भगवान जगन्नाथ की धरती सर्वोपरि - ट्रंप का निमंत्रण ठुकराकर - ओडिशा पहुँचे प्रधानमंत्री

Jitendra Kumar Sinha
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक आस्था उनके लिए सर्वोपरि है। शुक्रवार को ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने खुलासा किया है कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के वाशिंगटन आमंत्रण को यह कहते हुए विनम्रता से अस्वीकार कर दिया है कि उन्हें भगवान जगन्नाथ की पवित्र धरती पर आना है।


प्रधानमंत्री ने बताया है कि वे जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए कनाडा में थे, जब राष्ट्रपति ट्रंप ने उन्हें फोन किया। ट्रंप ने उन्हें वाशिंगटन में चर्चा और दोपहर भोज के लिए आमंत्रित किया। लेकिन प्रधानमंत्री ने साफ शब्दों में कहा, "मैंने राष्ट्रपति ट्रंप का धन्यवाद किया, लेकिन मैंने कहा कि मुझे भगवान जगन्नाथ की धरती ओडिशा जाना है।" यह बयान सुनकर जनसभा में उपस्थित हजारों लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत किया।


प्रधानमंत्री मोदी के इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनके लिए भारत की संस्कृति, आस्था और परंपरा सबसे पहले है। यह पहला मौका नहीं है जब प्रधानमंत्री ने धार्मिक स्थलों को प्राथमिकता दी हो। इससे पहले भी वे काशी, केदारनाथ, अयोध्या जैसे स्थलों पर जाकर सांस्कृतिक गौरव को वैश्विक मंच पर स्थापित करने का प्रयास कर चुके हैं।


अपने संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री ने न केवल जनभावनाओं को सम्मान दिया, बल्कि ओडिशा के लिए विकास की कई सौगातें भी दी। उन्होंने 18,600 करोड़ रुपये से अधिक की 100 से अधिक विकास परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन किया। इसमें रेलवे, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और ऊर्जा क्षेत्र की योजनाएं प्रमुख हैं।


ओडिशा में भारतीय जनता पार्टी की सरकार की पहली वर्षगांठ पर यह जनसभा आयोजित की गई थी। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर राज्य की जनता को विश्वास दिलाया है कि केंद्र और राज्य सरकार मिलकर ओडिशा को विकास के नए शिखर पर ले जाएंगी।


अपने संबोधन के अंत में प्रधानमंत्री ने भगवान जगन्नाथ को नमन करते हुए कहा है कि "यह धरती केवल एक राज्य की नहीं, बल्कि भारत की आस्था का केंद्र है। आज जब मैं यहां हूँ, तो मेरा मन श्रद्धा और संकल्प से भर गया है।"


प्रधानमंत्री मोदी का यह कदम केवल एक राजनीतिक निर्णय नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक संदेश भी है। यह संदेश कि भारत की आत्मा उसके तीर्थों और परंपराओं में बसती है, और जब भी संस्कृति और कूटनीति के बीच चयन करना हो, तो भारत का नेतृत्व सदैव अपने मूल को प्राथमिकता देगा।


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