एक निर्दोष आदिवासी युवक की जिन्दगी तबाह हो गई, महज पुलिस की लापरवाही और जल्दबाज़ी के कारण। पत्नी की हत्या के झूठे आरोप में 18 महीने जेल की यातना झेलने के बाद अब सुरेश नामक युवक ने कर्नाटक उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया है। उसने 5 करोड़ रुपए मुआवजे और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।
कोडुगू जिले के कुशालनगर तालुक के बसावनहल्ली गांव का रहने वाला आदिवासी युवक सुरेश 2022 में उस वक्त गिरफ्तार किया गया था, जब उसकी पत्नी मल्लिगे रहस्यमयी ढंग से लापता हो गई थी। पुलिस ने बिना ठोस सबूतों के सुरेश पर हत्या का आरोप मढ़ा और उसे जेल भेज दिया।
2025 की शुरुआत में चौंकाने वाला मोड़ तब आया, जब मल्लिगे को मडिकेरी के एक रेस्तरां में देखा गया। पुलिस ने उसे हिरासत में लिया और अदालत में पेश किया। पूछताछ के बाद सामने आया कि वह तीन सालों से जीवित थी और अपनी मर्जी से घर छोड़ कर चली गई थी। अब यह जांच जारी है कि वह इतने वर्षों तक कहां और किन परिस्थितियों में रही।
अप्रैल 2025 में मैसूरु की एक अदालत ने सुरेश को सभी आरोपों से बरी कर दिया। न्यायालय ने यह भी माना कि सुरेश के साथ अन्याय हुआ है और उसे एक लाख रुपये की अंतरिम मुआवजा राशि प्रदान करने का आदेश दिया। लेकिन सुरेश इस राशि को न्यायपूर्ण नहीं मानता है। उसका कहना है कि 18 महीने की मानसिक, सामाजिक और आर्थिक प्रताड़ना का मूल्य इससे कहीं ज्यादा है।
सुरेश ने कर्नाटक उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर 5 करोड़ रुपये मुआवजा और दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय तथा कानूनी कार्रवाई की मांग की है। उसका तर्क है कि केवल मुआवजा नहीं, बल्कि दोषियों को सजा मिलनी चाहिए ताकि भविष्य में किसी निर्दोष को इस तरह की यातना न झेलनी पड़े।
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं है, बल्कि देश की न्यायिक और पुलिस प्रणाली पर सवालिया निशान है। खासकर आदिवासी और वंचित तबकों के खिलाफ कैसे बिना ठोस साक्ष्यों के गंभीर आरोप मढ़ दिया जाता हैं, यह घटना उसका उदाहरण है।
