कालभैरव और बटुक भैरव में अंतर

Jitendra Kumar Sinha
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हिंदू धर्म में भगवान शिव के अनेक रूप हैं, जिनमें भैरव एक अत्यंत रहस्यमय, शक्तिशाली और उपासनीय रूप माने जाते हैं। भैरव के भी कई स्वरूप हैं, लेकिन प्रमुख रूप से कालभैरव और बटुक भैरव की पूजा अधिक होती है। हालांकि दोनों भगवान शिव के ही अवतार हैं, फिर भी इन दोनों में कई महत्वपूर्ण अंतर होते हैं। आइए विस्तार से समझते हैं—




नाम का अर्थ और रूप स्वरूप:

🔸 कालभैरव

  • "काल" का अर्थ है समय और "भैरव" का अर्थ है भय को हरने वाला

  • कालभैरव वह रूप हैं जो स्वयं काल (मृत्यु और समय) को नियंत्रित करते हैं।

  • इनका स्वरूप उग्र, डरावना और रौद्र रूप वाला होता है। वे त्रिशूल, डमरू, खप्पर और श्मशान से जुड़े प्रतीकों के साथ चित्रित किए जाते हैं।

🔸 बटुक भैरव

  • "बटुक" का अर्थ है बालक

  • बटुक भैरव भगवान शिव के ही बाल रूप हैं, जो सरल, सौम्य और भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न होने वाले हैं।

  • उनका रूप एक छोटे बालक का होता है जो भक्तों की रक्षा करता है और बुरी शक्तियों से बचाता है।




उपासना का उद्देश्य:

🔸 कालभैरव

  • रक्षा, तंत्र-साधना, भय से मुक्ति, दुश्मनों पर विजय और काल के भय को समाप्त करने के लिए इनकी उपासना की जाती है।

  • इन्हें "नगर रक्षक" भी कहा जाता है, इसलिए कई नगरों में कालभैरव को द्वारपाल के रूप में पूजा जाता है।

🔸 बटुक भैरव

  • बटुक भैरव की पूजा मुख्यतः घर की सुख-शांति, रोग-नाश, बच्चों की सुरक्षा, और साधारण गृहस्थ जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए की जाती है।

  • इनकी पूजा सरल होती है और विशेष रूप से ब्रह्ममुहूर्त में की जाती है।




साधना और तंत्र से संबंध:

🔸 कालभैरव

  • तंत्र साधना में कालभैरव का स्थान सर्वोच्च है।

  • श्मशान साधना, वाममार्ग और रहस्यमय तांत्रिक अनुष्ठानों में इनका आह्वान किया जाता है।

  • रात्रिकाल में इनकी पूजा अधिक फलदायी मानी जाती है।

🔸 बटुक भैरव

  • यह रूप साधारण जन के लिए अधिक सुलभ और सरल है।

  • सामान्य पूजा, व्रत और भक्ति मार्ग के लिए उत्तम माने जाते हैं।

  • बटुक भैरव की पूजा में घी का दीपक, काले तिल और मीठा भोग अर्पित किया जाता है।





पूजा का दिन और विशेषता:

🔸 कालभैरव

  • कालभैरव की पूजा विशेष रूप से कालभैरव अष्टमी के दिन की जाती है, जो मार्गशीर्ष मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ती है।

  • इस दिन रात्रि जागरण और विशेष तांत्रिक अनुष्ठान किए जाते हैं।

🔸 बटुक भैरव

  • बटुक भैरव की पूजा किसी भी दिन की जा सकती है, लेकिन रविवार और मंगलवार को विशेष माना गया है।

  • बाल रूप होने के कारण इनकी पूजा में भक्ति और प्रेम अधिक महत्त्व रखता है।


कालभैरव और बटुक भैरव, दोनों ही भगवान शिव के अति शक्तिशाली रूप हैं।

  • जहां कालभैरव हमें काल, भय और अंधकार से मुक्त करते हैं,

  • वहीं बटुक भैरव हमें सुरक्षा, शांति और भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।

दोनों की पूजा अलग-अलग मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है। एक रौद्र है, एक सौम्य, लेकिन दोनों ही अपने भक्तों के लिए अत्यंत करुणामय हैं।


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