जेईई एडवांस्ड 2025 के टॉप रैंकर्स अब IIT बॉम्बे के बीटेक सीएसई कोर्स की बजाय अमेरिका के एमआईटी जैसे विश्व के टॉप विश्वविद्यालयों को चुन रहे हैं। इस बदलाव के पीछे शोध के बेहतर अवसर और वैश्विक शिक्षा प्रणाली की लचीलापन है। जलगांव के देवेश भैया ने ऑल इंडिया रैंक 8 पाने के बाद IIT बॉम्बे छोड़कर MIT में दाखिला लिया, क्योंकि वे शोध में ज्यादा रूचि रखते हैं। उनकी उपलब्धियों में अंतरराष्ट्रीय विज्ञान और रसायन विज्ञान ओलंपियाड में स्वर्ण पदक भी शामिल हैं।
पिछले साल के टॉपर वेद लाहोटी ने भी IIT बॉम्बे में एक साल पढ़ाई के बाद MIT में फुल स्कॉलरशिप हासिल की और कहा कि IIT बॉम्बे शोध के मामले में वैश्विक स्तर पर पिछड़ा हुआ है। इससे पहले भी 2020 के टॉपर चिराग फालोर और 2014 के चित्रांग मुर्डिया ने IIT छोड़कर MIT को चुना था। यह प्रवृत्ति बताती है कि भारतीय छात्र अब सिर्फ नौकरी पाने के लिए नहीं बल्कि शोध और बेहतर वैश्विक अवसरों के लिए विदेशों का रुख कर रहे हैं।
एमआईटी जैसी संस्थाएं उन्हें वह लचीलापन और संसाधन देती हैं जो भारतीय संस्थानों में अक्सर सीमित होते हैं। इस बदलाव से साफ होता है कि भारत को अपनी उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार कर शोध और नवाचार को अधिक प्रोत्साहन देना होगा ताकि टॉप टैलेंट देश में ही रहकर अपनी पूरी क्षमता दिखा सके।

