भारत के दो फील्ड मार्शल: सैम मानेकशॉ और के.एम. करिअप्पा की गौरवगाथा

Jitendra Kumar Sinha
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भारतीय सेना के इतिहास में केवल दो अधिकारियों को फील्ड मार्शल की सर्वोच्च सैन्य उपाधि से सम्मानित किया गया है: फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और फील्ड मार्शल कोडंडेरा एम. करिअप्पा। इन दोनों महान सेनानायकों ने न केवल युद्धभूमि में अद्वितीय नेतृत्व का परिचय दिया, बल्कि भारतीय सेना की नींव को भी सुदृढ़ किया।



फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ: 'सैम बहादुर' की वीरगाथा

सैम होरमुज़जी फ्रैमजी जमशेदजी मानेकशॉ, जिन्हें 'सैम बहादुर' के नाम से जाना जाता है, का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में हुआ था। वे 1934 में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हुए और द्वितीय विश्व युद्ध, 1947-48 के भारत-पाक युद्ध, और 1965 के भारत-पाक युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को पराजित किया, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ। इस अभूतपूर्व विजय के लिए उन्हें 1 जनवरी 1973 को भारत के पहले फील्ड मार्शल के रूप में पदोन्नत किया गया।


उनकी सेवाओं के लिए उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया और नेपाल की सेना ने उन्हें मानद जनरल की उपाधि दी। उनकी याद में दिल्ली कैंट में 'मानेकशॉ सेंटर' और बेंगलुरु में 'मानेकशॉ परेड ग्राउंड' स्थापित किए गए हैं।



फील्ड मार्शल के.एम. करिअप्पा: भारतीय सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ

कोडंडेरा मदप्पा करिअप्पा का जन्म 28 जनवरी 1899 को कर्नाटक के कुर्ग जिले में हुआ था। वे 1919 में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हुए और 1947-48 के भारत-पाक युद्ध में पश्चिमी मोर्चे पर भारतीय सेना का नेतृत्व किया।


15 जनवरी 1949 को वे स्वतंत्र भारत के पहले भारतीय कमांडर-इन-चीफ बने, जिससे पहले तक यह पद ब्रिटिश अधिकारियों के पास था। उनकी इस उपलब्धि के उपलक्ष्य में हर साल 15 जनवरी को 'सेना दिवस' मनाया जाता है।


सेना से सेवानिवृत्ति के बाद, वे ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भारत के उच्चायुक्त नियुक्त हुए। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें 'ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एम्पायर', 'मेंशन इन डिस्पैच', और 'लीजियन ऑफ मेरिट' जैसे अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए। 15 जनवरी 1986 को, उन्हें फील्ड मार्शल की उपाधि से सम्मानित किया गया।



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