श्रीलंका के सेंट्रल प्रांत की हरी-भरी वादियों में स्थित है एक ऐसा चमत्कारी स्थल, जो इतिहास, वास्तुकला और प्रकृति की त्रिवेणी का प्रतीक है “सिगिरिया”। यह कोई साधारण किला नहीं है, बल्कि एक विशाल चट्टान पर बसा प्राचीन गढ़ है, जिसे धरती का आठवां आश्चर्य कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। सिगिरिया, जिसे सिंहासन की चट्टान या "Lion Rock" भी कहा जाता है, लगभग 200 मीटर ऊंची एक एकल पर्वत शिला पर स्थित है।
इस ऐतिहासिक स्थल का निर्माण पांचवीं शताब्दी ईस्वी में राजा कास्यप ने करवाया था। कास्यप ने सत्ता पाने के लिए अपने ही पिता की हत्या की और अपने सौतेले भाई को सिंहासन से दूर कर दिया। उसे भय था कि एक दिन उसका भाई प्रतिशोध ले सकता है। इसी भय ने उसे ऐसी जगह की तलाश में प्रेरित किया, जो दुर्गम हो, सुरक्षात्मक हो और भव्य भी हो। तब उसने इस विशाल चट्टान को चुना और उसके शीर्ष पर एक किला और महल बनवाया।
सिगिरिया केवल किला भर नहीं है, कला और संस्कृति की धरोहर भी है। इसकी दीवारों पर बनी "सिगिरिया फ्रेस्कोज" नामक चित्रकलाएं, सुंदर अप्सराओं को दर्शाती हैं। यह चित्र आज भी अपने चमकते रंगों और कोमल रेखाओं के कारण देखने वालों को चकित कर देता हैं। इन चित्रों में स्त्रियों की सुंदरता, सौंदर्यबोध और उस काल की जीवनशैली की झलक मिलता है।
सिगिरिया में एक विशिष्ट विशेषता है “शेर के पंजों वाला प्रवेश द्वार”। चट्टान के मध्य भाग में एक समय विशाल शेर की मूर्ति थी, जिसके मुँह से होकर महल तक पहुँचना होता था। अब उस मूर्ति के केवल पंजे शेष बचे हैं, लेकिन वह भी उस समय की शिल्पकला की शक्ति और कल्पनाशीलता का प्रमाण देता हैं।
चट्टान के नीचे का क्षेत्र भी उतना ही अद्भुत है। सिगिरिया वाटिकाएं, जल कुंड, फव्वारे, और परावर्तक तालाब इस बात का गवाही देता है कि जल प्रबंधन और बागवानी में भी उस युग की तकनीक कितनी उन्नत थी। बरसात के मौसम में यहां बने जलनिकासी तंत्र आज भी प्रभावी हैं।
यूनेस्को ने सिगिरिया को 1982 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है। यह न केवल श्रीलंका की पहचान बन चुका है, बल्कि दुनियाभर के इतिहासप्रेमियों, पुरातत्वविदों और पर्यटकों का आकर्षण केंद्र भी है।
