आवाज से 5 गुना तेज होगी - देशी “हाइपरसोनिक मिसाइल”

Jitendra Kumar Sinha
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21वीं सदी के युद्धक्षेत्र में सिर्फ शक्ति ही नहीं, बल्कि गति भी निर्णायक बन गई है। अब जीत उसी की होती है जिसकी मिसाइल सबसे पहले दुश्मन तक पहुंचे, वह भी बिना पकड़े। भारत इसी दिशा में अब एक क्रांतिकारी कदम बढ़ा चुका है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) एक ऐसी मिसाइल पर काम कर रहा है, जो आवाज की गति से पांच गुना अधिक तेज है, जिसे “हाइपरसोनिक मिसाइल” कहा जाता है। यह सिर्फ भारत की सैन्य ताकत नहीं बढ़ाएगा, बल्कि भारत को दुनिया की सुपरटेक मिलिट्री क्लब में शामिल कर देगा।

हाइपरसोनिक मिसाइल ऐसी मिसाइल होती है जो माक 5 (Mach 5) या उससे अधिक गति से उड़ती है। "माक 5" यानि आवाज की गति से पांच गुना तेज, यानि लगभग 6,174 किमी प्रति घंटा। इसकी विशेषता है, अत्यंत तेज रफ्तार, कम ऊंचाई पर उड़ान, जिससे रडार से बचना आसान, सटीक निशाना और बीच रास्ता में भी दिशा बदलने की क्षमता। दुनिया में अब तक केवल अमेरिका, रूस, चीन और भारत ही इस तकनीक पर काम कर रहा हैं।

भारत ने वर्ष 2020 में हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) का सफल परीक्षण किया था। यह परीक्षण भारत के तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में ऐतिहासिक कदम था। इसके जरिए यह स्पष्ट हुआ कि भारत में स्क्रैमजेट इंजन (Scramjet Engine) का विकास हो चुका है। हवा से ऑक्सीजन खींचकर ईंधन जलाने की क्षमता हासिल कर ली गई है और मिसाइल रडार को चकमा देने में सक्षम है। हाल ही में ओडिशा में डीआरडीओ ने लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण भी किया, जिसमें नई प्रौद्योगिकियों की जांच की गई।

भारत का स्क्रैमजेट इंजन, हाइपरसोनिक मिसाइल की रीढ़ है। इस इंजन की खासियत है बाहरी हवा से ऑक्सीजन लेकर ईंधन जलाता है (बिना किसी ऑक्सीजन टैंक के), इसे डीआरडीओ ने पूर्ण रूप से स्वदेशी तकनीक से तैयार किया है। यह मिसाइल को हवा में स्थायित्व देता है और लंबी दूरी तय करने की शक्ति प्रदान करता है।

इस हाइपरसोनिक मिसाइल की अनुमानित मारक क्षमता 2000 किमी है। इसका मतलब है कि पाकिस्तान का कोई भी कोना इसकी जद से बाहर नहीं है। चीन के अंदर तक रणनीतिक ठिकानों को नष्ट किया जा सकता है और हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में भारत की पकड़ और भी मजबूत होगी। यह मिसाइल कम ऊंचाई पर उड़ती है। बहुत तेज गति से चलती है, जिससे रडार इसे पहचानने में असफल हो जाता हैं। इसमें सटीक GPS और INS प्रणाली है, जो लक्ष्य पर अचूक निशाना लगाने में मदद करता है और जरूरत पड़ने पर बीच रास्ता में इसका मार्ग भी बदला जा सकता है। यानि यह मिसाइल दुश्मन के किसी भी एंटी-मिसाइल सिस्टम को बेकार कर सकता है।

रूस ने "Avangard" नामक हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहन विकसित किया है, जो परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। चीन ने DF-ZF नाम की हाइपरसोनिक मिसाइल बनाया है, जिसे DF-17 से लॉन्च किया जा सकता है। अमेरिका ने अभी तक कोई हाइपरसोनिक मिसाइल तैनात नहीं किया है, लेकिन वह शोध और विकास में बहुत आगे है। भारत इन तीनों महाशक्तियों की होड़ में तेजी से आगे बढ़ रहा है।

डीआरडीओ प्रमुख डॉ. समीर वी. कामत ने बताया है कि "भारत हाइपरसोनिक तकनीक पर काफी हद तक सफलता पा चुका है। अगले दो-तीन साल में सेना में इसकी तैनाती की संभावना है। यह पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक पर आधारित होगी और दुनिया के सबसे तेज और सबसे घातक हथियारों में एक होगी।"

हाइपरसोनिक मिसाइल से भारत को कोई भी दुश्मन भारत पर हमला करने से पहले दस बार सोचेगा। हमलों का जवाब कुछ ही मिनटों में दिया जा सकेगा। दुश्मन के गुप्त ठिकानों को बिना किसी पूर्व चेतावनी के नष्ट किया जा सकेगा। यह समुद्र में चलते विमान वाहकों को भी निशाना बना सकता है। 

हाइपरसोनिक मिसाइल को विकसित करना कोई आसान कार्य नहीं है। इसमें कई जटिलताएं हैं, इतनी तेज गति से घर्षण की वजह से तापमान बहुत अधिक होता है। सामान्य धातुएं इतनी गर्मी सहन नहीं कर सकती।
इतनी गति में सटीकता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होता है। ऊंचाई, दबाव और गति में संतुलन बनाना कठिन होता है। फिर भी, डीआरडीओ इन सभी बाधाओं को पार करते हुए आगे बढ़ रहा है।

हाइपरसोनिक मिसाइल भारत के ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान का सबसे बड़ा उदाहरण बनकर उभर रहा है। यह मिसाइल पूरी तरह से स्वदेशी डिजाइन, भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा परीक्षण और भारत में ही विकसित तकनीक और संसाधनों से निर्मित है। यह भारत को हथियारों के आयातक से निर्यातक बनाने की दिशा में बड़ा कदम है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले वर्षों में हाइपरसोनिक मिसाइलों की तकनीक अंतरिक्ष आधारित हमलों की नींव रखेगी। भारत यदि इस दिशा में निरंतर प्रगति करता रहा, तो स्पेस-टू-ग्राउंड अटैक सिस्टम विकसित हो सकता है। दुश्मन की सैटेलाइट को मार गिराना संभव होगा और पूरे उपमहाद्वीप में रणनीतिक बढ़त हासिल होगी।

भारत की हाइपरसोनिक मिसाइल न केवल रक्षा शक्ति को मजबूत करेगी, बल्कि यह एशिया में सैन्य संतुलन को भी बदल सकता है। यह मिसाइल सिर्फ रफ्तार ही नहीं, बल्कि रणनीतिक सोच और तकनीकी नवाचार का प्रतीक है।



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