‘तुलबुल परियोजना’ - भारत फिर से करेगा नियंत्रण मजबूत

Jitendra Kumar Sinha
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भारत ने एक बार फिर स्पष्ट संकेत दे दिया है कि अब पानी की हर बूंद का रणनीतिक उपयोग होगा। वर्षों से विवादों में उलझी तुलबुल नेविगेशन परियोजना को फिर से शुरू करने की तैयारी जोरों पर है। इस परियोजना के दोबारा आरंभ होने की खबर के साथ ही पाकिस्तान को झटका लगा है, क्योंकि यह सिंधु जल संधि के अंतर्गत भारत को मिलने वाले अधिकारों का स्पष्ट उपयोग है।

तुलबुल परियोजना जम्मू-कश्मीर में स्थित वुलर झील के मुहाने पर बनने वाला एक नियंत्रण ढांचा (Navigation Lock-Cum-Control Structure) है। इसका उद्देश्य है झेलम नदी में जल प्रवाह को नियंत्रित करना, ताकि नेविगेशन यानि नौवहन (नाव-चालन) को बेहतर किया जा सके और जल भंडारण से जल संकट को कम किया जा सके। यह परियोजना सबसे पहले 1984 में शुरू हुई थी, लेकिन पाकिस्तान के विरोध के कारण 1987 में इसे स्थगित कर दिया गया।

सिंधु जल संधि (1960) के तहत भारत को झेलम, चिनाब और सिंधु जैसी तीन पश्चिमी नदियों पर सीमित उपयोग की अनुमति है, जिनमें से झेलम पर तुलबुल परियोजना प्रस्तावित है। पाकिस्तान का दावा है कि भारत इस परियोजना से जल प्रवाह को नियंत्रित कर सकता है, जिससे पाकिस्तान की सिंचाई और जलापूर्ति प्रभावित हो सकता है। लेकिन भारत का स्पष्ट रुख है कि यह परियोजना संधि के दायरे में है और इसका उद्देश्य जल परिवहन और क्षेत्रीय विकास है, न कि पानी रोकना।

भारत सरकार ने अब तुलबुल परियोजना को फिर से शुरू करने का निर्णय लिया है। इसके लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार की जा रही है, जो एक साल के भीतर पूरी हो जाएगी। इसके बाद परियोजना को जमीन पर उतारने की प्रक्रिया शुरू होगी। यह कदम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 'जल संप्रभुता नीति' के तहत उठाया जा रहा है, जिसके तहत भारत अपने जल संसाधनों पर संप्रभु नियंत्रण मजबूत करना चाहता है।

इस खबर के सामने आने के बाद पाकिस्तान की चिंताएं फिर बढ़ गई हैं। जल संकट से जूझ रहा पाकिस्तान पहले से ही भारत के डैम प्रोजेक्ट्स को लेकर असहज है। भारत के पास सिंधु जल संधि के तहत 20% पानी रोकने का अधिकार है, जिसका अब वह पूरी तरह से इस्तेमाल करने की ओर बढ़ रहा है।

तुलबुल परियोजना केवल एक बांध या नियंत्रण ढांचा नहीं है, बल्कि भारत की रणनीतिक संप्रभुता का प्रतीक बनता जा रहा है। यह न सिर्फ जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि पाकिस्तान को यह स्पष्ट संदेश भी है कि भारत अब हर मोर्चे पर अपने हितों की रक्षा करने को तैयार है, चाहे वह पानी हो या पड़ोसी की राजनीति।



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