एक राष्ट्र, एक चुनाव - जेपीसी की अगली बैठक 11 जुलाई को - विशेषज्ञों से होगा मंथन

Jitendra Kumar Sinha
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देश में लंबे समय से बहस का विषय रहा है "एक राष्ट्र, एक चुनाव" अब अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंच रहा है। केन्द्र सरकार द्वारा गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) इस ऐतिहासिक विचार को अमलीजामा पहनाने के लिए सक्रिय रूप से कार्य कर रही है। इसी क्रम में जेपीसी की अगली अहम बैठक 11 जुलाई 2025 को संसद भवन एनेक्सी में आयोजित की जाएगी, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों से सुझाव लिए जाएंगे।

जेपीसी की अध्यक्षता कर रहे भाजपा सांसद पी.पी. चौधरी ने बताया कि समिति संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 की गहराई से समीक्षा कर रही है। इन विधेयकों के माध्यम से ऐसा प्रावधान किया जाएगा, जिससे राष्ट्रपति को वर्ष 2029 में पहली लोकसभा बैठक की तिथि पर अधिसूचना जारी करने का अधिकार प्राप्त हो सके। यही अधिसूचना आगे चलकर केंद्र और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने की प्रक्रिया की आधारशिला बनेगी।

इस पूरे प्रयास का अंतिम उद्देश्य वर्ष 2034 तक देशभर में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना है। यानि एक बार मतदान, एक बार खर्च, और एक बार पूरी सरकार का गठन होगी। इससे न केवल समय और संसाधनों की बचत होगी, बल्कि बार-बार लगने वाली आचार संहिता से प्रशासनिक रुकावटें भी खत्म होगी।

यह विचार देश में सभी राज्यों और केन्द्र सरकार के चुनावों को एकसाथ कराने की परिकल्पना करता है। अभी की व्यवस्था में अलग-अलग राज्यों के चुनाव समय-समय पर होते हैं, जिससे सरकारी कामकाज में रुकावट आती है और चुनावी खर्च कई गुना बढ़ जाता है। इसके पक्ष में तर्क है कि इससे नीतिगत स्थिरता, प्रशासनिक दक्षता और जनता का विश्वास मजबूत होता है।

इस विचार को लागू करने के रास्ते में कई संवैधानिक और व्यावहारिक चुनौतियाँ भी हैं। राज्यों के कार्यकाल में अंतर, राष्ट्रपति शासन की संभावना, गठबंधन सरकारों का भविष्य, और समय से पहले सरकार गिरने की स्थिति में नई व्यवस्था कैसे लागू होगी, यह सब सवाल जेपीसी के सामने प्रमुख मुद्दे होंगे।

जेपीसी की 11 जुलाई को होने वाली बैठक इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव होगी। यदि विशेषज्ञों और सांसदों की सहमति बनती है तो यह भारत के लोकतंत्र के इतिहास में एक क्रांतिकारी परिवर्तन साबित हो सकता है। वर्ष 2034 को लक्ष्य बनाकर चल रही यह योजना न केवल चुनावी सुधारों की दिशा में बड़ा कदम होगी, बल्कि देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी अधिक पारदर्शी, किफायती और प्रभावशाली बनाएगी।

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