भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में जब देवी की दस महाविद्याओं की बात होती है, तो उनमें एक रूप ऐसा है जो न आकर्षक है, न सुंदरता का प्रतीक है बल्कि वह जीवन की कटुता, अकेलापन और अस्थिरता का प्रतिनिधित्व करती हैं। वह हैं “धूमावती” , एक विधवा का रूप, एक वृद्धा का प्रतीक, जो हमें जीवन की उन सच्चाइयों से परिचित कराती हैं जिन्हें हम अक्सर नजरअंदाज करते हैं।
धूमावती कोई साधारण देवी नहीं हैं। उनका स्वरूप भी वैसा ही है जैसे उनका संदेश, भयावह, रहस्यमयी और गूढ़। लेकिन इसी भयावहता के पीछे छिपा है अपार ज्ञान, वैराग्य और मुक्ति का गूढ़ रहस्य।
धूमावती देवी का स्वरूप विचित्र है, वह वृद्धा हैं, उनके वस्त्र मलिन हैं, शरीर पर कोई आभूषण नहीं है, वह बिना दांतों के, क्षीण शरीर वाली हैं, सिर पर बिखरे हुए सफेद केश हैं, हाथ में झण्डा या झाड़ू लिए रथ पर सवार हैं जिसमें कोई घोड़ा नहीं है। यह भयावहता दरअसल उन इच्छाओं, माया और सांसारिक मोह के विनाश का प्रतीक है जो साधक को आत्मज्ञान से दूर रखता हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब सती ने भगवान शिव से भोजन की इच्छा प्रकट की और शिव ने मना किया, तो सती ने क्रोध में स्वयं भगवान शिव को ही निगल लिया। परंतु बाद में उन्हें बाहर निकाल दिया। इस रूप में सती एक विधवा जैसी हो गईं, और यही धूमावती का जन्म था। उनका नाम पड़ा – धूम (धुआँ) + आवती (जिसमें वह समा जाए)।
यह कहानी यह संदेश देती है कि जब जीवन में इच्छाएं विकराल रूप ले लेती हैं, तब व्यक्ति स्वयं अपने आत्मस्वरूप को ही निगल लेता है। यही धूमावती की चेतावनी है।
धूमावती का अस्तित्व कुछ अत्यंत गंभीर तात्त्विक सत्यों की ओर इंगित करता है। विधवा रूप- यह किसी स्त्री की सामाजिक स्थिति का नहीं, बल्कि अपूर्णता, छिन्न-भिन्नता और विलगाव का प्रतीक है। यह बताता है कि हर चीज स्थायी नहीं होती है। मलिन वस्त्र- सांसारिक आडंबरों का परित्याग, सामाजिक बंधनों से मुक्ति। अलंकारहीन- बाह्य सौंदर्य और सज्जा की निरर्थकता पर प्रश्नचिह्न। बिना दांत के- वह रूप जो अब भोग नहीं चाहता, केवल आत्मसाक्षात्कार चाहता है।
धूमावती की पूजा कोई सामान्य पूजा नहीं है। यह अत्यंत कठिन और गूढ़ तांत्रिक साधना है जो केवल वही साधक कर सकता है जो संन्यास के पथ पर अग्रसर हो, जो संसार के सुख-दुख, स्तुति-निंदा, मोह-माया से ऊपर उठ चुका हो।
साधना से प्राप्त होने वाले फल में वैराग्य की सिद्धि- संसार से मोह समाप्त हो जाता है। मुक्ति की ओर अग्रसरता- साधक आत्मा के शुद्ध रूप का दर्शन करता है।
गूढ़ तांत्रिक ज्ञान- तंत्र और ब्रह्मज्ञान के उच्चतम रहस्य प्रकट होता है।
धूमावती की साधना में रात्रिकालीन पूजा, शव-साधना, चंद्रग्रहण और अमावस्या की रात्रियों का विशेष महत्व होता है। उन्हें सरसों का तेल, काले तिल, सूखे फूल और भस्म अर्पित किया जाता है।
समाज में हर कोई सुंदरता, प्रेम, समृद्धि, ऐश्वर्य और शांति की देवी की पूजा करना चाहता है, जैसे - लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, पार्वती। लेकिन धूमावती इसका उल्टा हैं, वह है- वियोग, दरिद्रता, जरा (बुढ़ापा) और मरण की ओर संकेत करती हैं। फिर भी, वही लोग जो जीवन के अंतिम सत्य को पहचानना चाहते हैं, जो मोक्ष के अभिलाषी हैं, वह धूमावती की शरण में जाते हैं।
धूमावती बताती हैं कि डरावना वही है जो हम जानना नहीं चाहते, स्वीकारना नहीं चाहते। और जब उन्हें स्वीकार कर लेते हैं, तब वह डर ज्ञान में बदल जाता है।
आज के युग में जब भौतिकवाद, उपभोक्तावाद और बाह्य सौंदर्य की अंधी दौड़ चल रही है, तब धूमावती का संदेश अत्यंत प्रासंगिक हो जाता है। वह कहती हैं- सौंदर्य क्षणिक है, सत्य शाश्वत। संपत्ति और संबंध क्षणभंगुर हैं, आत्मज्ञान अमर है। अकेलापन दुख नहीं, बल्कि आत्मदर्शन का अवसर है।
आज जब लोग अवसाद, अकेलापन और सामाजिक बहिष्कार से पीड़ित हैं, धूमावती उन्हें यह समझाती हैं कि यह अकेलापन एक मौका है- स्वयं को जानने का, अपने भीतर झाँकने का।
धूमावती के मंदिर दुर्लभ है। बहुत कम स्थानों पर उनकी प्रतिमाएं या मंदिर हैं क्योंकि उनका पूजन सीमित साधकों के लिए होता है।
वाराणसी में धूमावती का एक प्रमुख मंदिर स्थित है, जो उन्हें तांत्रिक शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित करता है। गुह्य तांत्रिक केंद्रों में भी उनकी पूजा होती है लेकिन वह आमजन की दृष्टि से दूर रहते हैं।
धूमावती का वर्णन ‘शक्ति संहिता’, ‘तंत्रचूड़ामणि’, ‘महानिर्वाण तंत्र’, और ‘शक्ति संगम तंत्र’ जैसे ग्रंथों में मिलता है। उनके प्रमुख बीज मंत्र हैं:
"धूं धूं धूमावत्यै स्वाहा।"
"ॐ श्रीं धूं धूं धूमावत्यै नमः।"
यह मंत्र केवल योग्य गुरु से दीक्षा प्राप्त कर ही जपा जाना चाहिए।
दस महाविद्याएं देवी के दस रहस्यमयी रूप हैं। जहां काली, तारा, भुवनेश्वरी शक्ति के विविध रूप हैं, वहीं धूमावती अकेली ऐसी महाविद्या हैं जो ‘वियोग’ की मूर्ति हैं। काली मृत्यु की देवी हैं, लेकिन उग्र सौंदर्य भी है। त्रिपुरसुंदरी सौंदर्य और प्रेम की देवी हैं। धूमावती केवल त्याग, जरा और मृत्यु की साक्षात अभिव्यक्ति हैं। इसलिए वह तांत्रिक साधना की पराकाष्ठा मानी जाती हैं।
धूमावती को देख कर घबराना स्वाभाविक है। परंतु ध्यान देना होगा, वह हमारी ही उस छवि को दर्शाती हैं जिसे हम समाज में छुपाते हैं, वह है- अकेलापन, असुंदरता, विफलताएं, अंत, और मृत्यु। वह कहती हैं जीवन सदा उत्सव नहीं होता है। मृत्यु कोई अंत नहीं, बल्कि बोध का आरंभ है। सत्य सदा सुंदर नहीं होता है, परंतु सत्य ही मोक्ष का द्वार है।
धूमावती इस सत्य का साक्षात्कार कराती हैं। वह बाहरी सुंदरता नहीं, आंतरिक बोध का द्वार हैं। वह त्याग हैं, वैराग्य हैं, और अंतिम मुक्ति की रहस्यमयी देवी हैं।
यदि कोई जीवन की सतही परतों से ऊब चुका हैं, यदि आत्मा के सच्चे स्वरूप को जानना चाहता हैं, यदि शून्यता में भी पूर्णता देखना चाहते है, तो धूमावती साधना की अंतिम सीढ़ी बन सकती हैं। धूमावती न भय हैं, न अशुभ। वह, वह प्रकाश हैं जो अंधकार के भीतर जन्म लेता है।