पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार को कलकत्ता हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक अंतरिम आदेश जारी कर सरकार की उस आर्थिक सहायता योजना पर रोक लगा दी है, जिसके तहत 2016 की नियुक्ति प्रक्रिया के बाद हटाए गए गैर-शिक्षण कर्मचारियों को राहत दी जानी थी।
यह योजना उन समूह 'सी' और 'डी' श्रेणियों के करीब 26,000 कर्मचारियों के लिए थी, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नौकरी से हटाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2024 में स्कूल सेवा आयोग (SSC) द्वारा 2016 में की गई भर्ती प्रक्रिया को "भ्रष्ट और अपारदर्शी" करार देते हुए इसे रद्द कर दिया था।
ममता सरकार ने नौकरी गंवा चुके कर्मचारियों की "मानवीय पीड़ा" को ध्यान में रखते हुए एक आर्थिक राहत योजना बनाई थी। इसके तहत ग्रुप सी कर्मचारियों को ₹25,000 और ग्रुप डी कर्मचारियों को ₹20,000 की एकमुश्त सहायता देने का प्रस्ताव था। लेकिन इस पर सवाल उठाते हुए कई याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर की गईं, जिनमें तर्क दिया गया कि भ्रष्ट भर्ती के माध्यम से नियुक्त इन कर्मचारियों को किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता देना न्यायसंगत नहीं है।
न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा की एकल पीठ ने मामले की सुनवाई के बाद 9 जून को फैसला सुरक्षित रखा था। शुक्रवार को जारी आदेश में उन्होंने कहा कि जब तक अगला आदेश नहीं आता है या फिर 26 सितंबर तक राज्य सरकार इस योजना को लागू नहीं कर सकती है। कोर्ट ने राज्य सरकार को चार सप्ताह के अंदर याचिकाकर्ताओं के आरोपों पर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है।
तृणमूल कांग्रेस ने कोर्ट के निर्णय का सम्मान करते हुए कहा कि वे न्यायपालिका के प्रति पूर्ण प्रतिबद्ध हैं। वहीं, विपक्षी भाजपा और वाम दलों ने ममता सरकार पर हमला बोलते हुए आरोप लगाया कि सरकार जानबूझकर भ्रष्ट और अनुचित भर्ती प्रक्रिया को बचाने की कोशिश कर रही है।
यह मामला केवल कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक बहस का विषय भी बन गया है। एक ओर नौकरी गंवा चुके हजारों कर्मचारी हैं, जिनके परिवार भूख और बेरोजगारी से जूझ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सवाल यह है कि क्या भ्रष्ट प्रणाली से लाभ पाने वालों को फिर से सरकारी धन से मदद देना उचित है?
अब सबकी निगाहें अगली सुनवाई और सरकार के जवाब पर टिकी हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि ममता सरकार अपनी राहत योजना को कैसे न्यायसंगत ठहराने की कोशिश करती है और क्या कोर्ट अंततः इसे मानवीय पहलू के आधार पर हरी झंडी देगा या न्यायिक सिद्धांतों को तरजीह देगा।

