श्राप से मुक्ति दिलाते है - अरेराज के “पंचमुखी बाबा सोमेश्वरनाथ”

Jitendra Kumar Sinha
0

 





उत्तर बिहार की पावन धरती अपने धार्मिक, पौराणिक और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए विख्यात है। यह भूमि न केवल भगवती सीता की जन्मभूमि मिथिला के कारण पूज्य है, बल्कि कई ऐसे अनगिनत स्थल यहां मौजूद हैं जहां देवताओं के चरण पड़े, ऋषियों की साधना फलीभूत हुई और श्रद्धालुओं की आस्था को शरण मिली। मोतिहारी जिले का अरेराज स्थित “बाबा सोमेश्वरनाथ मंदिर” एक ऐसा ही अलौकिक तीर्थ स्थल है, जहां जन-जन की आस्था का सागर उमड़ता है।

इस शिवधाम की महिमा केवल इसकी वास्तुकला या पूजा-पद्धति से नहीं, बल्कि उससे जुड़ी गूढ़ पौराणिक कथाओं से है। कथा के अनुसार, देवता सोमदेव (चंद्रमा) को महर्षि गौतम ने अपनी पत्नी अहिल्या के साथ हुई निंदनीय घटना में संदिग्ध भूमिका के कारण कठोर शाप दे दिया था- “तुम्हारा सम्पूर्ण शरीर घावों से भर जाए और तुम कलंकित हो जाओ।”

इस श्राप के प्रभाव से सोमदेव पीड़ा, ग्लानि और दारुण मानसिक क्लेश से त्रस्त हो गए। उन्होंने अपनी मुक्ति हेतु कई स्थानों पर तप किया लेकिन समाधान नहीं मिला। तब वे महर्षि अगस्त्य के शरण में गए।

महर्षि अगस्त्य ने उन्हें सलाह दी कि नेपाल से सटे नारायणी नदी के किनारे स्थित अरण्यराज्य (आज का अरेराज) में पंचमुखी शिवलिंग की स्थापना करें। यह क्षेत्र घने वनों से घिरा था, इसीलिए इसे अरण्यराज यानि ‘वनों का राजा’ कहा गया था।

सोमदेव ने सात फीट गहराई में अत्यंत श्रद्धा और पवित्रता के साथ पंचमुखी शिवलिंग की स्थापना की। जैसे ही शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा हुई, चमत्कार घटित हुआ – सोमदेव के शरीर से घाव अदृश्य हो गए और वे श्राप से मुक्त हो गए।

शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव के पंचमुखी स्वरूप के पांच मुख पांच तत्वों एवं रूपों का प्रतिनिधित्व करता है। सद्योजात- पश्चिम दिशा के अधिपति, सृष्टि के मूल कारण, वामदेव- उत्तर दिशा, सौंदर्य और आनंद के प्रतीक, अघोर-  दक्षिण दिशा, विनाश और पुनर्निर्माण के देव, तत्पुरुष-  पूर्व दिशा, योग और ध्यान के अधिष्ठाता, ईशान-  ऊपर की दिशा, सर्वज्ञता और शिव तत्व के केंद्र। अरेराज के पंचमुखी शिवलिंग में यह पांचों मुख दर्शनीय हैं, जो भक्तों को अलग-अलग दृष्टिकोणों से शिव की आराधना का मार्ग दिखाता है।

जब सोमदेव का कष्ट समाप्त हुआ, तो महर्षि अगस्त्य ने आशीर्वाद दिया- “हे सोम! आज से यह स्थान सोमेश्वरनाथ के नाम से जाना जाएगा। जो भी श्रद्धापूर्वक यहां आराधना करेगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी।”

किंवदंती है कि भगवान श्रीराम विवाह के उपरांत भगवती सीता के साथ मिथिला से अयोध्या लौटते समय अरेराज में रुके थे। उन्होंने कमल पुष्पों से पंचमुखी सोमेश्वरनाथ का पूजन किया और पुत्र प्राप्ति की कामना की। इसी प्रसंग से यह स्थल कामना पीठ के रूप में ख्यात हो गया।

सीता माता ने मां पार्वती को सिंदूर अर्पित कर अखंड सौभाग्य की कामना की थी। तभी से यहां सौभाग्यवती स्त्रियां सिंदूर चढ़ाकर शिव-पार्वती से अपने वैवाहिक जीवन की रक्षा और समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।

श्रीराम ने उस समय लाल वस्त्र की पगड़ी सोमेश्वरनाथ मंदिर से पार्वती मंदिर तक बनवाई थी, जो आज भी पूजा में चढ़ाई जाती है। यही नहीं, यह परंपरा कालांतर में श्रद्धा और संस्कार का रूप ले चुकी है। पगड़ी चढ़ाना अब आराधना और पूर्ण मनोकामना के संकेत के रूप में देखा जाता है।

यह प्रश्न उठ सकता है कि क्या कोई प्रमाण है कि राम और सीता यहां आए थे? इस संबंध में अनेक इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और पौराणिक साहित्यकारों ने शोध किया है। एक यात्रा के दौरान विद्वानों ने जनकपुर (सीता की जन्मभूमि) से लेकर चित्रकूट (राम के वनवास की भूमि) तक की धार्मिक कड़ियों को जोड़ते हुए अरेराज को एक महत्वपूर्ण पड़ाव माना है।

यहां एक अनोखी मान्यता प्रचलित है कि यदि किसी भक्त की मन्नत पूरी हो जाती है, तो महिलाएं अपने आंचल की खूंट पर लोक नर्तक से नृत्य करवाती हैं। चूंकि महादेव नृत्य और संगीत के आदिदेव माने जाते हैं, यह परंपरा उन्हें प्रसन्न करती है। यह नृत्य एक प्रकार का धार्मिक उत्सव बन गया है, जिसमें भक्त और भगवान दोनों का आनंद समाहित है।

सावन मास में कांवड़ यात्रा का दृश्य देखते ही बनता है। देश के कोने-कोने से लाखों शिवभक्त गंडक, नारायणी और गंगा जैसी पवित्र नदियों से जल भरकर कांवर लेकर यहां आते हैं और बाबा सोमेश्वरनाथ पर जलाभिषेक करते हैं। यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि श्रद्धा, समर्पण और संयम का प्रतीक है। महिलाएं, युवा, वृद्ध  सभी एकसमान उत्साह से इसमें भाग लेते हैं।

अरेराज में साल भर विविध धार्मिक आयोजन होते हैं, जिसमें महाशिवरात्रि महोत्सव, सावन सोमवार विशेष पूजन, शिव विवाहोत्सव, पार्वती पूजन और सुहाग उत्सव, नववर्ष में विशेष पंचामृत अभिषेक शामिल है। इन आयोजनों में हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं और अरेराज में एक मेला जैसा उत्सव सा दृश्य बन जाता है।

बाबा सोमेश्वरनाथ धाम अब केवल धार्मिक स्थल नहीं रहा, यह धार्मिक पर्यटन (Spiritual Tourism) का एक उभरता हुआ केन्द्र बन गया है। बिहार सरकार और स्थानीय प्रशासन मिलकर यहां अवस्थापना सुविधाओं को बेहतर बना रहे हैं,  जैसे- श्रद्धालुओं के लिए विश्राम स्थल, शुद्ध जल एव भोजनालय, पार्किंग व्यवस्था और तीर्थ के इतिहास की जानकारी देने वाला संग्रहालय।

यह स्थान धर्म, जाति, पंथ और क्षेत्र की सीमाओं से परे सर्वसमावेशी शिवभाव का प्रतीक बन चुका है। यहां न कोई छोटा है, न बड़ा, बस एक ही परिचय होता है “भोले के भक्त”।

बाबा सोमेश्वरनाथ केवल एक तीर्थ नहीं, यह श्रद्धा, शक्ति और शांति का संगम है। जहां एक श्रापित को देवता ने मुक्ति दी, राम-सीता के मनोकामना पूरी हुई, वहां आज भी करोड़ों श्रद्धालु आकर अपनी व्यथा बाबा को सुनाते हैं, और वो सोमेश्वरनाथ उसे वरदान में बदल देते हैं।



एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top