भारत का इतिहास या कांग्रेस की राजनीति: शहरी इतिहासकारों का सांस्कृतिक खेल

Jitendra Kumar Sinha
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भारत का इतिहास हजारों साल पुराना और अत्यंत विविधतापूर्ण है। इस समृद्ध इतिहास में न केवल विभिन्न राजवंशों, महान शासकों और महापुरुषों की कथाएँ हैं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपराएँ और मूल्य भी गहरे पैठे हुए हैं। लेकिन आज हम जिस इतिहास को पढ़ते हैं, वह अक्सर राजनीति और शहरी इतिहासकारों के प्रभाव में विकृत हो जाता है। कांग्रेस सरकार और कुछ शहरी इतिहासकारों ने भारत के इतिहास को इस तरह से पेश किया है कि वह वास्तविकता से अधिक मिथक बनकर रह गया है। आइए, इस पर गहराई से विचार करें कि कैसे हमारे गौरवपूर्ण इतिहास को एक झूठे और विकृत रूप में प्रस्तुत किया गया है।


कांग्रेस और इतिहास का राजनीतिकरण

जब 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली, तो कांग्रेस सरकार ने अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए भारतीय इतिहास को एक विशेष दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कांग्रेस ने खुद को स्वतंत्रता आंदोलन का सबसे बड़ा नायक घोषित किया, और यही नरेटिव अब हमारे इतिहास में ढलकर सामने आया।


इतिहास के वास्तविक नायकों, जिनमें सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, और रानी लक्ष्मीबाई जैसे वीर शामिल हैं, को कांग्रेस सरकार ने कमतर किया। इसके बजाय, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू को ही स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े नायक के रूप में प्रस्तुत किया गया। गांधीजी का अहिंसक आंदोलन, भले ही महत्वपूर्ण था, लेकिन यह केवल एक पक्ष था। इसके अलावा, सुभाष चंद्र बोस जैसे लोग जो सशस्त्र क्रांति के पक्षधर थे, उन्हें लगभग भुला दिया गया।


शहरी इतिहासकारों का मिथक निर्माण

कांग्रेस सरकार का समर्थन करने वाले कुछ शहरी इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को एक परिभाषित और 'सुरक्षित' रूप में प्रस्तुत किया। इन इतिहासकारों ने महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, और अन्य कांग्रेस नेताओं को भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा हिस्सा बना दिया, और देश के अन्य महान शासकों और महापुरुषों को नजरअंदाज किया।


इसके साथ ही, शहरी इतिहासकारों ने एक मिथक का निर्माण किया कि भारत का इतिहास केवल अंग्रेजों और उनके द्वारा की गई ‘उधार दी गई सभ्यता’ तक सीमित था। इन इतिहासकारों ने भारतीय संस्कृति और हमारे प्राचीन विज्ञान, गणित, चिकित्सा, और अन्य उपलब्धियों को नजरअंदाज किया।


रावण दहन और हिन्दू विरोधी इतिहास

कुछ शहरी इतिहासकारों ने भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को भी विकृत किया। दशहरे के समय रावण दहन की परंपरा को लेकर इसे न केवल गलत तरीके से पेश किया गया, बल्कि यह भी प्रचारित किया गया कि यह केवल एक ‘हिंदू धर्म का उत्सव’ था, जबकि हमारे प्राचीन ग्रंथों में रावण के दहन को केवल बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में भी देखा गया था।


इस तरह के इतिहासकारों ने भारतीय धार्मिक परंपराओं का उपयोग केवल राजनीति और सांप्रदायिक हितों को साधने के लिए किया। इस दृष्टिकोण से, भारतीय संस्कृति और इतिहास को केवल एक क्षेत्रीय या सांप्रदायिक पहचान तक सीमित कर दिया गया, जो कि भारतीय इतिहास की गहरी और समृद्धता को नकारता है।


अन्य ऐतिहासिक घटनाओं को मिथक में बदलना

कांग्रेस और शहरी इतिहासकारों ने केवल स्वतंत्रता संग्राम और धार्मिक परंपराओं को विकृत नहीं किया, बल्कि कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं को भी मिथक बना दिया। उदाहरण के लिए, हम देखते हैं कि मुगलों और ब्रिटिशों के बारे में इतिहास में उनके योगदान को एक सकारात्मक दृष्टिकोण से दिखाया गया, जबकि इन शासकों ने भारतीय संस्कृति, धर्म और समाज को नष्ट करने में अहम भूमिका निभाई।


मुगल शासकों को हमारे इतिहास में महान और भारतीय संस्कृति के संरक्षक के रूप में प्रस्तुत किया गया, जबकि वास्तविकता यह है कि उन्होंने भारतीय संस्कृति पर अत्याचार किए थे। इसके विपरीत, वीरता और स्वतंत्रता के प्रतीक जैसे छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, और सम्राट विक्रमादित्य को उनके असली सम्मान के साथ प्रस्तुत नहीं किया गया।


कांग्रेस और कुछ शहरी इतिहासकारों ने हमारे इतिहास को उस रूप में प्रस्तुत किया है, जो राजनीति और अपने व्यक्तिगत हितों के अनुरूप हो। उन्होंने हमारे महापुरुषों, शासकों, और सांस्कृतिक धरोहर को गलत तरीके से प्रस्तुत किया, ताकि एक विशेष विचारधारा को बढ़ावा दिया जा सके। यह एक तरह से हमारी संस्कृति और हमारे इतिहास का अपमान है, और इससे आने वाली पीढ़ियों को अपनी वास्तविक पहचान से दूर किया गया है।


हमें यह समझने की जरूरत है कि भारतीय इतिहास केवल एक विचारधारा या राजनीतिक दल का मोहताज नहीं है। हमारा इतिहास हमारी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है, और इसे उसी रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए जैसा वह वास्तविकता में था। हमें इस मिथक को तोड़ने और हमारे इतिहास को सही तरीके से समझने की आवश्यकता है, ताकि हम अपनी असली पहचान को जान सकें और गर्व से अपनी सांस्कृतिक धरोहर को आगे बढ़ा सकें।

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