चागोस द्वीपसमूह की कहानी महज समुद्री सीमा या सैन्य अड्डे की नहीं है, यह उस ऐतिहासिक अन्याय की मिसाल है, जिसमें साम्राज्यवादी ताकतों ने स्वदेशी लोगों को उनकी ही जमीन से बेदखल कर दिया था। वर्ष 2025 में, जब ब्रिटेन ने चागोस द्वीप की संप्रभुता आधिकारिक रूप से मॉरीशस को सौंपी, तो यह न सिर्फ एक ऐतिहासिक न्याय था, बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र में एक नई रणनीतिक संतुलन की शुरुआत भी थी।
चागोस द्वीपसमूह हिंद महासागर के मध्य में, मॉरीशस से करीब 2,200 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है। इसमें लगभग 60 छोटे-बड़े द्वीप शामिल हैं। इनमें डिएगो गार्सिया सबसे प्रमुख और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण द्वीप है। डिएगो गार्सिया द्वीप मालदीव और सेशेल्स के बीच स्थित है, जो इसे एक प्रमुख नौसैनिक और वायु सैन्य अड्डा बनाता है। अमेरिका और ब्रिटेन दोनों ने इस द्वीप का इस्तेमाल मध्य-पूर्व और एशिया में सैन्य अभियानों के लिए किया है।
1715 में फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों ने मॉरीशस और चागोस पर कब्जा किया था। 1814 में नेपोलियन की हार के बाद यह क्षेत्र ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बना था। 1965 में मॉरीशस की स्वतंत्रता से पहले ही ब्रिटेन ने चागोस को उससे अलग कर दिया था और इसे British Indian Ocean Territory (BIOT) में शामिल कर लिया था। 1965 से 1973 के बीच, ब्रिटेन ने यहां रह रहे लगभग 2,000 मूल निवासियों को जबरन उनके द्वीपों से निकाल दिया था। इन लोगों के पूर्वजों को फ्रांसीसी और पुर्तगाली उपनिवेशवादियों ने गुलाम बनाकर मेडागास्कर और मोजाम्बिक से लाया था। चागोस के मूल निवासी नारियल के बागानों में काम करते थे और उनकी जीवनशैली पूरी तरह द्वीप की संस्कृति पर आधारित था। उन्हें जबरन मॉरीशस, सेशेल्स और कुछ को ब्रिटेन में पुनर्वासित किया गया था।
ब्रिटेन ने डिएगो गार्सिया को 1966 में अमेरिका को 50 वर्षों के लिए लीज पर दे दिया। इस सौदे के तहत अमेरिका को पोलारिस मिसाइल प्रणाली की बिक्री पर 14 मिलियन डॉलर की छूट मिली। 1971 में अमेरिका ने यहां एक विशाल सैन्य अड्डा विकसित किया। इस आधार से अमेरिका ने ईरान, अफगानिस्तान और इराक में बड़े सैन्य अभियान चलाया। यह अड्डा अब भी सक्रिय है, जहां करीब 2,500 कर्मचारी कार्यरत हैं। 22 मई 2025 को ब्रिटेन ने चागोस की संप्रभुता मॉरीशस को सौंप दी, लेकिन डिएगो गार्सिया को 99 साल के लिए लीज पर लिया। इसके बदले ब्रिटेन मॉरीशस को हर वर्ष लगभग 136 मिलियन डॉलर का भुगतान करेगा।
2019 में, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने अपने सलाहकार मत में कहा कि ब्रिटेन को चागोस द्वीपसमूह मॉरीशस को वापस सौंप देना चाहिए। यह निर्णय मॉरीशस की कूटनीतिक और कानूनी जीत थी। यूएन महासभा में भारत समेत 116 देशों ने मॉरीशस के पक्ष में वोट किया, जबकि सिर्फ 6 देशों ने ब्रिटेन का समर्थन किया। इस फैसले ने ब्रिटेन की नैतिक और राजनीतिक स्थिति को झटका दिया।
भारत ने शुरू से मॉरीशस के दावे का समर्थन किया है। 2019 में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) के फैसले के बाद भारत ने मॉरीशस के पक्ष में वोट देकर एक स्पष्ट संकेत दिया है कि वह औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ खड़ा है। भारत और मॉरीशस के बीच रक्षा, समुद्री निगरानी, तटरक्षक सहयोग और आर्थिक निवेश के क्षेत्रों में संबंध लगातार मजबूत हुए हैं। यह भारत के ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region) नीति का हिस्सा है। हिंद महासागर में चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक मौजूदगी को देखते हुए, चागोस का मॉरीशस को लौटना भारत के लिए रणनीतिक लाभकारी है।
चागोस के निर्वासित मूल निवासियों की कई पीढ़ियाँ अब मॉरीशस, सेशेल्स और ब्रिटेन में रह रही हैं। वे लगातार अपने पूर्वजों की भूमि पर लौटने की मांग कर रहे हैं। हालांकि ब्रिटेन ने संप्रभुता तो सौंप दी, लेकिन नागरिकों की वापसी की प्रक्रिया अभी स्पष्ट नहीं है। 21वीं सदी में भी यह मानवाधिकार मुद्दा वैश्विक चर्चा का केंद्र बना हुआ है। जबरन निर्वासन ने चागोसी संस्कृति, भाषा और जीवनशैली को लगभग नष्ट कर दिया है। चागोसी समुदाय आज भी अपनी पहचान को बचाने के लिए संघर्षरत है।
चागोस खासकर डिएगो गार्सिया का अमेरिकी हितों में शामिल होना कोई नई बात नहीं है। यह द्वीप अमेरिकी सेना के लिए ‘सुपर कैरियर’ जैसा है, जहां से पूरे एशिया और अफ्रीका पर निगरानी रखी जाती है। संप्रभुता सौंपने के बाद भी लीज लेकर द्वीप पर सैन्य मौजूदगी बनाए रखना, ब्रिटेन की साम्राज्यवादी प्रवृत्ति की झलक देता है। यह एक नैतिक प्रश्न है कि क्या आर्थिक सौदेबाजी, ऐतिहासिक अन्याय का विकल्प बन सकता है?
हिंद महासागर आज वैश्विक भू-राजनीति का केंद्र बनता जा रहा है। भारत, अमेरिका, चीन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश यहां रणनीतिक पकड़ बनाने की होड़ में लगे हुए हैं। मॉरीशस की संप्रभुता बहाल होने के बाद चागोस क्षेत्र में नई विकास योजनाओं, पर्यटन, पर्यावरण संरक्षण और क्षेत्रीय सहयोग की संभावनाएं खुल गई हैं।
चागोस द्वीपसमूह की वापसी इतिहास के उस पन्ने को पलटने जैसा है, जिसमें साम्राज्यवादी ताकतों ने अपने हितों के लिए हजारों लोगों की किस्मत बदल दी थी। मॉरीशस के लिए यह एक ऐतिहासिक न्याय है, लेकिन जब तक चागोसी लोगों को उनके द्वीपों पर वापस बसने का अधिकार नहीं मिलेगा, तब तक यह कहानी अधूरी रहेगी। भारत जैसे देश के लिए यह अवसर है कि वह अपने रणनीतिक सहयोग को मानवाधिकार और विकास के मूल्यों के साथ संतुलित करे। ब्रिटेन और अमेरिका को भी यह समझना होगा कि सैन्य आधार पर टिका कोई भी संबंध, मानवता और न्याय के बुनियादी सिद्धांतों से बड़ा नहीं हो सकता है।
