सावन महीना भारतीय सनातन संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक महीनों में गिना जाता है। वर्ष 2025 का सावन विशेष है, क्योंकि इस बार पूरे 30 दिनों में अधिकांश दिन व्रत, त्योहार, उपासना, अनुष्ठान और लोकआस्था के पर्वों से परिपूर्ण हैं। यह दुर्लभ संयोग न केवल हरि (भगवान विष्णु) और हर (भगवान शिव) की कृपा से युक्त है, बल्कि इसमें गणेश, पार्वती, तुलसीदास, सप्तकन्या, नागदेवता, गुरु, गौरी, सप्तऋषि और संतों की भी विशेष उपस्थिति है।
6 जुलाई 2025 को हरिशयन एकादशीहै। इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार महीनों के लिए योगनिद्रा में प्रवेश करते हैं, जिसे चातुर्मास कहते हैं। यह काल आध्यात्मिक साधना, व्रत, संयम और आत्मशुद्धि के लिए अत्यंत फलदायी माना गया है। चातुर्मास के दौरान शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन आदि वर्जित रहता हैं, लेकिन धार्मिक क्रियाएं जैसे कथा, जाप, भजन-कीर्तन करना अत्यंत पुण्यकारी होता हैं।
10 जुलाई 2025 गुरु पूर्णिमा है। इस दिन महर्षि वेदव्यास की जयंती मनाया जाता है, जिन्होंने वेदों का विभाजन किया और पुराणों की रचना की। गुरु के चरणों में नमन करने का यह पर्व शिष्यों को आत्मबोध और जीवन दिशा देता है। मंदिरों और आश्रमों में गुरु पूजन, सत्संग, दीक्षा और प्रवचनों का आयोजन होता है।
11 जुलाई 2025 से 9 अगस्त 2025 तक सावन है। यानि 11 जुलाई से आरंभ होकर 9 अगस्त को समापन होगा। सावन मास भगवान शिव को समर्पित होता है, जिसमें विशेषकर सोमवारी का व्रत अत्यंत फलदायक माना जाता है। इस बार की खास बात यह है कि प्रत्येक सोमवार के साथ कोई न कोई विशेष पर्व जुड़ा है, जिससे इसकी धार्मिक महत्व और बढ़ जाता है।
11 जुलाई – प्रथम सोमवारी के साथ ही गणेश चतुर्दशी भी है। भगवान शिव के प्रथम दिन श्रीगणेश को भी समर्पित है। गणेश चतुर्दशी के दिन विघ्नहर्ता को प्रसन्न किया जाता है।
15 जुलाई – मंगलागौरी व्रत, मौना पंचमी, मधुश्रावणी है। मंगलागौरी व्रत में नवविवाहिताएं मां गौरी का पूजन कर अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। मधुश्रावणी व्रत में मिथिला में नवविवाहिताएं नाग-नागिन की कथा कहती हैं और मौना पंचमी के दिन मौन रहकर उपवास करना विशेष फलदायी माना गया है।
17 जुलाई – शीतला सप्तमी है। इस दिन शीतला माता का पूजा कर परिवार के स्वास्थ्य और शांति की कामना की जाती है।
21 जुलाई – दूसरी सोमवारी के साथ ही कामदा एकादशी भी है। कामदा एकादशी कामनाओं की पूर्ति के लिए व्रती इस दिन उपवास रखते हैं।
22 जुलाई – भौम प्रदोष व्रत है। इस दिन भगवान शिव की संध्या बेला में आराधना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
23 जुलाई – श्रावण शिवरात्रि व्रत है। यह दिन शिव-पार्वती के विवाह का प्रतीक है। रात्रि जागरण, शिवलिंग पर जलाभिषेक और रुद्राभिषेक किया जाता है।
24 जुलाई – हरियाली अमावस्या है। धरती को हरा-भरा करने और पर्यावरण संतुलन के लिए वृक्षारोपण का यह विशेष पर्व है।
26 जुलाई – धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज जयंती है। उनके विचार और लेखन आज भी सनातन संस्कृति का पथप्रदर्शक है।
27 जुलाई – हरियाली तीज के साथ ही मधुश्रावणी व्रत समापन है। हरियाली तीज में महिलाएं झूला झूलती हैं, गीत गाती हैं और सौभाग्य की कामना करती हैं।
28 जुलाई – तीसरी सोमवारी के साथ ही, विनायक चतुर्थी व्रत है । इस दिन भगवान गणेश का पूजन विघ्नों को दूर करने वाला होता है।
29 जुलाई – नाग पंचमी है। नाग पंचमी में नाग देवता की पूजा कर संतान और समृद्धि की कामना की जाती है।
31 जुलाई – संत तुलसीदास जयंती है। इस दिन रामचरितमानस के रचयिता की जयंती पर पाठ, भजन और रामकथा का आयोजन होता है।
4 अगस्त – चौथी सोमवारी है। भगवान शिव की आराधना का अंतिम सोमवार, विशेष अभिषेक, जल-धारा और भस्म अर्पण के साथ संपन्न होगा।
5 अगस्त – पुत्रदा एकादशी व्रत है। व्रत संतान की प्राप्ति और जीवन में शुभता लाने के लिए उपवास के साथ किया जाता है।
6 अगस्त – प्रदोष व्रत है। मास का दूसरा प्रदोष व्रत, शिवभक्ति और संयम का दिन होता है ।
8 अगस्त – वरलक्ष्मी व्रत है। यह व्रत सौभाग्य और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी का व्रत है विशेषकर दक्षिण भारत में मनाया जाता है।
9 अगस्त – श्रावणी पूर्णिमा, रक्षाबंधन और उपाकर्म का पर्व है । रक्षाबंधन के दिन भाई-बहन के प्रेम का पर्व मनाया जाता है। श्रावणी उपाकर्म में ब्राह्मण समुदाय यज्ञोपवीत बदलते हैं, वेदपाठ और संकल्प लेते हैं।
इस सावन में धर्म और संस्कृति का अनूठा समन्वय देखने को मिलेगा। मधुश्रावणी जैसे लोकपर्व, तुलसीदास जयंती जैसे साहित्यिक उत्सव और नाग पंचमी जैसी लोकविश्वास से जुड़ी परंपराएं इस महीने को बहुआयामी बनाता हैं। पर्यावरण के प्रति जागरूकता का संदेश हरियाली अमावस्या और वृक्षारोपण उत्सव से मिलता है।
चातुर्मास में शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कार्य वर्जित रहता हैं, लेकिन धार्मिक अनुष्ठानों और साधना का यह समय अत्यंत शुभ माना गया है। व्रत, उपवास, संयमित आहार, सत्संग, योग, ध्यान और जप से आत्मशुद्धि की प्रक्रिया प्रारंभ होता है।
व्रत रखने वाले को सात्विक आहार लेना चाहिए और लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा, तामसिक चीजें त्याग देना चाहिए। प्रत्येक दिन जलाभिषेक कर “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए। सोमवारी व्रत में दिनभर उपवास रह कर, शाम को शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, गंगाजल अर्पित करना चाहिए। एकादशी को अन्न ग्रहण न कर फलाहार ग्रहण करना चाहिए। सावन मास में विशेष रूप से शिवपुराण, विष्णुसहस्रनाम, रामचरितमानस और भगवद्गीता का पाठ करना चाहिए।
सावन मास केवल व्रत या पर्व का नहीं है, यह एक आध्यात्मिक आचरण का अभ्यास है। यह शरीर को अनुशासित करता है, मन को एकाग्र करता है और आत्मा को प्रभु की ओर उन्मुख करता है। सावन में हर बूँद जल की नहीं, भक्ति की होती है। इस मास में की गई छोटी सी आराधना भी कई गुना फल देता है।
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