कालों के भी काल है – “महाकालेश्वर”

Jitendra Kumar Sinha
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भारतवर्ष में देवभूमि के विविध कोनों में भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं, जो स्वयंभू और दिव्य ऊर्जा के केंद्र माना जाता हैं। इन्हीं में से तीसरे क्रम पर स्थित है- महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, जो मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। यह शिवलिंग विशेष रूप से पूज्यनीय है क्योंकि यह "कालों के भी काल" यानि महाकाल के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह तंत्र, ज्योतिष, खगोलशास्त्र और पुराणों के रहस्यों से भी गहराई से जुड़ा हुआ है।


उज्जैन को प्राचीन काल में अवंतिका कहा जाता था। यह नगर सप्तपुरियों में एक प्रमुख स्थान रखता है और कालचक्र के केंद्र के रूप में जाना जाता है। यहीं सम्राट विक्रमादित्य ने विक्रम संवत की स्थापना की थी और यहीं कालिदास ने ‘मेघदूत’ जैसे ग्रंथों की रचना की थी। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। उज्जैन के महाकाल का अर्थ ही है- जो काल को भी जीत ले, जो मृत्यु को भी परास्त कर दे।


महाकालेश्वर मंदिर की वास्तुकला मराठा, भौम और चालुक्य शैली की मिश्रित झलक देता है। यह मंदिर पांच स्तरों में बना है, जिसमें शिव के अतिरिक्त पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नागदेवता की मूर्तियाँ भी प्रतिष्ठित है। सबसे अद्भुत विशेषता यह है कि यह शिवलिंग दक्षिणमुखी है, जो अन्य किसी ज्योतिर्लिंग में नहीं देखा जाता है। दक्षिण दिशा यमराज की दिशा माना जाता है, और इसलिए दक्षिणमुखी महाकालेश्वर मृत्यु और काल को नियंत्रित करने वाले माने जाते हैं।

महाकालेश्वर की भस्म आरती विश्वविख्यात है। प्रतिदिन प्रातःकाल 4 बजे यह आरती किया जाता है, जिसमें श्मशान की चिता की राख से भगवान महाकाल का श्रृंगार होता है। यह परंपरा प्राचीन काल से चला आ रहा है और तंत्र शास्त्र से जुड़ा हुआ है। आरती के समय मंदिर में धूप, दीप, शंख और नगाड़ों की ध्वनि के साथ भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।


उज्जैन को तंत्र साधना का केंद्र भी माना जाता है। महाकालेश्वर मंदिर से कुछ ही दूरी पर काल भैरव मंदिर स्थित है, जो अघोरी और तांत्रिकों की साधना स्थली है। मान्यता है कि काल भैरव, महाकाल के गण हैं और इनकी आराधना बिना महाकालेश्वर की पूजा अधूरी माना जाता है। यहां प्रत्येक अमावस्या को विशेष तांत्रिक पूजन और तांत्रिकों का जमावड़ा होता है, विशेष रूप से आषाढ़ और माघ की अमावस्या को।


शिव पुराण के कोटि रुद्र संहिता में कहा गया है-


“कालाय तस्मै नमः शिवाय।”

 “जो स्वयं काल का भी काल है, उसे नमन।”


वहीं स्कंद पुराण में वर्णन मिलता है कि जब चारों वेदों ने शिव की महिमा का गायन किया तब उज्जैन के महाकाल का उल्लेख विशेष रूप से हुआ। यह शिवलिंग स्वयं भूतल पर अवतरित हुआ माना जाता है, यानि यह स्वयंभू है, किसी द्वारा स्थापित नहीं।


शिव पुराण में वर्णित श्लोक है-


"आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्।

 भूलोके च महाकालो लिंगत्रय नमोऽस्तु ते।।"


इसका अर्थ होता है- आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर लिंग – यह तीनों त्रैलोक्य (तीनों लोकों) के श्रेष्ठ लिंग माना जाता है। इसलिए महाकालेश्वर को भू-लोक का सबसे पवित्र ज्योतिर्लिंग माना गया है।


एक पौराणिक कथा के अनुसार, उज्जैन में रत्नकेतु नामक एक राक्षस का आतंक था। उसकी शक्ति इतना बढ़ चुका था कि देवता भी हारने लगे थे। तब उज्जैन के विद्वान ब्राह्मणों ने भगवान शिव की घोर तपस्या की। प्रसन्न होकर शिव प्रकट हुए और राक्षस का अंत कर, वहीं महाकालेश्वर के रूप में स्थापित हो गए। इसीलिए यह शिवलिंग मृत्यु और संकट से रक्षा करने वाला माना गया है।

महाकालेश्वर में महाशिवरात्रि पर विशेष रुद्राभिषेक, भस्म आरती, श्रावण मास में लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति, नाग पंचमी में शिवलिंग पर नाग पूजन, कालाष्टमी में काल भैरव की पूजा, तंत्र विधान और कार्तिक पूर्णिमा पर दीपोत्सव और रात्रिकालीन शिव अभिषेक होता है।


2022 में भारत सरकार द्वारा महाकाल लोक के रूप में एक भव्य कॉरिडोर का निर्माण किया गया है। इस परियोजना में 108 स्तंभ, विशाल शिव प्रतिमाएं, रुद्र प्रतिकृतियाँ, और भव्य प्रवेश द्वार बनाया गया है। यह न केवल भारत, बल्कि वैश्विक स्तर पर शिवभक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुका है।

महाकाल यात्रा के क्रम में काल भैरव मंदिर, हरसिद्धि माता मंदिर, रामघाट (शिप्रा नदी), सांदीपनि आश्रम (श्रीकृष्ण की शिक्षा स्थली) और विक्रमादित्य सिंहासन का भी दर्शन किया जा सकता है। 


महाकालेश्वर मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं है, बल्कि यह आत्मा की उस यात्रा का प्रारंभ बिंदु है जो मृत्यु के पार की चेतना को छूने की क्षमता रखता है। जो जाता है, वह केवल दर्शन नहीं करता है बल्कि वह काल के पार शिव की शांति में प्रवेश करता है।


उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा इस संसार में अनुपम है। यहाँ शिव केवल पूजे नहीं जाते हैं, वे जीए जाते हैं। उनकी भस्म आरती, उनकी दक्षिणमुखी प्रतिमा, उनकी प्राचीनता, और उनका ‘कालजयी’ स्वरूप, इन सबमें शिव के त्रियंबक रूप की झलक मिलती है।


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