विश्व की अधिष्ठात्री देवी है- “भुवनेश्वरी”

Jitendra Kumar Sinha
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भारतीय तांत्रिक और वैदिक परंपरा में देवी भुवनेश्वरी का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह देवी संपूर्ण ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। उनके नाम का ही अर्थ है "भुवन" अर्थात "विश्व" और "ईश्वरी" अर्थात "शासिका" या "स्वामिनी"। अतः भुवनेश्वरी वह देवी हैं जो समस्त सृष्टि, पंचमहाभूत और ब्रह्मांडीय क्रियाओं को नियंत्रित करती हैं। यह करुणा, मातृत्व और विश्व के प्रति वात्सल्य का प्रतीक स्वरूप हैं।

देवी भुवनेश्वरी का स्वरूप अत्यंत आकर्षक और आध्यात्मिक दृष्टि से गूढ़ होता है। इनका वर्ण रक्तवर्ण (गहरा लाल) होता है, जो शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है। इनके तीन नेत्र होते हैं, जो त्रिकाल ज्ञान (भूत, वर्तमान और भविष्य) का प्रतीक हैं। चार भुजाओं में से एक में पाश (बंधन का प्रतीक), दूसरी में अंकुश (नियंत्रण का संकेत), तीसरी भुजा में वरमुद्रा (कृपा) और चौथी में अभय मुद्रा (रक्षा) होती है।

इनके स्वरूप की हर विशेषता एक ब्रह्मांडीय रहस्य को दर्शाती है। त्रिनेत्र दर्शाता है दिव्य दृष्टि और समय से परे ज्ञान। पाश और अंकुश संसारिक बंधनों और इच्छाओं को नियंत्रित करने की शक्ति है।वर और अभय मुद्रा बताता है साधक को सुरक्षा और इच्छित फल की प्राप्ति।

भुवनेश्वरी देवी, दस महाविद्याओं में चतुर्थ स्थान पर विराजमान हैं। दस महाविद्याएँ तंत्र साधना की शक्तिशालिनी देवियाँ होती हैं, जो ब्रह्मांड के विभिन्न आयामों को दर्शाती हैं। यदि महाकाली काल की अधिष्ठात्री हैं और तारा ज्ञान की, तो भुवनेश्वरी आकाश तत्त्व और स्थान (स्पेस) की देवी हैं।

तंत्र में भुवनेश्वरी को "स्वरूप शक्ति" कहा गया है। यह शक्ति ब्रह्मांड को रूप देती है, दिशा देती है और उसे धारण करती है। इनकी साधना से साधक को ब्रह्मांडीय आत्मबोध होता है।

भुवनेश्वरी देवी की महिमा अनेक पुराणों में वर्णित है। विशेष रूप से देवी भागवत पुराण, तंत्रसार, कलिका पुराण और शाक्त तंत्र में इनका उल्लेख मिलता है।

एक प्राचीन कथा के अनुसार, जब ब्रह्मा जी को सृष्टि की रचना का दायित्व मिला, तब वे भ्रमित हो उठे। उन्हें दिशा, मार्ग और प्रेरणा की आवश्यकता थी। तभी देवी भुवनेश्वरी प्रकट हुईं और उन्होंने कहा कि 

"हे ब्रह्मा! मैं ही यह जगत हूँ, मुझमें ही सब है, और मुझसे ही सब प्रकट होता है। तू मेरा ध्यान कर, सृष्टि का ताना-बाना अपने आप प्रकट होगा।"

ब्रह्मा जी ने उनका ध्यान किया और तभी उन्हें पंचभूतों, तत्वों, लोकों और जीवों की रचना की प्रेरणा मिली। इस कारण देवी भुवनेश्वरी को सृजन की मातृशक्ति कहा गया है।

भुवनेश्वरी की साधना अत्यंत प्रभावशाली होती है। यह साधना साधक को सांसारिक इच्छाओं से परे ब्रह्मांडीय चेतना तक पहुंचाने की क्षमता रखती है। भुवनेश्वरी साधना से व्यक्ति के जीवन में राजसत्ता, प्रतिष्ठा, संतान सुख, ऐश्वर्य, और आध्यात्मिक शांति मिलती है।

भुवनेश्वरी की साधना के लिए शांत, पवित्र और एकांत स्थान चाहिए। लाल या पीला रंग का आसन। भुवनेश्वरी का मंत्र – "ॐ ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः॥"। साधक इच्छित फल प्राप्ति के लिए संकल्पित होना चाहिए। पूजा के लिए लाल पुष्प, सिंदूर, चंदन, नारियल, और घी दीपऔर साधना अवधि 11, 21 या 40 दिन का उत्तम माना जाता है। साधक को प्रतिदिन मंत्रजप के साथ ध्यान करना चाहिए कि भुवनेश्वरी देवी की लाल आभा उसे आच्छादित कर रही है और वह ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ रहा है।

भुवनेश्वरी के बीज मंत्र और स्तोत्रों में अपार शक्ति होता है। कुछ महत्वपूर्ण मंत्र है-

बीज मंत्र:
"ह्रीं"
यह बीज मंत्र सभी महाविद्याओं में उपयोग होता है, लेकिन भुवनेश्वरी में इसकी शक्ति ब्रह्मांडीय चेतना को जाग्रत करता है।

मूल मंत्र:
"ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं भुवनेश्वर्यै नमः॥"

स्तोत्र (तंत्रसार से)
"भुवनेश्वरीं च विद्महे, महात्रिपुरसुन्दरीं धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात॥"

कुछ शाक्त सम्प्रदायों में भुवनेश्वरी को त्रिपुरा सुंदरी का ही एक रूप माना गया है। जबकि त्रिपुरा सुंदरी लालित्य और सौंदर्य की प्रतीक हैं, वहीं भुवनेश्वरी स्थान और सत्ता की अधिष्ठात्री हैं। त्रिपुरा सुंदरी भुवनेश्वरी में विलीन होती हैं, जब साधना ब्रह्म के साथ पूर्ण एकाकार की स्थिति तक पहुँचती है।

आज के समय में जब व्यक्ति भौतिकता, तनाव, असुरक्षा और संबंधों के विघटन से जूझ रहा है, तब भुवनेश्वरी की साधना जीवन में संतुलन, दिशा और करुणा लाने में सहायक हो सकता है। जैसे-  नेतृत्व गुणों को विकसित करने के लिए। मातृत्व और परिवारिक समरसता के लिए। रचनात्मकता और सृजनात्मक ऊर्जा के जागरण हेतु। राजनीति और प्रशासन में सफलता पाने के लिए।

भारत में कई शक्तिपीठ हैं जहां भुवनेश्वरी की आराधना होती है। वह स्थान है भुवनेश्वरी मंदिर, बगालकोट (कर्नाटक), भुवनेश्वरी शक्तिपीठ, गुवाहाटी (असम), राजराजेश्वरी मंदिर, चेन्नई (भुवनेश्वरी रूप), भुवनेश्वरी मंदिर, त्रिपुरा सुंदरी शक्तिपीठ के पास।  यह मंदिर न केवल आस्था का केंद्र हैं बल्कि ऊर्जा और साधना का भी सशक्त स्थल हैं।

ध्यानयोग में भुवनेश्वरी की छवि को ब्रह्मांडीय आकाश के रूप में देखा जाता है। जब साधक आँखें बंद कर ध्यान करता है और आकाश की लालिमा को भीतर अनुभव करता है, तो वह धीरे-धीरे अपनी सीमाओं से मुक्त होता जाता है। यह ध्यान मानसिक स्थिरता देता है, आत्मा और परमात्मा के मिलन की ओर ले जाता है।

सदियों से ऋषियों, तांत्रिकों और गृहस्थ साधकों ने भुवनेश्वरी की साधना द्वारा चमत्कारी अनुभव किया हैं। किसी ने असंभव संतान सुख पाया। किसी ने राजनीति में अभूतपूर्व सफलता पाई और किसी को जीवन के हर क्षेत्र में सम्मान और प्रभाव प्राप्त हुआ।

भुवनेश्वरी केवल कोई देवी नहीं है, वे स्वयं ब्रह्मांड हैं। उनका ध्यान, उनका मंत्र, उनकी साधना, यह सब हमारे मूल स्वरूप से जोड़ता है। वे करुणा की देवी हैं, शक्ति की अधिष्ठात्री हैं और सृजन की प्रेरणा हैं। जिनका हृदय सच्चा हो, जिनका लक्ष्य उच्च हो, जिनका भाव निष्कलुष हो, भुवनेश्वरी की कृपा उन पर सहज रूप से होती है।



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