विंबलडन, टेनिस का सबसे प्रतिष्ठित टूर्नामेंट, जो शाही परंपराओं और सख्त ड्रेस कोड के लिए जाना जाता है, अब एक नए युग में प्रवेश करने जा रहा है। 148 वर्षों के गौरवशाली इतिहास में पहली बार, इस ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट में मानव लाइन जज नहीं होंगे। उनकी जगह लेगा 'हॉक-आई' तकनीक पर आधारित इलेक्ट्रॉनिक लाइन कॉलिंग सिस्टम।
2025 में 30 जून से आरंभ हुए इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में यह बदलाव खेल की सटीकता, गति और निष्पक्षता को बढ़ावा देने के लिए किया गया है। ऑस्ट्रेलियन ओपन और यूएस ओपन में पहले ही इस प्रणाली को अपनाया जा चुका है, लेकिन विंबलडन जैसा पारंपरिक आयोजन इस दिशा में सबसे बड़ा कदम माना जा रहा है।
विंबलडन केवल एक टूर्नामेंट नहीं है, यह टेनिस प्रेमियों के लिए एक तीर्थ स्थल है। यहां की घास की अदालतें, सफेद परिधान की परंपरा, स्ट्रॉबेरी और क्रीम की परोसी जाने वाली मिठास, सब कुछ इसे अद्वितीय बनाता है। 1877 में इसकी शुरुआत हुई थी और तब से लेकर अब तक इसने अनेकों दिग्गजों को जन्म दिया है, रॉड लेवर से लेकर रोजर फेडरर और सेरेना विलियम्स तक। लेकिन इतने वर्षों में पहली बार, विंबलडन एक बड़ी तकनीकी छलांग लगाया है, जो खेल की दिशा और धारणा दोनों को बदल रहा है।
हॉक-आई (Hawk-Eye) नामक तकनीक पर आधारित यह सिस्टम विशेष कैमरों की मदद से बॉल की मूवमेंट को ट्रैक करता है। यह कोर्ट के चारों ओर लगे कैमरों से प्राप्त डेटा के आधार पर निर्धारित करता है कि बॉल लाइन के अंदर गिरी है या बाहर।
इसकी विशेषता है कि यह हर शॉट पर तुरंत निर्णय लेता है। यह 0.1 मिलीमीटर तक की सटीकता बताता है, इसमें किसी विवाद की स्थिति में रिव्यू करने की भी सुविधा है और मानव त्रुटि की संभावना इसमें शून्य है।
हॉक-आई (Hawk-Eye) में लाइन जज पूरी तरह हटा दिया गया है, यानि पहली बार है कि कोई मैच मानव लाइन जजों के बिना खेला जा रहा है। इस में 450 से अधिक कैमरा लगाया गया है, दो आयोजन स्थलों पर विशेष रूप से। 80 पूर्व लाइन जज 'मैच सहायक' के रूप में नियुक्त है, यह तकनीकी विफलता की स्थिति में काम करेंगे।
यह निर्णय रातोंरात नहीं लिया गया है। 2024 में इस सिस्टम का बड़े पैमाने पर परीक्षण किया गया था। आयोजकों ने खिलाड़ियों, दर्शकों और तकनीकी विशेषज्ञों से फीडबैक प्राप्त कर इसकी सटीकता का मूल्यांकन किया है। नतीजा यह निकला कि यह प्रणाली न केवल भरोसेमंद है, बल्कि समय और विवाद दोनों को कम करता है।
कुछ आलोचक मानते हैं कि लाइन जजों का न होना टेनिस के मानवीय पक्ष को खत्म कर देगा। भीड़ की तालियों के बीच किसी लाइन कॉल पर जज का हाथ उठाना, खिलाड़ियों की नाराजगी, दर्शकों की चीखें – ये सब मैच के रोमांच को बढ़ाते थे। अब इन सबकी जगह बिना भावनाओं वाली मशीनें ले रहा हैं। लेकिन इसके अपने फायदे भी हैं, विवादों की संख्या में भारी कमी आएगी। मैचों की गति में सुधार होगा। खिलाड़ियों को बार-बार चैलेंज करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
राफेल नडाल, नोवाक जोकोविच, इगा स्विटेक, जैसे दिग्गज खिलाड़ी पहले ही इलेक्ट्रॉनिक लाइन कॉलिंग का समर्थन कर चुके हैं। कोको गॉफ का बयान है कि "हमें खेल में सटीकता चाहिए। अगर तकनीक यह दे सकती है, तो क्यों नहीं?" स्विटेक का मत है कि "मानव गलतियों से बचना अब संभव है। मैं तकनीक को पूरी तरह समर्थन देती हूं।"
हालांकि तकनीक को प्राथमिकता दी गई है, लेकिन आयोजकों ने मानव निगरानी पूरी तरह खत्म नहीं किया है। प्रत्येक कोर्ट पर दो मैच सहायक नियुक्त हैं जिनका काम है संचालन में सहायता करना। तकनीक विफल होने पर बैकअप प्रणाली से काम संभालना। अंपायर को लॉजिस्टिक्स में सहयोग देना। इससे यह सुनिश्चित किया जाएगा कि खेल में मानवीय संवेदनाएं पूरी तरह खत्म न हो।
अब ग्रैंड स्लेम टूर्नामेंट्स में केवल फ्रेंच ओपन ही ऐसा है, जहां अभी भी मानव लाइन जजों का उपयोग किया जाता है। बाकी तीनों (ऑस्ट्रेलियन ओपन, यूएस ओपन और अब विंबलडन) में तकनीक आ चुकी है। अब देखना यह होगा कि फ्रेंच ओपन कितने वर्षों तक अपनी परंपरा को थामे रखता है।
इस वर्ष पहला राउंड महिला एकल में कोको गॉफ बनाम दयाना यास्त्रेम्स्का, इगा स्विटेक बनाम पोलिना कुदेरेमेतावा। संभावित क्वार्टर फाइनल: गॉफ vs स्विटेक में एक भयंकर टक्कर होगा। वहीं पुरुष एकल में नोवाक जोकोविच, जेनिक सिनर, कार्लोस अल्कराज जैसे दिग्गजों की मौजूदगी। है।
जहां एक ओर खिलाड़ी डिजिटल सपोर्ट के साथ कोर्ट पर उतरेंगे, वहीं दर्शक अपनी सीटों पर बैठकर बिना विवाद के साफ-सुथरा टेनिस देख सकेंगे। 2025 का विंबलडन न केवल विजेताओं के नाम के लिए याद किया जाएगा, बल्कि उस ऐतिहासिक तकनीकी परिवर्तन के लिए भी जो खेल को आधुनिकता की ओर ले गया।
विंबलडन ने यह सिद्ध कर दिया है कि परंपरा और तकनीक में टकराव नहीं है, बल्कि संतुलन संभव है। एक ओर जहां यह टूर्नामेंट घास की अदालत, सफेद कपड़ों और शाही परंपराओं से जुड़ा हुआ है, वहीं अब यह तकनीक की दुनिया में भी कदम रख रहा है। यह बदलाव एक संकेत है कि खेल अब सिर्फ प्रतिभा पर ही नहीं, प्रौद्योगिकी पर भी निर्भर है।