भारत निर्वाचन आयोग ने देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के उद्देश्य से एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाया है। आयोग ने ऐसे 345 राजनीतिक दलों को सूची से बाहर (डीलिस्ट) करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जो 2019 के बाद से किसी भी चुनाव में हिस्सा नहीं लिया हैं और जिनके पास देश में कोई सक्रिय या भौतिक कार्यालय नहीं है।
यह निर्णय मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार की अध्यक्षता में हुई एक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक में लिया गया है, जिसमें निर्वाचन आयुक्त डॉ. सुखबीर सिंह संधू और डॉ. विवेक जोशी भी शामिल थे। आयोग ने यह साफ किया कि देश में वर्तमान में 2800 से अधिक ऐसे राजनीतिक दल पंजीकृत हैं जो गैर-मान्यता प्राप्त हैं, लेकिन फिर भी आयोग की सूची में बने हुए हैं।
आयोग की ओर से बताया गया है कि जिन दलों पर कार्रवाई की जा रही है, उन्होंने न तो 2019 के बाद कोई चुनाव लड़ा है और न ही उनका कोई सक्रिय राजनीतिक गतिविधियों में योगदान रहा है। इसके अलावा, इन दलों के पते पर जब सत्यापन के लिए टीमें भेजी गईं, तो वहां कोई कार्यालय अस्तित्व में नहीं मिला। इससे यह साफ हो गया कि ये दल केवल नाम मात्र के लिए पंजीकृत हैं और कई बार इनके नाम का दुरुपयोग भी होता है, जैसे काले धन की हेराफेरी, चुनावी चंदे में पारदर्शिता की कमी आदि।
भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की जवाबदेही बेहद आवश्यक है। आयोग का यह कदम यह सुनिश्चित करेगा कि केवल वे ही राजनीतिक दल मान्यता प्राप्त बने रहेंगे जो वास्तव में राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं, जनसमस्याओं को उठाते हैं और लोकतंत्र को मजबूत करते हैं।
इसके साथ ही इस निर्णय से चुनावी व्यवस्था में "शेल पार्टीज" (नाममात्र की पार्टियाँ) के दुरुपयोग पर भी रोक लगेगी। इससे चुनावों में पारदर्शिता बढ़ेगी और मतदाताओं का विश्वास लोकतंत्र में और अधिक गहराएगा।
डीलिस्ट की जा रही पार्टियों को अंतिम नोटिस भेजा जा रहा है और यदि वे निर्धारित समय में अपनी गतिविधियों का साक्ष्य नहीं प्रस्तुत कर पाती हैं, तो उन्हें पूरी तरह से सूची से बाहर कर दिया जाएगा। इसके बाद वे चुनाव चिन्ह, चंदा और अन्य सुविधाओं के लिए आयोग के पात्र नहीं रह जाएंगे।
भारत निर्वाचन आयोग का यह निर्णय देश के राजनीतिक परिदृश्य को साफ-सुथरा बनाने की दिशा में एक साहसिक और स्वागतयोग्य पहल है। निष्क्रिय और कागजी दलों को हटाने से सक्रिय, जिम्मेदार और पारदर्शी राजनीति को बढ़ावा मिलेगा। यह कदम आने वाले समय में भारतीय लोकतंत्र की नींव को और अधिक मज़बूत करने वाला साबित होगा।
