कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर शुरू — भारत‑चीन संबंधों में नई उम्मीद

Jitendra Kumar Sinha
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भारत और चीन के बीच हालिया संवाद एक बार फिर चर्चा में है। इस बार मौका था शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के रक्षा मंत्रियों की बैठक का, जो चीन के क़िंगदाओ शहर में आयोजित हुई। इस बैठक में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और चीन के रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जुन के बीच एक अनौपचारिक लेकिन काफी महत्वपूर्ण बातचीत हुई। हालाँकि यह कोई औपचारिक द्विपक्षीय बैठक नहीं थी, लेकिन जिस प्रकार से दोनों देशों के शीर्ष रक्षा अधिकारी आमने-सामने हुए, वह खुद में कूटनीतिक दृष्टि से बड़ा संकेत माना जा रहा है।


राजनाथ सिंह ने चीन के मंत्री से बातचीत के बाद यह साफ़ कहा कि भारत और चीन को अपने द्विपक्षीय संबंधों में सकारात्मक रुख बनाए रखना चाहिए और किसी भी प्रकार की नई जटिलता से बचना चाहिए। यह बयान ऐसे समय पर आया है जब भारत और चीन के बीच पिछले कुछ वर्षों से सीमा विवाद, विशेष रूप से लद्दाख क्षेत्र में, तनाव का विषय बने हुए हैं। हालांकि पिछले कुछ महीनों में दोनों देशों के बीच कुछ क्षेत्रों में सैनिकों की वापसी और संवाद प्रक्रिया में तेजी आई है, लेकिन अभी भी कई मुद्दे पूरी तरह से हल नहीं हुए हैं।


इस बैठक के दौरान राजनाथ सिंह ने एडमिरल डोंग जुन को भारत की पारंपरिक कला, मधुबनी पेंटिंग की एक भेंट दी। यह न सिर्फ सौहार्द का प्रतीक था, बल्कि भारत की सांस्कृतिक पहचान और कूटनीतिक शालीनता का परिचायक भी रहा। मधुबनी पेंटिंग विशेष रूप से बिहार के मिथिला क्षेत्र की कला है, जो अपने रंगों और प्रतीकों के माध्यम से गहरी कहानियाँ बुनती है। यह तोहफा स्पष्ट तौर पर एक संदेश था कि भारत रिश्तों में कड़वाहट के बजाय सौहार्द और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्राथमिकता देता है।


इसी बीच, एक और बड़ी खबर आई – कैलाश मानसरोवर यात्रा एक बार फिर शुरू की जा रही है। कोविड-19 महामारी और भारत-चीन सीमा विवाद के चलते यह यात्रा कई वर्षों से स्थगित थी। लेकिन अब लगभग छह साल बाद, यह धार्मिक यात्रा दोबारा शुरू हो रही है। 30 जून से इसका पहला जत्था रवाना होगा और 10 जुलाई को यह दल लिपुलेख दर्रे के रास्ते चीन की सीमा में प्रवेश करेगा। अंतिम जत्था 22 अगस्त को वापस लौटेगा। इस यात्रा का पुनः आरंभ होना धार्मिक श्रद्धालुओं के लिए ही नहीं, भारत-चीन संबंधों के लिहाज़ से भी एक सकारात्मक संकेत है। यह दिखाता है कि दोनों देश कुछ क्षेत्रों में तनाव कम करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।


राजनाथ सिंह की यह चीन यात्रा और उनकी भेंटवार्ता एक संकेत है कि भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ मतभेदों को कूटनीतिक बातचीत के माध्यम से सुलझाने का इच्छुक है। सीमा विवाद, आपसी अविश्वास और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के बावजूद, संवाद के लिए दरवाजे खुले रखने का यह प्रयास स्वागत योग्य है। वहीं, कैलाश मानसरोवर यात्रा का पुनः आरंभ इस बात का प्रमाण है कि धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं को राजनीतिक मतभेदों से ऊपर रखा जा सकता है।


इस पूरी कड़ी को देखें तो यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत और चीन के संबंधों में अभी भी बहुत कुछ ऐसा है जिसे बेहतर किया जा सकता है। लेकिन कम से कम यह पहल और संवाद की कोशिश यह साबित करती है कि दोनों देश इस दिशा में एक बार फिर कदम बढ़ाने को तैयार हैं। आगे का रास्ता लंबा और चुनौतीपूर्ण जरूर है, लेकिन संवाद की यह शुरुआत उम्मीद की एक नई रेखा खींचती है।

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