुप्रीम कोर्ट को 'पूर्ण न्याय' सुनिश्चित करने के लिए किसी भी आवश्यक आदेश या निर्णय पारित करने की शक्ति देता है। इसका उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया में लचीलापन प्रदान करना है, ताकि न्यायालय उन मामलों में भी न्याय कर सके जहाँ विधायी या कार्यकारी उपाय अपर्याप्त हों।
सुप्रीम कोर्ट की शक्तियाँ
अनुच्छेद 142 के तहत, सुप्रीम कोर्ट:
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किसी भी व्यक्ति को तलब कर सकता है।
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आवश्यक दस्तावेजों की मांग कर सकता है।
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अपनी अवमानना के मामलों की जांच कर सकता है और सजा दे सकता है।
उदाहरणस्वरूप, जनवरी 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ मेयर चुनाव के नतीजों को पलट दिया था, जो अनुच्छेद 142 के तहत उसकी शक्तियों का प्रयोग था।
उपराष्ट्रपति की चिंता
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि न्यायपालिका 'सुपर संसद' की भूमिका निभा रही है, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अनुच्छेद 142 न्यायपालिका के लिए एक 'परमाणु मिसाइल' बन गया है, जिसका उपयोग लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ किया जा सकता है।
अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को व्यापक शक्तियाँ प्रदान करता है, जो न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं। हालांकि, इन शक्तियों का संतुलित और विवेकपूर्ण उपयोग आवश्यक है, ताकि लोकतंत्र की मूलभूत संरचना प्रभावित न हो।