बिहार के मधेपुरा जिला के रानीपट्टी गांव ने लिया फैसला - गांव में न होगी मृत्यु भोज और न होगा कर्मकांड

Jitendra Kumar Sinha
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बिहार राज्य में मधेपुरा जिले के, कुमारखंड प्रखंड स्थित रानीपट्टी गांव में, गांववासियों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया है कि अब इस गांव में किसी की भी मृत्यु होने के बाद न तो मृत्युभोज होगा और न ही कर्मकांड।

इस परंपरा को त्यागने का. गांव वालों का कहना है कि यह सामाजिक कुरीतियां और आडंबरों से मुक्ति की दिशा में एक बड़ा कदम है। 


गांव के वार्ड संख्या 10 निवासी जुगत लाल यादव के निधन के बाद जब ग्रामीण अंतिम संस्कार के लिए एक जगह जमा हुए, तो रानीपट्टी पश्चिम स्थित शिव मंदिर परिसर में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई, बैठक में सभी ने एक सुर में यह निर्णय लिया कि अब किसी की मृत्यु पर, भोज या कर्मकांड गांव में नहीं किया जायेगा।


सूत्रों के अनुसार, गांव के लोग बताते हैं कि इस आंदोलन की नींव 2020 में चंद्रकिशोर दास के निधन के बाद पड़ी थी, जब बिना किसी कर्मकांड के श्रद्धांजलि दी गयी थी। तब कुछ लोगों का विरोध हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे लोग समझने लगे कि असली श्रद्धांजलि दिखावा नहीं, सादगी और सहानुभूति है।


गांव के लोगों का कहना है कि कर्ज में डूबती जिन्दगी ने यह राह दिखायी है। रानीपट्टी पूर्वी और पश्चिमी टोले के लोगों ने यह ठान लिया है कि वे मृत्युभोज और कर्मकांड जैसे आर्थिक बोझ वाले रीति-रिवाजों को अब और नहीं ढोएंगे। गांव के वरिष्ठ नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि मृत्यु के बाद भोज की परंपरा गरीब परिवारों को आर्थिक रूप से तोड़ देती है,  कई बार इस कार्य के लिए लिये गये कर्ज की भरपाई अगली पीढ़ियां भी नहीं कर पाती है। यहां के लोग बताते है कि गांव में ऐसे अनेक उदाहरण है, जहां लोगों ने मां-बाप के निधन पर, भोज करने के लिए कर्ज लिया और वर्षों बाद भी उससे उबर नहीं सके। 

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