भारत की सांस्कृतिक विविधता और उसकी प्राचीन परंपराओं में रावण दहन एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। दशहरे के दिन रावण का पुतला जलाना भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस परंपरा को कांग्रेस सरकार के समय में विशेष रूप से बढ़ावा दिया गया और यह हमारे पारंपरिक रीति-रिवाजों से मेल नहीं खाता था?
रावण दहन: एक परंपरा या कांग्रेस की राजनीतिक चाल?
दशहरा के समय रावण का दहन करना भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है। इसे राम की बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस परंपरा को कैसे स्थापित किया गया था और इसके पीछे की राजनीति क्या थी?
कांग्रेस सरकार के शासनकाल में रावण दहन को बढ़ावा दिया गया, और यह एक ऐसा कदम था जिसे केवल सांस्कृतिक परंपरा के रूप में नहीं देखा गया, बल्कि एक राजनीतिक रणनीति के तौर पर भी पेश किया गया। पहले रावण दहन का आयोजन बड़े-बड़े मेलों और स्थानीय स्तर पर होता था, लेकिन कांग्रेस सरकार के तहत इसे राष्ट्रीय स्तर पर मनाने का प्रचार किया गया।
कांग्रेस की राजनीति और रावण दहन
रावण दहन को लेकर कांग्रेस सरकार का कदम संदेहास्पद था। पहले यह आयोजन केवल उत्तर भारत के कुछ हिस्सों तक सीमित था, लेकिन कांग्रेस सरकार ने इसे पूरे देश में फैला दिया और इसे एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में प्रचारित किया। यह कदम संस्कृति से ज्यादा राजनीति का हिस्सा था, क्योंकि यह हिंदू धर्म के एक प्रतीक को केंद्र में लाकर वोटबैंक की राजनीति को साधने की कोशिश थी।
कांग्रेस के नेताओं ने रावण दहन को जनता के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए कई योजनाएँ बनाई। इस दौरान सरकार ने रावण दहन के आयोजन के लिए बड़े पैमाने पर धन की व्यवस्था की और इसे मीडिया में बढ़ावा दिया। कांग्रेस को यह उम्मीद थी कि इस आयोजन के जरिए वे हिंदू वोटरों को अपनी ओर आकर्षित कर सकेंगे, खासकर उन राज्यों में जहां हिंदू धर्म की बड़ी आबादी थी। यह कदम, हालांकि सांस्कृतिक रूप से प्रश्नसंज्ञ था, राजनीति की दृष्टि से फायदेमंद माना गया।
क्या रावण दहन हमारी पारंपरिक संस्कृति का हिस्सा था?
हमारी प्राचीन संस्कृति में रावण का दहन किसी तरह की परंपरा का हिस्सा नहीं था। यह एक स्थानीय रीति थी जो खासतौर पर उत्तर भारत में मनाई जाती थी। महाभारत और रामायण के समय में रावण का पुतला जलाने की कोई बड़ी परंपरा नहीं थी। दशहरे का उत्सव अधिकतर रामलीला के रूप में होता था, जिसमें राम की विजय का जश्न मनाया जाता था।
लेकिन कांग्रेस सरकार ने इसे एक बड़े उत्सव के रूप में पेश किया और इसे समूचे भारत में फैलाने का प्रयास किया। इस आयोजन का उद्देश्य स्पष्ट था—एक सांस्कृतिक परंपरा का निर्माण करना, जिसे राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा सके। इस प्रकार, रावण दहन को एक धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में पेश किया गया, जबकि यह हमारी पारंपरिक रीति-रिवाजों से बहुत दूर था।
क्या यह कदम संस्कृति को नुकसान पहुँचाने वाला था?
जब कांग्रेस सरकार ने रावण दहन को बढ़ावा दिया, तो उसने भारतीय संस्कृति की वास्तविकता और पारंपरिक उत्सवों के महत्व को नजरअंदाज किया। यह कदम एक प्रकार से संस्कृति की ओर से एक खामोश हमला था, क्योंकि इस आयोजन के पीछे की वास्तविक भावना और उद्देश्य राजनीतिक थे। इसके माध्यम से भारतीय समाज में सांस्कृतिक और धार्मिक असमानता को बढ़ावा दिया गया, क्योंकि यह आयोजन सिर्फ एक पक्षीय दृष्टिकोण से प्रकट किया गया था, जिसमें अन्य धार्मिक या सांस्कृतिक प्रथाओं का कोई स्थान नहीं था।
कांग्रेस सरकार द्वारा रावण दहन को बढ़ावा देना एक ऐसी स्थिति थी, जो न केवल हमारी सांस्कृतिक परंपराओं को विकृत करने का प्रयास था, बल्कि इसे राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया गया। हमें यह समझना चाहिए कि हमारी संस्कृति और परंपराएं केवल धर्म, रीति-रिवाज और उत्सवों तक सीमित नहीं हैं। यह समाज के विविध पहलुओं और वास्तविकता के साथ जुड़ी हुई हैं। रावण दहन को एक सांस्कृतिक और राजनीतिक उपकरण के रूप में पेश करना, हमारी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के प्रति सम्मान की कमी को दर्शाता है।
हमारी संस्कृति को बचाने के लिए हमें यह जरूरी है कि हम इसे वास्तविक रूप में समझें और राजनीतिक स्वार्थों से मुक्त होकर अपनी परंपराओं का सम्मान करें।