मिथुन चक्रवर्ती, जिन्हें एक समय नक्सल आंदोलन से जुड़ा माना जाता था, आज पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख हिंदुत्व समर्थक चेहरों में से एक बन गए हैं। उनकी यह यात्रा न केवल राजनीतिक रूप से बल्कि व्यक्तिगत रूप से भी बेहद दिलचस्प और उल्लेखनीय रही है।
प्रारंभिक जीवन और नक्सल आंदोलन
मिथुन का जन्म 16 जून 1950 को कोलकाता में हुआ। कॉलेज के दिनों में वे नक्सल आंदोलन से प्रभावित हुए और उस विचारधारा से जुड़ गए। लेकिन जब उनके भाई की एक दुर्घटना में मौत हो गई, तो उन्होंने यह रास्ता छोड़ दिया और फिल्मों की ओर रुख किया। पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया से अभिनय की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने हिंदी और बंगाली सिनेमा में खुद को स्थापित किया।
राजनीतिक सफर
मिथुन का राजनीतिक करियर वामपंथ से शुरू हुआ। वे पश्चिम बंगाल की वाम सरकारों के करीबी माने जाते थे। 2014 में वे तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में शामिल हुए और राज्यसभा के सदस्य बने। हालांकि, स्वास्थ्य कारणों और संसद में कम सक्रियता को लेकर आलोचना झेलने के बाद 2016 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 2021 में वे भाजपा में शामिल हुए और एकदम नए रूप में, हिंदुत्व समर्थक नेता के रूप में उभरे।
हिंदुत्व की मुखरता और ममता सरकार पर निशाना
भाजपा में आते ही मिथुन ने पश्चिम बंगाल में हिंदुओं की स्थिति को लेकर आवाज़ उठाई। उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आलोचना की और आरोप लगाया कि राज्य में हिंदू समुदाय के साथ अन्याय हो रहा है। उन्होंने मुर्शिदाबाद हिंसा का जिक्र करते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग तक कर डाली। मिथुन ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर 2026 में भाजपा सत्ता में नहीं आई, तो बंगाल में हिंदुओं का रहना और भी मुश्किल हो जाएगा।
मिथुन चक्रवर्ती का सफर नक्सल विचारधारा से शुरू होकर हिंदुत्व के मजबूत प्रवक्ता बनने तक का रहा है। यह परिवर्तन न केवल उनके निजी अनुभवों को दर्शाता है, बल्कि भारतीय राजनीति की उस विविधता और बदलाव को भी उजागर करता है, जहाँ एक व्यक्ति कई रंगों में ढल सकता है। मिथुन अब सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि बंगाल की राजनीति का एक अहम चेहरा बन चुके हैं।