बगैर टावर चलेंगे फोन- भारत में होगा शुरुआत - डी 2डी सर्विस

Jitendra Kumar Sinha
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भारत में डिजिटल क्रांति पिछले एक दशक में अप्रत्याशित गति से बढ़ी है। लेकिन आज भी देश के कई दुर्गम, ग्रामीण, पहाड़ी और सीमा से सटे इलाकों में मोबाइल नेटवर्क एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। कॉल ड्रॉप, कमजोर सिग्नल और इंटरनेट की अनुपलब्धता आम समस्या है। ऐसे में भारत अब एक ऐसी तकनीक की ओर कदम बढ़ा रहा है, जो इस नेटवर्क के असमानता को समाप्त कर सकता है  वह है “डायरेक्ट टू डिवाइस (D2D) सैटेलाइट सर्विस”।

यह तकनीक अब केवल कल्पना नहीं है, बल्कि सच्चाई बनने वाली है। वोडाफोन-आइडिया (Vi) और अमेरिका की दिग्गज स्पेसटेक कंपनी AST SpaceMobile की साझेदारी से भारत में एक नई डिजिटल क्रांति की शुरुआत होने जा रही है।

D2D तकनीक एक ऐसी वायरलेस कम्युनिकेशन प्रणाली है जिसमें मोबाइल फोन सीधे सैटेलाइट से जुड़ता हैं। इसमें किसी भी ग्राउंड-आधारित मोबाइल टावर की आवश्यकता नहीं होती है। अर्थात इसमें न टावर की आवश्यकता, न मोबाइल फोन बदलने की जरूरत है, न ही कोई अतिरिक्त डिवाइस की और न ही अलग से सैटेलाइट फोन की। यह मौजूदा 4G और 5G स्मार्टफोन में ही काम करेगा।

इसकी प्रमुख विशेषता है, सैटेलाइट आधारित कनेक्टिविटी, टावर-फ्री मोबाइल नेटवर्किंग, रिमोट और दुर्गम इलाकों तक कवरेज, महंगे सैटेलाइट फोन की आवश्यकता नहीं, मौजूदा स्पेक्ट्रम पर आधारित नेटवर्क।

भारत के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मोबाइल यूजर आबादी है, लेकिन भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो करीब 40-50% इलाके अभी भी नेटवर्क की दृष्टि से कमजोर हैं।
हिमालयी क्षेत्र, राजस्थान के रेगिस्तान, पूर्वोत्तर राज्य, अंडमान-निकोबार, और लद्दाख जैसे इलाकों में सिग्नल अक्सर गायब हो जाता हैं। सीमा सुरक्षा बलों, वन अधिकारियों, और पर्यटकों को इन इलाकों में संचार के साधनों की भारी कमी होती है। ऐसे में D2D तकनीक न केवल आम नागरिकों बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों के लिए भी गौरवपूर्ण उपलब्धि साबित हो सकता है।

अमेरिकी कंपनी AST SpaceMobile इस क्षेत्र में विश्वस्तरीय खिलाड़ी है। इसने अब तक 6 लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट लॉन्च किया हैं और 243 और भेजने की योजना है। इन सैटेलाइट्स का नेटवर्क इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि ये सीधे स्मार्टफोन से सिग्नल रिसीव और ट्रांसमिट कर सके।

वहीं, वोडाफोन-आइडिया (Vi) भारत की प्रमुख दूरसंचार कंपनियों में से एक है। यह साझेदारी Vi को तकनीकी और सैटेलाइट इन्फ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराएगी, भारत के रिमोट इलाकों में नेटवर्क विस्तार संभव बनाएगी, बिना अतिरिक्त स्पेक्ट्रम की आवश्यकता के, मौजूदा नेटवर्क का सैटेलाइट से संयोजन होगा।

LEO सैटेलाइट पृथ्वी के करीब 500–1200 किलोमीटर की ऊँचाई पर होते हैं। ये एक विस्तृत एरिया में सिग्नल ट्रांसमिट करते हैं।  मौजूदा 4G/5G स्मार्टफोन में D2D सिग्नल को रिसीव करने की क्षमता होती है, यदि उनका सॉफ्टवेयर अपडेट किया जाए। जब यूजर टावर नेटवर्क से बाहर निकलता है, तब फोन ऑटोमेटिकली सैटेलाइट से जुड़ जाता है। कॉल, मैसेज और इंटरनेट की सेवा बिना रुके जारी रहता है।

भारत में केवल Vi और AST की जोड़ी ही नहीं, बल्कि कई वैश्विक कंपनियां भी इस मैदान में उतरने की तैयारी कर चुका हैं उसमें स्टारलिंक (SpaceX – एलन मस्क) 7800 सैटेलाइट पहले से LEO में, इनमें से 600 D2D सपोर्ट करता हैं, अमेरिका में ट्रायल कर चुका है, भारत में जियो और एयरटेल से बातचीत में व्यस्त है। ग्लोबलस्टार (Apple की साझेदार कंपनी) iPhone 14 और आगे के मॉडल में सेटेलाइट SOS फीचर, भारत में भी iPhone यूजर्स को इससे लाभ मिल सकता है।
अमेजन क्यूपर प्रोजेक्ट (Jeff Bezos) 3200 से अधिक LEO सैटेलाइट भेजने की योजना, भारत में एंटर करने की कोशिश चलरहा है।

भारत सरकार पहले ही स्पेस कम्युनिकेशन नीति 2022 के अंतर्गत प्राइवेट सैटेलाइट कंपनियों को बढ़ावा देने की घोषणा कर चुकी है। डिजिटल समावेशन और सशक्त भारत की दिशा में यह कदम बेहद प्रभावशाली साबित हो सकता है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने निजी कंपनियों के लिए स्पेस लॉन्च प्लेटफॉर्म खोल दिया हैं। IN-SPACe और NSIL के माध्यम से वाणिज्यिक सैटेलाइट संचालन को बढ़ावा दिया जा रहा है। ट्राई और डॉट जैसी नियामक संस्थाएं स्पेक्ट्रम उपयोग और पॉलिसी सपोर्ट देने के लिए तैयार है।

D2D तकनीक की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका राष्ट्रीय सुरक्षा और आपदा प्रबंधन में होगी। सेना और सीमा सुरक्षा बल अब दुर्गम क्षेत्रों में भी निरंतर संपर्क में रह सकेंगे। भूकंप, बाढ़, तूफान जैसी आपदाओं में राहत कार्यों के दौरान नेटवर्क बंद नहीं होगा। जंगलों में कार्यरत वन अधिकारी, वैज्ञानिक और वन्यजीव शोधकर्ता भी जुड़े रहेंगे।

D2D तकनीक को इस तरह विकसित किया जा रहा है कि यह मौजूदा 4G और 5G स्मार्टफोनों में ही काम करे। इसके लिए सॉफ्टवेयर अपडेट की आवश्यकता होगी, कुछ विशेष मॉडल्स (जैसे iPhone 14, Samsung Galaxy S22+) में पहले से सैटेलाइट कनेक्टिविटी है और भविष्य के फोनों में D2D सपोर्ट इनबिल्ट होगा।

शुरुआती दिनों में D2D सेवा थोड़ी महंगी हो सकती है, लेकिन जैसे-जैसे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और उपयोगकर्ता संख्या बढ़ेगी, टैरिफ कम होंगे। Vi जैसे ऑपरेटर इसे डेटा पैकेज के Add-on के रूप में ला सकते हैं। सरकारी योजनाओं के अंतर्गत ग्रामीण और दुर्गम इलाकों में इसे सब्सिडाइज किया जा सकता है। 

IoT डिवाइसेस भी सैटेलाइट से जुड़ेंगे, ड्रोन, ऑटोमोबाइल, हेल्थ डिवाइसेस रीयल टाइम कम्युनिकेशन कर पाएंगे। पोर्टेबल D2D नेटवर्क डिवाइसेस सेना, NDRF और चिकित्सा दलों के लिए उपलब्ध होंगे और ब्लाइंड स्पॉट फ्री नेटवर्क इंडिया की ओर पहला कदम है।

डायरेक्ट टू डिवाइस तकनीक न केवल एक नया नेटवर्क समाधान है, बल्कि यह भारत को संचार क्रांति की नई ऊंचाई पर ले जाने वाला यंत्र है। सुदूर गांवों से लेकर युद्धक्षेत्र तक, और पर्वतों से लेकर समुद्र की लहरों तक अब भारत का हर कोना कनेक्टेड इंडिया का हिस्सा बनेगा।

वोडाफोन-आइडिया और AST की यह साझेदारी भारत के नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। 



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