बीजिंग में तीन देश एक मंच पर - चीन-पाकिस्तान-बांग्लादेश

Jitendra Kumar Sinha
0

 



भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ चीन ने एक नई रणनीतिक पहल की शुरुआत की है। बीजिंग में आयोजित 'चीन-पाकिस्तान-बांग्लादेश त्रिपक्षीय बैठक' का उद्घाटन सत्र हाल ही में संपन्न हुआ है। यह बैठक तीनों देशों के विदेश मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच हुई है, जो न केवल आपसी सहयोग को बढ़ावा देने की दिशा में एक नया कदम है, बल्कि क्षेत्रीय कूटनीति की नई दिशा भी तय कर सकती है।


इस त्रिपक्षीय बैठक को बीजिंग की एक रणनीतिक पहल के रूप में देखा जा रहा है, जिसका उद्देश्य दक्षिण एशिया में चीन के प्रभाव को और मजबूत करना है। पाकिस्तान, चीन का पहले से ही 'ऑल वेदर स्ट्रैटेजिक पार्टनर' माना जाता है। वहीं बांग्लादेश के साथ बीते कुछ वर्षों में चीन ने व्यापार, बुनियादी ढांचा और निवेश के क्षेत्रों में गहरे संबंध बनाए हैं। अब जब ये तीनों देश एक मंच पर आए हैं, तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या यह मंच भारत के लिए एक कूटनीतिक चुनौती बन सकता है? क्या यह बीजिंग की ‘साउथ एशिया पॉलिटिक्स’ को पुनर्परिभाषित करने की योजना का हिस्सा है?


बैठक में चर्चा का फोकस क्षेत्रीय शांति, विकास, संपर्क (connectivity), जलवायु परिवर्तन, व्यापार सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे मुद्दों पर रहा है। सूत्रों के अनुसार, तीनों देशों ने भविष्य में इस मंच को नियमित रूप से जारी रखने पर सहमति जताई है। बैठक में यह भी कहा गया है कि त्रिपक्षीय सहयोग "विन-विन" मॉडल पर आधारित होगा, जिसमें कोई देश हावी न होकर साझेदारी को प्राथमिकता देगा। यह संदेश विशेष रूप से भारत को संकेत दे सकता है कि यह गठजोड़ क्षेत्रीय दबाव बनाने के लिए भी उपयोग हो सकता है।


भारत के लिए यह बैठक कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध लंबे समय से तनावपूर्ण हैं, जबकि बांग्लादेश के साथ संबंध अपेक्षाकृत स्थिर रहा हैं। लेकिन यदि बांग्लादेश, चीन और पाकिस्तान के साथ एक मजबूत त्रिकोण बनाता है, तो यह भारत के लिए क्षेत्रीय संतुलन को चुनौती देने वाला कदम हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को बांग्लादेश के साथ अपनी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक साझेदारी को और मजबूत करना चाहिए ताकि वह क्षेत्रीय समीकरण में अपनी स्थिति को बनाए रख सके।


यह त्रिपक्षीय मंच अभी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है। लेकिन इसकी निरंतरता और विस्तार इस बात पर निर्भर करेगा कि यह देश कितनी पारदर्शिता और संतुलन के साथ आगे बढ़ता हैं। भारत के लिए यह संकेत है कि क्षेत्रीय कूटनीति में तेजी से बदलाव हो रहा है और उसे भी अपनी विदेश नीति को उसी गति से पुनर्संयोजित करने की आवश्यकता है।


एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top