मकान निर्माण से पूर्व होता है नींव पूजा - नींव में छिपा है आध्यात्म

Jitendra Kumar Sinha
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भारतवर्ष की संस्कृति केवल परंपराओं का ढेर नहीं है, बल्कि उन परंपराओं के पीछे छिपी गूढ़ आध्यात्मिकता, गहराई और वैज्ञानिकता भी इसका मूल है। मकान निर्माण के समय नींव में सर्प और कलश गाड़ने की परंपरा महज किसी धार्मिक रिवाज का हिस्सा नहीं है, बल्कि एक दीर्घकालीन सांस्कृतिक और दार्शनिक विचारधारा का प्रतीक है। यह विश्वास शेषनाग की धरती-धारण शक्ति, वास्तु शास्त्र की सकारात्मक ऊर्जा और देवी-देवताओं के आह्वान पर आधारित है।

इसके लिए यह जानना जरूरी है कि शेषनाग की पौराणिक और दार्शनिक भूमिका, पाताल लोक और उसका भौगोलिक-आध्यात्मिक वर्णन, वास्तु शास्त्र में नींव पूजन की वैज्ञानिकता, कलश और नाग की प्रतिष्ठा का तांत्रिक और धार्मिक महत्व, सामाजिक मनोविज्ञान और पीढ़ियों से चलती आ रही मान्यताएं।

भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि "मैं नागों में अनंत (शेषनाग) हूं"। यह वाक्य इस ओर संकेत करता है कि शेषनाग मात्र पौराणिक पात्र नहीं, बल्कि ईश्वर की ही एक विशेष सत्ता हैं।

जब संपूर्ण सृष्टि का संहार हो जाए, तब जो शेष रह जाए, वही शेषनाग हैं। यही कारण है कि इनका संबंध समय, धैर्य और धारण शक्ति से है।

शेषनाग के सहस्त्र फण हैं, जिनमें ब्रह्मांड की ऊर्जा विद्यमान माना जाता है। उनके फणों पर ही यह संपूर्ण पृथ्वी टिकी हुई है। जब वह फण हिलाता है, तो भूकंप और प्रलय की स्थिति बनती है। शेषनाग भगवान विष्णु की शैया हैं और विष्णु स्वयं सृष्टि के पालनकर्ता।

लक्ष्मण (राम के अनुज), बलराम (कृष्ण के भाई) यह दोनों ही शेषनाग के अवतार माने जाते हैं। यह संकेत करता है कि जब भी विष्णु का अवतार होता है, तब उनका सेवक (शेष) भी उनके साथ प्रकट होता है।

श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार, पृथ्वी के नीचे सात पाताल लोक हैं, वह है अतल, वितल, नितल, गभस्तिमत, महातल, रसातल, पाताल। इन लोकों में दैत्य, दानव, नाग रहते हैं। वहां सूर्य, चंद्र, या कोई ग्रह-नक्षत्र नहीं है। तो प्रश्न उठता है कि फिर रोशनी कहाँ से आती है? तो इसका उत्तर है नागों के फणों की मणियों से निकलने वाली दिव्य आभा। इन पातालों में आनंद, ऐश्वर्य, सुख, संगीत, सुंदर उपवन और अत्यधिक भोग की सामग्री है। वहां मृत्यु नहीं, काल का भय नहीं, बस शाश्वत जीवन है।

कोई भी भवन नींव पर आधारित होता है। जिस प्रकार कोई वृक्ष अपनी जड़ों से खड़ा होता है, वैसे ही भवन अपनी नींव से। यदि नींव मजबूत है, तो भवन भी दीर्घायु होगा। नींव पूजन में शेषनाग की प्रतीकात्मक मूर्ति (चांदी या तांबे की), कलश में जल, दूध, दही, घी, पुष्प, कलश के भीतर चांदी या सोने का सिक्का, मंत्रोच्चारण से देवताओं का आह्वान। यह कर्मकांड केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि मनोवैज्ञानिक सुरक्षा का भाव भी जगाता है। जैसे शेषनाग ने पृथ्वी को धारण किया है, वैसे ही मेरे घर की नींव इनकी कृपा से सुदृढ़ हो।

वास्तु शास्त्र में कलश को ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। यह पंचतत्वों (जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी, आकाश) का प्रतिनिधित्व करता है। कलश के भीतर रखे जल में दूध, दही, घी, शहद मिलाकर देवताओं को आमंत्रित किया जाता है।

कलश में डाला जाता है सुपारी जो स्थायित्व का प्रतीक है, आम्रपत्र जो हरियाली और समृद्धि द्योतक है, नारियल सृष्टि का प्रतीक है, सिक्का लक्ष्मी का प्रतीक है और पुष्प सौंदर्य और भक्ति का। शेषनाग की प्रिय वस्तुएं जैसे दूध, पुष्प, स्वर्ण, इन सबको समर्पित कर कलश की स्थापना किया जाता है ताकि शेषनाग की कृपा उस स्थल पर बनी रहे।

नाग पूजा इसलिए किया जाता है कि नाग देवता भूमि की ऊर्जाओं के प्रतीक माना जाता है। यह जमीन की शुद्धि, ऊर्जा और संतुलन से जुड़ा हुआ है। भगवान शिव के आभूषण में नाग सर्वविदित है। भगवान शिव के गले में वासुकी नाग होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि जो मृत्यु के देवता हैं, वह सर्प की ऊर्जा को अपने साथ धारण करते हैं।

नाग पंचमी, मणि नाग, तक्षक, कर्कोटक आदि की पूजा होती है। इन सभी में सांकेतिक भाव यह है कि सर्प जमीन की गहराई और रहस्यों का प्रतिनिधि है। जब हम भवन की नींव डालते हैं, तब जमीन को जगाते हैं, उस समय नागों को शांत कर उनका आशीर्वाद लेना आवश्यक माना जाता है।

महाभारत (भीष्मपर्व 67/13) में “शेष चाकल्पयद्देवमनन्तं विश्वरूपिणम् । यो धारयति भूतानि धरां चेमां सपर्वताम्” ॥ श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 10, श्लोक 29) में  “अनन्तश्चास्मि नागानां, वरुणो यदसामहम्”। श्रीमद्भागवत महापुराण (स्कंध 5) में  “पाताल लोक का विस्तार और शेषजी की भूमिकाओं का विस्तृत वर्णन है”। स्कंद पुराण और गरुड़ पुराण में भी सर्प पूजा और भूमि शुद्धि विधानों का उल्लेख मिलता है।

तंत्र शास्त्र के अनुसार, नींव में प्रतिष्ठित नाग वास्तु दोष से रक्षा करता हैं। इसके बिना भूमि अशुद्ध माना जाता है। लोक परंपरा में विश्वास है कि सर्प की पूजा करने से घर में बरकत बना रहता है। कलश स्थापना से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यदि नाग नाराज हो जाएं तो 'सर्पदोष' उत्पन्न होता है। इसीलिए लोग "सर्प शांति पूजन" भी करवाते हैं।

आधुनिक इंजीनियरिंग में नींव को मजबूती देने के लिए पायलिंग किया जाता है, परंतु ग्रामीण भारत में आज भी नींव भूमि पूजन विधिपूर्वक किया जाता है। कई भवन निर्माता आज भी "भूमिपूजन" से पहले सर्प और कलश की प्रतिष्ठा कराते हैं। वास्तु विशेषज्ञों के अनुसार यह स्थानिक ऊर्जा संतुलन का एक उपाय है।

जब मकान बनाते हैं, तो केवल ईंट-पत्थर नहीं जोड़ते हैं बल्कि सपनों का एक संसार रचते हैं। और वह संसार तभी टिकता है, जब उसकी नींव में श्रद्धा, विज्ञान और परंपरा की त्रिवेणी हो। सर्प और कलश केवल प्रतीक नहीं है, बल्कि यह उस मानसिक सुरक्षा का आधार हैं, जिसमें मनुष्य यह अनुभव करता है कि कोई शक्ति उसकी रक्षा कर रहा है। शेषनाग की असीम धारणशक्ति, वास्तु की ऊर्जा और देवी-देवताओं का आह्वान यह सब मिलकर घर को एक 'गृह' बनाता हैं, और भवन को एक 'आश्रय'।



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