देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, ओंकारेश्वर में हर सोमवार को निकलने वाली भगवान ओंकारेश्वर और ममलेश्वर की शाही पालकी यात्रा लाखों श्रद्धालुओं के लिए भक्ति, उल्लास और रंगों का संगम होता है। लेकिन इस बार कुछ बदला-बदला सा रहेगा। प्रशासन ने इस पारंपरिक यात्रा में गुलाल उड़ाने पर सख्त पाबंदी लगा दी है। अब भक्तों को गुलाल की जगह गुलाब की पंखुड़ियां उड़ाने का निर्देश दिया गया है।
खंडवा जिला प्रशासन ने पर्यावरण और सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए यह निर्णय लिया है कि शाही पालकी के दौरान गुलाल नहीं उड़ाया जाएगा। इसके स्थान पर गुलाब की पंखुड़ियों से भगवान की आरती और स्वागत की परंपरा निभाई जाए। यह फैसला बीते रविवार को आयोजित प्रशासनिक बैठक में लिया गया और सोमवार को यात्रा से पहले लागू कर दिया गया है।
इस आदेश के बाद षड्दर्शन मंडल सहित अन्य संत समाज ने कड़ा ऐतराज जताया है। उनका कहना है कि यह आदेश न केवल एक धार्मिक परंपरा का उल्लंघन है, बल्कि श्रद्धालुओं की आस्था के साथ भी खिलवाड़ है। मंडल के वरिष्ठ संतों का कहना है कि वर्षों से गुलाल उड़ाकर भक्त भगवान की आराधना करते आए हैं और यह आदेश धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है।
षड्दर्शन मंडल के प्रमुख संत ने कहा है कि "गुलाल उड़ाना सिर्फ रंग नहीं, भक्तिभाव की अभिव्यक्ति है। इसे रोकना परंपरा पर आघात है।"
प्रशासन की ओर से सफाई दी गई है कि गुलाल से श्रद्धालुओं को एलर्जी, दम और आंखों में जलन जैसी स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। साथ ही, इससे पर्यावरण पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए गुलाब की पंखुड़ियों को पर्यावरण अनुकूल विकल्प के रूप में सुझाया गया है। श्रद्धालुओं में इस बदलाव को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया है। कुछ लोग इसे प्रशासन का सकारात्मक प्रयास मानते हैं तो कुछ इसे 'श्रद्धा पर नियंत्रण' की कोशिश बता रहे हैं।
यह विवाद धार्मिक परंपराओं और प्रशासनिक नियमों के टकराव का एक और उदाहरण बन गया है। ऐसे मामलों में संतुलन बनाए रखना हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है। जहां प्रशासन सुरक्षा और स्वच्छता की बात करता है, वहीं संत समाज परंपरा और श्रद्धा की रक्षा की मांग करता है।
शाही पालकी यात्रा ओंकारेश्वर की एक विशेष पहचान है, जिसमें रंगों की भक्ति देखने को मिलती है। लेकिन गुलाल की जगह गुलाब की पंखुड़ियां उड़ाने का नया आदेश अब इस परंपरा में एक नया अध्याय जोड़ रहा है विरोध, असमंजस और नए विकल्प की ओर।
