आज जब हम अंतरराष्ट्रीय यात्रा की बात करते हैं, तो पासपोर्ट एक अनिवार्य दस्तावेज बन चुका है। यह सिर्फ एक किताब जैसी बुकलेट नहीं है, बल्कि आपकी राष्ट्रीय पहचान, आपकी नागरिकता और आपके वैश्विक अस्तित्व का प्रमाणपत्र है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि इस पासपोर्ट की शुरुआत कब और कैसे हुई? क्या ये सदियों पुरानी अवधारणा है या आधुनिक काल की देन?
माना जाता है कि पासपोर्ट शब्द की उत्पत्ति फ्रांसीसी शब्द ‘passer’ (गुजरना) और ‘port’ (बंदरगाह) से हुई है। यह उस अनुमति को दर्शाता था जो किसी व्यक्ति को सीमाओं या बंदरगाहों से गुज़रने के लिए मिलती थी। सबसे पहले 1414 में इंग्लैंड के राजा हेनरी पंचम ने ऐसे दस्तावेज जारी किया था, जिन्हें औपचारिक रूप से "पासपोर्ट" कहा जा सकता है। यह दस्तावेज किसी विशेष व्यक्ति को राजा की तरफ से यह प्रमाणित करता था कि वह मित्र है, शत्रु नहीं। इसके माध्यम से व्यक्ति को देश की सीमाओं को पार करने की अनुमति मिलती थी।
15वीं से 18वीं शताब्दी तक, पासपोर्ट का उपयोग मुख्यतः व्यापारियों, राजदूतों और राजकीय प्रतिनिधियों तक सीमित था। आम नागरिकों के लिए पासपोर्ट की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि अंतरराष्ट्रीय सीमाएं उतनी सख्त नहीं थीं जितनी आज हैं।
19वीं शताब्दी में जब रेलवे और स्टीम इंजन ने यातायात को तीव्र और व्यापक बनाया, तो लोगों ने एक देश से दूसरे देश में तेजी से आना-जाना शुरू किया। इसका प्रभाव यह हुआ कि कई यूरोपीय देशों ने पासपोर्ट की आवश्यकता को अस्थायी रूप से समाप्त कर दिया क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में यात्रियों की जांच संभव नहीं था।इस दौरान यूरोप में लोग बिना पासपोर्ट के भी यात्रा कर सकते थे। यह दौर था जब अंतरराष्ट्रीय सीमाएं अपेक्षाकृत खुली रहती थी।
कुछ देशों में पासपोर्ट का प्रचलन राजनैतिक नियंत्रण या निगरानी के लिए किया जाता था। लेकिन व्यापक रूप से यह अनिवार्य नहीं था। यह स्थिति प्रथम विश्व युद्ध तक बनी रही।
1914 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद पासपोर्ट एक बार फिर आवश्यक दस्तावेज बन गया। अब राष्ट्रीय सुरक्षा, पहचान सत्यापन और राष्ट्रहित की दृष्टि से सरकारों ने विदेशी यात्राओं पर निगरानी रखनी शुरू की। शरणार्थियों की पहचान और सीमाओं की सुरक्षा के कारण पासपोर्ट प्रणाली को पुनर्जीवित किया गया।
1920 में League of Nations के तत्वावधान में पासपोर्ट और कस्टम्स सम्मेलन हुआ, जिसमें पहली बार एक मानकीकृत पासपोर्ट डिजाइन को मंजूरी दी गई। इस सम्मेलन में पासपोर्ट बुकलेट के आकार, उसमें दी जाने वाली जानकारियां और सुरक्षा मानकों पर सहमति बनी।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई और इसके तहत 1963 में अंतरराष्ट्रीय यात्रा दस्तावेजों को लेकर सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें देशों ने यात्रा नियमों को अधिक सरल और संगठित करने पर बल दिया।
1980 में ICAO (International Civil Aviation Organization) ने मशीन-रीडेबल पासपोर्ट की अवधारणा दी। इससे पासपोर्ट की जानकारी को मशीनों के जरिए तेजी से पढ़ा जा सकता था, जिससे एयरपोर्ट पर समय की बचत और सुरक्षा जांच सशक्त हुई।
21वीं सदी में तकनीकी क्रांति के साथ पासपोर्ट में बायोमेट्रिक्स तकनीक को शामिल किया गया। अब पासपोर्ट में चिप लगा होता है, जिसमें व्यक्ति की फिंगरप्रिंट, रेटिना स्कैन और अन्य बायोमेट्रिक जानकारी संग्रहीत रहता है।
डिजिटल युग में पासपोर्ट डेटा की सुरक्षा भी महत्वपूर्ण हो गया है। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां अब इस बात पर कार्य कर रही है कि ई-पासपोर्ट की जानकारी किसी भी साइबर हमले से सुरक्षित रहे। पासपोर्ट के अंदर अब डिजिटल सिग्नेचर और एन्क्रिप्शन तकनीक अपनाई गई है।
ब्रिटिश काल में पासपोर्ट का उपयोग मुख्यतः यूरोपीय व्यापारियों, राजकीय अधिकारियों और सैनिकों के लिए होता था। भारतीयों को विदेश यात्रा के लिए अंग्रेजी प्रशासन से विशेष अनुमति लेनी पड़ती थी। कई बार यह अनुमति नस्लीय और राजनीतिक आधार पर दी जाती थी या रोक दी जाती थी।
स्वतंत्रता के बाद 1950 में भारत ने अपने नागरिकों के लिए पासपोर्ट जारी करना शुरू किया। लेकिन इसकी प्रक्रियाएं असंगठित थी। 1967 में पासपोर्ट एक्ट पारित हुआ, जिसने पासपोर्ट जारी करने, निरस्त करने और निगरानी की पूरी प्रक्रिया को विधिक ढांचा प्रदान किया।
2000 के दशक में भारत सरकार ने पासपोर्ट सेवा केंद्र (PSK) और ई-पासपोर्ट सेवा पोर्टल की शुरुआत की। इससे आवेदन प्रक्रिया ऑनलाइन हुई, साक्षात्कार प्रक्रिया सरल हुई और ट्रैकिंग की सुविधा भी मिली। 2022 में भारत ने ई-पासपोर्ट परियोजना की शुरुआत की जिसमें पासपोर्ट में एम्बेडेड चिप होता है।
आम नागरिकों के लिए साधारण पासपोर्ट (निला), राजनयिकों और उच्च अधिकारियों के लिए राजनयिक पासपोर्ट (लाल), सरकारी कार्य हेतु यात्रियों के लिए आधिकारिक पासपोर्ट (सफेद), चिप आधारित आधुनिक सुरक्षा सुविधाओं से युक्त ई-पासपोर्ट। जापान, सिंगापुर जैसे देशों के पासपोर्ट दुनिया में सबसे ताकतवर माना जाता हैं क्योंकि इनके धारकों को सबसे अधिक देशों में वीजा-फ्री एंट्री मिलता है। भारत का पासपोर्ट वैश्विक रैंकिंग में मध्यवर्गीय स्थान रखता है, लेकिन यह निरंतर सुधर रहा है। कुछ देशों जैसे न्यूजीलैंड और जाम्बिया का पासपोर्ट काला रंग का होता है।
दुनिया भर में नकली पासपोर्ट का धंधा बड़ा खतरा बना हुआ है। आतंकवादी गतिविधियों, मानव तस्करी और आर्थिक अपराधों में इसका उपयोग होता है। इससे बचाव हेतु बायोमेट्रिक और चिप तकनीक महत्वपूर्ण है। भविष्य में डिजिटल पासपोर्ट मोबाइल ऐप की शक्ल में हो सकता हैं जिसमें पासवर्ड-प्रोटेक्टेड बायोमेट्रिक डेटा हो और जिससे कागज़ी दस्तावेज़ की जरूरत ही न रहे।
आज के समय में पासपोर्ट न केवल अंतरराष्ट्रीय यात्रा का माध्यम है, बल्कि यह राष्ट्रीयता, पहचान और सुरक्षा का प्रतीक बन चुका है। जैसे-जैसे तकनीक विकसित हो रहा है, वैसे-वैसे पासपोर्ट भी स्मार्ट और सुरक्षित बन रहा हैं। हेनरी पंचम के जमाने की एक साधारण राजाज्ञा आज बायोमेट्रिक्स, एन्क्रिप्शन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता से युक्त वैश्विक पहचान का दस्तावेज़ बन चुका है। पासपोर्ट केवल सीमाएं पार करने का माध्यम नहीं, बल्कि यह बताता है कि आप कौन हैं, और दुनिया आपको किस तरह से देखती है।