भारत और अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसियां, इसरो (ISRO) और नासा (NASA), मिलकर दुनिया के सामने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में एक नया अध्याय लिखने जा रहा हैं। आने वाला जून महीना दोनों देशों की इस रणनीतिक और वैज्ञानिक साझेदारी के लिए ऐतिहासिक साबित हो सकता है। जहां एक ओर निसार (NISAR) सैटेलाइट का प्रक्षेपण तय किया गया है, तो वहीं दूसरी ओर भारतीय गगनयात्री शुभांशु शुक्ला का अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) की ओर उड़ान भी प्रस्तावित है।
निसार (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) एक संयुक्त अंतरिक्ष मिशन है, जिसमें अमेरिका की नासा और भारत की इसरो मिलकर एक शक्तिशाली पृथ्वी अवलोकन उपग्रह लॉन्च करने जा रहे हैं। उपग्रह लॉन्च करने की अनुमानित तिथि है 18 जून 2025, लॉन्च विंडो रखा गया है 18 जून से 17 जुलाई के बीच, प्रक्षेपण स्थल है सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा और प्रक्षेपण यान है GSLV F-16, इस मिशन के माध्यम से पृथ्वी के सतही बदलावों की सूक्ष्म निगरानी की जा सकेगी, जैसे कि ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र तल में बदलाव, भूकंपीय हलचलें, वनों की कटाई, और कृषि भूमि की स्थिति। निसार, दो प्रकार के सिंथेटिक अपर्चर राडार (SAR) तकनीक L-बैंड और S-बैंड का उपयोग करेगा, जिससे यह दिन और रात, बादलों के बावजूद, पृथ्वी की स्थिति को ट्रैक करने में सक्षम होगा।
वहीं, 8 जून को एक और ऐतिहासिक क्षण भारत के नाम होने जा रहा है। एक्सिओम-4 (Axiom-4) मिशन के तहत भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं गगनयात्री शुभांशु शुक्ला, जो इस मिशन के पायलट होंगे। इसे 8 जून 2025 को लॉन्च किया जाएगा। इस मिशन में कुल चार अंतरिक्ष यात्री शामिल होंगे, जिसमें शुभांशु शुक्ला भारतीय प्रतिनिधि होंगे। यह मिशन भारत के गगनयान कार्यक्रम के लिए भी प्रेरणास्रोत बनेगा, जिसमें भारत अपने नागरिकों को पूर्णतः स्वदेशी प्रणाली से अंतरिक्ष में भेजने की योजना बना रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में भारत और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष अनुसंधान और तकनीकी सहयोग में तेजी से इजाफा हुआ है। निसार मिशन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है, जिसमें नासा ने L-बैंड SAR सिस्टम तैयार किया है, जबकि इसरो ने S-बैंड सिस्टम, सैटेलाइट का ढांचा और प्रक्षेपण यान का निर्माण किया है। इसके अतिरिक्त, अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण, डेटा साझेदारी, चंद्रमा और मंगल मिशनों में सहयोग तथा व्यावसायिक अंतरिक्ष गतिविधियों में भागीदारी जैसे क्षेत्रों में दोनों देश मिलकर काम कर रहा हैं।
भारत के लिए यह मिशन न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि रणनीतिक और कूटनीतिक दृष्टिकोण से भी। यह मिशन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी नेतृत्व को बढ़ावा देगा, गगनयान मिशन के लिए अनुभव और मार्गदर्शन मिलेगा, डेटा आधारित नीतियों को सुदृढ़ करने में मदद मिलेगा और भविष्य में जलवायु और कृषि संकटों के लिए तैयारी कर सकेगा।
